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प्रस्तावना: गुरुग्राम के किसान की नई सोच
हरियाणा के गुरुग्राम जिले के पाटौदी गांव के निवासी कृष्ण कुमार यादव ने अपनी 6-10 एकड़ भूमि पर कृषि के लिए नई तकनीकों को अपनाकर न केवल अपनी आय में वृद्धि की है, बल्कि कृषि के क्षेत्र में एक मिसाल भी कायम की है। जैविक खेती और वर्मीकम्पोस्ट के माध्यम से पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ने उन्हें गांव और राज्य के अन्य किसानों के बीच एक प्रेरणा बना दिया है।
वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग: एक हरित क्रांति की शुरुआत
कृष्ण कुमार ने पारंपरिक खेती से हटकर वर्मीकम्पोस्ट और जैविक खाद के उपयोग को अपनाया। उनका कहना है-
“रासायनिक खाद से मिट्टी की उर्वरता समय के साथ घट रही थी। वर्मीकम्पोस्ट न केवल मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखता है, बल्कि फसल की गुणवत्ता भी बेहतर बनाता है।”
उनकी भूमि पर सालाना 15-20 टन वर्मीकम्पोस्ट का उत्पादन होता है, जिसे वे स्थानीय बाजार में बेचते हैं। वर्मीकम्पोस्ट के इस्तेमाल से फसल की लागत में 30% तक कमी आई है और उत्पादन में 20% तक वृद्धि हुई है।
नए किसान प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत
कृष्ण कुमार ने अपने खेत पर एक छोटा प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू किया है, जहां वे किसानों को वर्मीकम्पोस्ट और जैविक खेती की तकनीकों के बारे में प्रशिक्षित करते हैं। उन्होंने अब तक 500 से अधिक किसानों को प्रशिक्षण दिया है।
विविध खेती का मॉडल
कृष्ण कुमार की खेती केवल जैविक खाद तक सीमित नहीं है। वे अपनी भूमि पर गेहूं, सरसों, और सब्जियों की खेती के साथ-साथ मौसमी फलों जैसे अमरूद, पपीता, और आम की खेती भी करते हैं। उनकी फसलें न केवल स्थानीय बाजारों में बिकती हैं, बल्कि कई बार बड़े रिटेल स्टोर्स और जैविक उत्पाद बेचने वाले प्लेटफॉर्म पर भी पहुंचाई जाती हैं।
उनकी फसल विविधता का फायदा यह है कि किसी एक फसल के खराब होने की स्थिति में दूसरी फसल उनकी आय को संतुलित रखती है। कृष्ण कहते हैं-
“विविध खेती ने न केवल मेरी आय को स्थिर रखा है, बल्कि मेरी भूमि की उर्वरता को भी बनाए रखने में मदद की है। जैविक तकनीकों के साथ विविध खेती करना पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।”
पॉलीहाउस तकनीक से खेती
इसके अलावा, उन्होंने अपनी खेती में पॉलीहाउस तकनीक का भी इस्तेमाल शुरू किया है, जिससे वे सालभर सब्जियों और फलों का उत्पादन कर पाते हैं। यह मॉडल उन्हें लगातार बाजार में ताजा उत्पाद उपलब्ध कराने में मदद करता है।
उन्होंने फसल अवशेषों का भी बेहतर उपयोग करना सीखा है। सरसों और गेहूं की कटाई के बाद बचा अवशेष वे वर्मीकम्पोस्ट बनाने में उपयोग करते हैं, जिससे लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है। इस मॉडल ने उन्हें सालाना 41-50 लाख रुपये की आय तक पहुंचने में मदद की है, और वे इसे आगे और बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
वर्मीकम्पोस्ट से लेकर जैविक उत्पादों की कहां मार्केट?
कृष्ण कुमार ने अपनी उपज का सीधा विपणन शुरू किया है। वे जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग को देखते हुए स्थानीय सुपरमार्केट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से बिक्री करते हैं। उनका कहना है-
“ग्राहक अब जैविक उत्पादों को प्राथमिकता दे रहे हैं। हमें बस सही गुणवत्ता और समय पर डिलीवरी सुनिश्चित करनी है।”
‘ग्रीन फार्म प्रोडक्ट्स’ के नाम से लेबल लॉन्च
उन्होंने अपनी ब्रांडिंग पर भी ध्यान दिया है और “ग्रीन फार्म प्रोडक्ट्स” के नाम से एक लेबल लॉन्च किया है, जो स्थानीय उपभोक्ताओं के बीच विश्वसनीयता बना चुका है। इसके अलावा, वे स्थानीय साप्ताहिक बाजारों में भी अपनी उपज बेचते हैं, जहां ग्राहक सीधे उनसे उत्पाद खरीदते हैं। कृष्ण कुमार बताते हैं-
“मैंने देखा कि बाजार में बिचौलियों के कारण किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिलता। इसलिए मैंने सीधे बिक्री शुरू की, जिससे न केवल मुझे उचित मुनाफा मिला, बल्कि ग्राहकों को भी उचित मूल्य पर ताजे और जैविक उत्पाद मिले।”
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर सफलता की चर्चा करते हुए वे कहते हैं-
“हमने शुरुआत में छोटे ऑर्डर पूरे किए, लेकिन अब बड़े रिटेलर्स और ग्राहकों से सीधे संपर्क होने लगा है। ऑनलाइन बिक्री ने हमारे उत्पादों को दूर-दराज के इलाकों में पहुंचाने का रास्ता खोला है।”
मौजूद समय में, उनके उत्पादों की मांग गुरुग्राम और दिल्ली के अलावा अन्य मेट्रो शहरों में भी बढ़ रही है। उनके ग्राहक जैविक उत्पादों की गुणवत्ता और ताजगी को लेकर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं, जिससे उनका ग्राहक आधार तेजी से बढ़ रहा है।
कृष्ण कुमार का मानना है कि मार्केटिंग रणनीतियों और तकनीकी सहायता के साथ किसान अपने उत्पाद को एक ब्रांड में बदल सकते हैं। वे अन्य किसानों को भी प्रेरित करते हैं कि वे पारंपरिक तरीकों से हटकर डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर मॉडल अपनाएं और अपने मुनाफे को बढ़ाएं।
सरकारी सहायता और योजनाएं
कृष्ण कुमार ने अभी तक किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठाया है, लेकिन वे कहते हैं:
“सरकार को चाहिए कि वह वर्मीकम्पोस्ट और जैविक खेती के लिए सब्सिडी और बाजार की सुविधा प्रदान करे। इससे किसानों को अपनी तकनीक और उत्पादन में सुधार करने में मदद मिलेगी।”
भविष्य की योजनाएं
कृष्ण कुमार का लक्ष्य है कि वे हरियाणा के अधिक से अधिक किसानों को जैविक खेती से जोड़ें। इसके साथ ही, वे अपने वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन को बढ़ाकर राज्य के अन्य जिलों में इसका विपणन करना चाहते हैं।
निष्कर्ष
कृष्ण कुमार यादव की कहानी केवल एक किसान की सफलता की नहीं, बल्कि पर्यावरण के प्रति एक जिम्मेदार दृष्टिकोण की भी है। उनकी मेहनत, नई तकनीकों का इस्तेमाल और जैविक खेती के प्रति उनका जुनून अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया है। उनका मानना है कि यदि किसान नई तकनीकों को अपनाएं, तो वे न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि मृदा और पर्यावरण को भी स्वस्थ रख सकते हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।