अमूमन ग्रेजुएशन करने के बाद कोई आगे की पढ़ाई या अच्छी नौकरी की तलाश में रहता है। इस लीक से हटकर कर्नाटक के बागलकोट ज़िले की एक महिला ने खेती-किसानी को चुना। ग्रेजुएशन डिग्री होल्डर 29 साल की आशमा एम. होंबल कृषि परिवार से ही आती हैं। उनका परिवार कई दशकों से सुपारी की खेती से जुड़ा रहा है। खेती-बाड़ी पर ही पूरी तरह से निर्भर परिवार की आजीविका को देखते हुए आशमा ने खेती में प्रयोग करने का फैसला किया। आज उन्होंने अपने 10 एकड़ के फ़ार्म में जिस तरह से खेती के Integrated Farming के मॉडल को अपनाया हुआ है, वो काबिले तारीफ़ है।
केले और नारियल की खेती भी की शुरू
बागलकोट ज़िले के बादामी शहर के चोलाचागुड्डा गाँव की रहने वालीं आशमा ने लोकल बाज़ार की मांग को देखते हुए केले और नारियल की खेती भी शुरू कर दी। बादामी शहर एक पर्यटक स्थल है। वहां सालभर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। इस वजह से बादामी में नारियल और केले की मांग हमेशा रहती है।
डायरेक्ट मार्केटिंग से लाभ
खेती में आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से आशमा नए-नए प्रयोग करने को लेकर लगातार बागलकोट स्थित ICAR-कृषि विज्ञान केंद्र के संपर्क में रहती हैं। आशमा मानती हैं कि बाज़ार की मांग, संसधानों की उपलब्धता और डायरेक्ट मार्केटिंग के ज़रिए किसान अच्छी आमदनी अर्जित कर सकते हैं। यही उनकी सफलता का कारण भी है।
एकीकृत खेती का मॉडल अपनाया (Integrated Farming Model)
सुपारी, कर्नाटक की सबसे महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसलों में से एक है। कर्नाटक में सुपारी की खेती (areca nut farming) बड़े पैमाने पर होती है। इसकी वजह ये है कि कर्नाटक में अन्य फसलों के मुकाबले, सुपारी की खेती ज़्यादा मुनाफ़ा देने वाली मानी जाती है। ये एक बहुवर्षीय फसल है। एक बार पौधा लगाने के बाद, 30 साल तक ये उपज देता है।
सालभर में औसतन एक पौधे में लगभग 18 हज़ार पत्तियां आती हैं। हर साल लगभग 6000 पत्तियां काटी जा सकती हैं। आशमा 3 एकड़ ज़मीन में सुपारी की खेती कर रही हैं। इसकी खेती से वो प्रति महीने 36,000 रुपये लाभ कमा रही हैं।
सुपारी के अलावा, आशमा दो एकड़ के क्षेत्र में केले की खेती भी करती हैं। केले की जी9 और राजापुरी किस्मों की खेती से उन्हें 50 हज़ार रुपये का मुनाफा हो जाता है। हालांकि, राजापुरी केले की पैदावार कम होती है, लेकिन बाज़ार में इसका दाम अच्छा मिलता है। उधर केले की जी9 किस्म ज़्यादा पैदावार देती है।
एक एकड़ ज़मीन पर पर वो कई तरह की सब्ज़ियों की खेती भी कर रही हैं। एक एकड़ में ही लोबिया की खेती से उन्हें प्रति सीज़न करीब 15 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा हो जाता है। इसके अलावा उन्होंने अमरूद, करी पत्ता और नींबू के पौधे भी लगाए हुए हैं, जो घरेलू खपत के साथ ही अतिरिक्त आय भी देते हैं।
उन्होंने खेत की मेड़ों के किनारे नारियल, मिलिया दुबिया, ड्रमस्टिक और नीम के पौधे भी लगाए हुए हैं। नारियल के 200 पौधों से उन्होंने प्रति माह 50 हज़ार रुपये का लाभ हो जाता है। उन्होंने फ़ार्म के चारों तरफ़ तारबंदी की हुई है।
पशुपालन से ही हर महीनें 30 हज़ार रुपये की कमाई
आशमा पांच भैंसें, एक होल्सटीन फ्रिसियन नस्ल की गाय(HF Cows), तीन बकरियां और 10 पक्षियों का पालन पोषण भी करती हैं। इनके अपशिष्ट से खाद तैयार करती हैं। पशुधन इकाई से ही आशमा प्रति माह लगभग 30 हज़ार रुपये कमा रही हैं।
इस तरह से आशमा खेती-किसानी की बारीकियों को समझते हुए पूरी रणनीति के साथ काम कर रही हैं। उनके फ़ार्म में पानी की व्यवस्था के लिए एक बोरवेल भी है।
आशमा के परिवार में कुल 6 सदस्य हैं। हर अपने-अपने तरीके से खेती के कामों में उनका हाथ बंटाता है। इससे श्रम लागत की बचत होती है। बिचौलियों पर निर्भर हुए बिना, आस-पास के बाज़ार में वो अपनी उपज बेचती हैं। आज वो अपने क्षेत्र की प्रगतिशील किसानों में शुमार है।
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