केमिकल मुक्त और गौधन युक्त खेती किसानों को कितना लाभ दे सकती है, इसका जीता जागता उदाहरण हैं मध्य प्रदेश के बैतूल ज़िले के बघोली ग्रामवासी जयराम गायकवाड़। जयराम अपने पिछले 22 साल खेती को समर्पित कर चुके हैं और ये सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। अपनी कुल 30 एकड़ ज़मीन में से 10 एकड़ ज़मीन पर वो परंपरागत यानी जैविक खेती करते हैं। आज की तारीख में वो खेती से जुड़े कार्यों से सालाना 35 लाख रुपये का मुनाफ़ा कमा रहे हैं। ये जयराम गायकवाड़ की कई साल की मेहनत, लगन और संयम का नतीजा है। 5 एकड़ में वो मुख्य रूप से गन्ने की खेती करते हैं। इसके अलावा, 2 एकड़ में वर्मीकम्पोस्ट यूनिट, गौशाला और गोबर गैस प्लांट लगाए हुए हैं। डेढ़ एकड़ में गेहूं और बाकी बचे डेढ़ एकड़ में जैविक सब्जियां उगाते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया ने जयराम गायकवाड़ से उनके खेती के अनुभवों के बारे में ख़ास बात की।
परंपरागत खेती को दे रहे बढ़ावा
जयराम गायकवाड़ को जैविक प्रमाणपत्र भी मिला हुआ है। भोपाल स्थित मध्य प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था से वो पंजीकृत हैं। जयराम गायकवाड़ कहते हैं कि आज से 70 साल पहले लोग परंपरागत खेती (जैविक खेती) किया करते थे। आज वो उसी विरासत को आगे ले जा रहे हैं। पहले परंपरागत खेती होती थी तो लोग 120 साल तक जीते थे, लेकिन आज के समय में कम उम्र में ही ब्लड प्रेशर और शुगर जैसी बीमारियां हो रही हैं। इसका कारण है केमिकल युक्त आहार।
कृषि अवशेषों को जलाते नहीं
जयराम बताते हैं कि उनके खेत से गन्ने और गेहूं का जो भी कृषि अवशेष निकलता है, वो उसे गौवंशों को खिलाते हैं। वो फसल के अवशेषों को जलाते नहीं। उन्होंने कहा कि ज़मीन में आग लगाना मानो माँ के आंचल में आग लगाने के समान है। ऐसी माँ जो पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराती है और उनका विकास करती है। जयराम सवाल उठाते हैं कि जिन DAP, यूरिया और केमिकल का इस्तेमाल हम धरती माँ पर कर रहे हैं, क्या वो हम अपनी माँ को खिलाएंगे? नहीं न। भूमि भी सजीव है तो कैसे सजीव का भोजन रसायन हो सकता है।
गौशाला में दूध का उत्पादन
जयराम गायकवाड़ डेयरी व्यवसाय भी चलाते हैं। उनके पास करीबन 70 गौवंश भी हैं, जिनमें देसी गायें, हाइब्रिड गायें और भैंसें हैं। उनकी गौशाला से रोज़ाना का करीबन डेढ़ सौ लीटर दूध का उत्पादन होता है। दिन में दो बार गौवंश से दूध निकाला जाता है। सुबह निकाले गए दूध को बाज़ार में सप्लाई करते हैं। शाम के दूध से मावा, दही, पनीर और छाछ तैयार किया जाता है। डेयरी उत्पादों से ही उन्हें करीबन 9 लाख रुपये सालाना की आमदनी हो जाती है।
गन्ने को प्रोसेस कर तैयार करते हैं गुड़
5 एकड़ क्षेत्र में गन्ने की खेती कर रहे जयराम गन्ने से जैविक गुड़ भी तैयार करते हैं। उनके इस गुड़ की अच्छी-ख़ासी डिमांड है। ये बाज़ार में 60 रुपये प्रति किलो के अच्छे दाम पर बिक जाता है। इस जैविक गुड़ को बनाने में साफ-सफाई का ख़ासतौर पर ध्यान रखा जाता है।
जयराम गायकवाड़ ने बताया कि कई वीआईपी लोगों को उनका गुड़ जाता है। कई लोग हमारे फ़ार्म से गुड़ ले जाते हैं और फिर आगे चार लोगों को बताते हैं। जयराम कहते हैं कि अगर आपका उत्पाद अच्छा होगा तो आपसे ग्राहक अपने आप जुड़ने लगेंगे।
गेहूं में करते हैं वैल्यू एडिशन
जयराम गायकवाड़ डेढ़ एकड़ क्षेत्र में गेहूं की जैविक खेती भी करते हैं। वो गेहूं की ग्रेडिंग कर उससे आटा बनाते हैं और फिर बाज़ार में बेचते हैं। इसके अलावा तुअर दाल की भी ग्रेडिंग करके बेचते हैं। जयराम कहते हैं कि वो अपने इन उत्पादों का दाम खुद तय करते हैं। मूल्य निर्धारण में श्रम कितना लगा, खुद का परिश्रम कितना रहा और मुनाफ़े का प्रतिशत देखकर मूल्य तय किया जाता है। गुणवत्ता से समझौता किये बिना आपका उत्पाद अच्छा है तो लोग उसका दाम देंगे।
वर्मीकम्पोस्ट भी करते हैं तैयार
गौवंश से निकलने वाले गोबर से जयराम गायकवाड़ वर्मीकम्पोस्ट भी तैयार करते हैं। साथ ही किसानों को केंचुए भी उपलब्ध करवाते हैं। जयराम कहते हैं कि वर्मीकम्पोस्ट व्यवसाय में ज़्यादा परिश्रम नहीं करना होता। बस अनुकूल वातावरण बनाए रखने की ज़रूरत होती है। बाकी काम केंचुए खुद करते हैं। अकेले केंचुए की बिक्री से ही उन्हें सालाना करीबन 10 लाख रुपये की आमदनी होती है।
लगाया हुआ है गोबर गैस प्लांट
गोबर गैस के इस्तेमाल से ईंधन का पैसा बचता है। जयराम गोबर गैस से मावा बनाने की मशीन, चारा काटने की मशीन और जनरेटर चलाते हैं। गोबर में ऊर्जा की मात्रा बहुत होती है। इस ऊर्जा को गोबर गैस प्लांट में फ़र्मेंटेशन के ज़रिए निकाला जाता है। इसके अलावा, गोबर गैस प्लांट से निकलने वाले गोबर को जैविक खाद की तरह उपयोग किया जाता है। जयराम गायकवाड़ बताते हैं कि गोबर से मीथेन गैस बाहर निकलने के बाद गोबर ठंडा हो जाता है। इस ठंडे गोबर का इस्तेमाल वो वर्मीकम्पोस्ट बनाने में करते हैं।
खेती मांगती है मेहनत, लगन और संयम
जयराम गायकवाड़ कहते हैं कि खेती ने उन्हें बहुत कुछ दिया है। आज अलग-अलग राज्यों के किसान और युवक उनका फ़ार्म देखने आते हैं। देश की अलग-अलग राज्य सरकारों की ओर से उनके फ़ार्म में विज़िट आयोजित किये जाते हैं। उनका फ़ार्म ‘मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना’ के लिए भी चुना गया है। मध्य प्रदेश की ‘मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना’ का उद्देश्य उन्नत कृषि केंद्रों/विशेषज्ञों के दौरे पर किसानों को भेजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को कई कृषि तकनीकों से अवगत कराना है।
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से दो साल पहले उन्हें ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड का दौरा करने का भी मौका मिला था। इस वाकये का ज़िक्र करते हुए जयराम गायकवाड़ कहते हैं कि उनकी उम्र 52 साल है। जब उन्होंने विदेश जाने से पहले अपना ब्लड प्रेशर और शुगर चेक करवाया था तो वो एकदम नॉर्मल आया। आज तक उन्होंने कभी ब्लड प्रेशर और शुगर की गोली नहीं खाई। जयराम कहते हैं कि ये अच्छा अनाज खाने का नतीजा है। अच्छा खाएंगे तो स्वस्थ रहेंगे।
तीन नौकरियां छोड़ीं और अपनाई जैविक खेती
पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री होल्डर जयराम गायकवाड़ का हमेशा से खेती के प्रति लगाव रहा है। खेती को अपना व्यवसाय चुनने के लिए उन्होंने तीन-तीन नौकरियां छोड़ीं। वो कहते हैं कि खेती ने उन्हें स्वतंत्र बनाया है। उन्हें किसी को अपने काम का हिसाब देने की ज़रूरत नहीं है।
जयराम आगे कहते हैं कि जो लोग मानते हैं कि खेती लाभ का व्यवसाय नहीं है, वो लोग खेती करते नहीं, बल्कि दूसरों से खेती करवाते हैं। उन्होंने कहा कि वो ख़ुद खेती करते हैं। किसी से अगर करवाते भी है तो अपनी नज़रों के सामने करवाते हैं।
कैसा है जैविक उत्पादों का मार्केट?
जयराम गायकवाड़ कहते हैं कि इस देश में खाने वालों की कमी नहीं, बल्कि उपलब्ध कराने वालों कमी है। वो कहते हैं-
“मैंने ऐसे भी लोग देखे हैं जो अपने खुद के घर में उगाई गई फल-सब्जियां नहीं खाते। ऐसे में आप किसी दूसरे को कैसे बोल सकते हो कि आप मेरा उत्पाद खाइए। मैं तो लोगों को बोलता हूं कि आप मेरे सारे उत्पाद खाइए, पेट भरकर खाइए और गारंटी मैं लेता हूं। लोग अगर ऐसा करते हैं तो उन्हें अपना मार्केट ढूंढ़ने की ज़रूरत नहीं पड़ती। सरकार भी जैविक उत्पादों को बढ़ावा देने का काम कर रही है, लेकिन उससे पहले आपको भी अपने उत्पाद की गुणवत्ता पर काम करना होगा और उसे इस लायक बनाना होगा कि लोग उस पर विश्वास कर सकें।”
पारंपरिक खेती में लागत कम
जयराम गायकवाड़ कहते हैं कि पारंपरिक तरीके से खेती करेंगे तो लागत में यकीनन कमी आएगी। उन्होंने उदाहरण के तौर पर बताया कि वो अपने खेत से निकलने वाले अवशेषों को गौवंशों को खिलाते हैं। गौवंशों से प्राप्त होने वाले गोबर से गोबर गैस और वर्मीकम्पोस्ट तैयार करते हैं। इस तरह से उनका खेती में लगने वाला एक बड़ा खर्चा बचता है।
आगे वो कहते हैं कि रसायन इस्तेमाल करने का चलन तो करीबन 60 साल पहले आया, लेकिन उससे पहले भी तो लोग गेहूं, टमाटर, लौकी खाते थे। अब ज़रूरत है कि हम भारतीय फसलों का उत्पादन करें। उन्होंने बताया कि उनके पास परंपरागत लौकी के बीज हैं। ये देसी लौकी कीटरोधी है यानी कीटों का प्रभाव इस लौकी पर नहीं होता। जहां आप हाइब्रिड किस्म की ओर जाएंगे तो वहाँ कुछ न कुछ कीटों का प्रभाव रहेगा। जयराम सलाह देते हैं कि पहले एक-दो साल में अगर आपके जैविक उत्पादों को बड़ा बाज़ार नहीं मिला तो आप मार्केट मूल्य में उसे बेचना शुरू कीजिए। पहले लोगों के बीच अपने उत्पाद की पकड़ को मज़बूत बनाइए। उत्पाद अच्छा होगा तो लोग आगे चलकर उसका अच्छा दाम भी देंगे।
कई अवॉर्डस से सम्मानित
जयराम गायकवाड़ को परंपरागत जैविक खेती में उनके अभिनव कार्यों के लिए गुजरात सरकार द्वारा वाइब्रेंट गुजरात-2013 में सर्वश्रेष्ठ किसान पुरस्कार से सम्मानित किया गया। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा उन्हें ये सम्मान मिला। महिन्द्रा समृद्धि पुरस्कार और एमपी सरकार द्वारा गोपाल पुरस्कार जैसे कई अवॉर्डस से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है।
रोज़गार देने का माद्दा रखती है परंपरागत जैविक खेती
जयराम गायकवाड़ के फ़ार्म में कम से कम 10 लोग तो हर वक़्त काम में लगे रहते हैं। पीक सीज़न में ये संख्या 30 तक भी पहुंच जाती है। जयराम गायकवाड़ बताते हैं कि वो अपने इन साथी कामगारों को उचित दाम देते हैं। वो कहते हैं कि हमने सरकार से रोज़गार मांगा नहीं, बल्कि कइयों को रोज़गार देने का काम किया है।
जयराम गायकवाड़ कहते हैं कि ये विडंबना है कि किसान विश्वभर को अनाज उपलब्ध कराता है, लेकिन कोई कर्मचारी, बड़ा अधिकारी या बिज़नेसमैन अपने बच्चे को किसान नहीं बनाना चाहता। अनाज सबको चाहिए, लेकिन अनाज उगाने से कतराते हैं। अनाज, सब्जियां और फल-फूल, ये धरती माँ से ही मिलेगा, किसी फैक्ट्री से प्राप्त नहीं होगा। इसलिए खेती और किसान के महत्व को समझने की ज़रूरत है। आगे आने वाली पीढ़ी को इसके लिए तैयार करना भी ज़रूरी है।
उन्होंने बताया कि उनका बेटा रीवा स्थित पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय(College of Veterinary Science & Animal Husbandry, Rewa) से पढ़ाई कर रहा है। वो कभी अपने बेटे पर नौकरी के लिए ज़ोर नहीं डालते। बेटे को जॉब करनी है या नहीं, ये उसकी इच्छा है। वरना खेती से जुड़े अपने व्यवसाय को वो आज जिस मुकाम पर लेकर आये हैं, वो उसमें ही अपना करियर बना सकता है।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।