धीरेन्द्र कुमार का परिचय (Introduction)
धीरेन्द्र कुमार बिहार राज्य के दरभंगा जिले के बेलवाड़ा गांव के निवासी हैं। वह एक प्रगतिशील किसान हैं, जो मुख्यतः मखाने और सिंघाड़े की खेती करते हैं। उनका गांव बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में स्थित है, जहां हर साल बाढ़ का सामना करना पड़ता था। बाढ़ के कारण यहां के किसान अपने पारंपरिक तरीकों से खेती नहीं कर पाते थे और फ़सलों को भारी नुक़सान होता था।
लेकिन धीरेन्द्र कुमार ने इस कठिन परिस्थिति को एक अवसर में बदलने का साहस दिखाया। उन्होंने खेती के पारंपरिक तरीकों को छोड़कर मखाने की खेती के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाया। मखाने की खेती (Makhana cultivation) पानी में होती है, और बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में यह एक बेहतरीन विकल्प साबित हुआ। धीरेन्द्र ने अपने मेहनत और नयी सोच के साथ बाढ़ के दौरान भी कृषि को सफलतापूर्वक जारी रखा। इस प्रकार, धीरेन्द्र कुमार ने कृषि में नवाचार (innovation) को अपनाकर न केवल अपनी ज़िंदगी में बदलाव लाया, बल्कि आसपास के किसानों के लिए भी एक उदाहरण प्रस्तुत किया।
इंटर की पढ़ाई के बाद से खेती से जुड़ गए धीरेंद्र (Dhirendra joined farming after completing his intermediate studies)
धीरेंद्र कुमार एक किसान परिवार से आते हैं, जहां उन्होंने बचपन से ही खेती को क़रीब से देखा और समझा। उनके परिवार में खेती एक परंपरा रही है, और उन्होंने छोटी उम्र में ही खेतों में काम करते हुए खेती के महत्व को समझा। 2006 में इंटर पास करने के बाद वे पूरी तरह से खेती में जुट गए।
धीरेंद्र ने आगे की पढ़ाई जारी रखी, लेकिन साथ ही उन्होंने खेती को अपना मुख्य करियर और आजीविका का स्रोत बना लिया। वह हमेशा नए तरीके और तकनीकों को अपनाने के लिए तैयार रहते थे। खेती के पारंपरिक तरीके के अलावा, उन्होंने खेती में आधुनिक तकनीकों का उपयोग करने का निर्णय लिया। धीरे-धीरे उन्होंने अपने खेतों में नए-नए प्रयोग करना शुरू किया, जिससे न केवल उनकी खेती की गुणवत्ता में सुधार हुआ, बल्कि उनकी आय भी बढ़ी।
इसी दौरान, उन्होंने मखाने और सिंघाड़े की खेती की ओर कदम बढ़ाया, जो उनके गांव और आसपास के क्षेत्र में एक नई दिशा साबित हुई।
मखाने की खेती चुनने का कारण (Reasons for choosing makhana cultivation)
धीरेन्द्र कुमार के गांव में पहले किसान मुख्य रूप से गन्ना की खेती करते थे, लेकिन चीनी मिलों के बंद होने और बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण गन्ना की खेती में भारी नुक़सान हुआ। ऐसे में धीरेन्द्र ने मखाने की खेती (Makhana cultivation) को अपनाया, जो जलवायु परिवर्तन और बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए एक आदर्श विकल्प साबित हुआ।
2019 में, उन्होंने मखाने की खेती शुरू की, और उसी दौरान उन्होंने मखाने की खेती (Makhana cultivation) के फ़ायदे और नुक़सान के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। धीरे-धीरे वे इस क्षेत्र में प्रगति करने लगे और आज वे मखाने की खेती (Makhana cultivation) के एक प्रमुख उदाहरण बन गए हैं।
मखाने की खेती और अन्य फ़सलों का मिश्रण (Makhana Cultivation and other crops)
धीरेन्द्र कुमार ने बताया कि उनके खेतों में मखाने और सिंघाड़े की खेती के साथ-साथ मछलियां भी जमा हो जाती हैं, जो बाढ़ के समय खेतों में आती हैं। इससे अक्टूबर-नवंबर के माह में मछलियों से अतिरिक्त आय प्राप्त होती है। एक एकड़ में मखाना, सिंघाड़ा और मछलियों से वे ₹1 लाख से अधिक की आय प्राप्त कर लेते हैं। वहीं रबी सीजन में गेहूँ, दलहन, तिलहन और मवेशी के लिए हरे चारे की फ़सल भी उगाई जाती है, जिससे खेतों की उर्वरकता भी बढ़ती है।
कोरोना काल में मखाने की खेती का योगदान (Contribution of Makhana cultivation during Corona period)
कोरोना महामारी के दौरान जब लोग बेरोज़गार होकर गांव लौटे, तो खेती ने ही उन्हें रोज़गार का माध्यम प्रदान किया। धीरेन्द्र ने इन लोगों को मखाने की खेती (Makhana cultivation) के फ़ायदे समझाए और उन्हें प्रशिक्षण दिया। इसके साथ ही, बिहार सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारी भी उन्होंने किसानों तक पहुँचाई।
अन्य फ़सलों का उत्पादन और बांस की खेती (Production of other crops and cultivation of bamboo)
धीरेन्द्र कुमार बेकार पड़ी बंजर ज़मीन पर बांस की खेती और मोटे अनाज जैसे बाजरा, कौंनी, कोदो, मरुआ आदि की खेती भी कर रहे हैं। इसके अलावा, वे मणिपुरी काला धान, काला नमक, सुगंधित बासमती धान, पूसा बासमती धान और बायो-फोर्टीफाइड गेहूँ की खेती भी करते हैं। इन फ़सलों के बीज अन्य किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं।
वे मशरूम उत्पादन के क्षेत्र में भी अग्रणी हैं और मखाना बीज बिहार सरकार को भी उपलब्ध करवा रहे हैं, जो किसानों के बीच वितरित किया जा रहा है।
सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)
धीरेन्द्र कुमार की कड़ी मेहनत और नवाचार को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है:
- जिला स्तर पर पुरस्कार: मखाने की खेती के लिए ‘अभिनव किसान पुरस्कार’ (2020), डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा से।
- राज्य स्तर पर पुरस्कार: उत्तम कृषक पुरस्कार, जैविक उर्वरक और बायो-प्रोडक्ट के उपयोग से अच्छे उत्पादन और आर्थिक स्थिति के लिए।
- राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार: ICAR द्वारा ‘इनोवेटिव फार्मर अवार्ड’ (2023) और कई अन्य पुरस्कार।
सरकारी और गैर सरकारी योजनाओं का लाभ
धीरेन्द्र कुमार ने कई सरकारी योजनाओं का लाभ भी उठाया है:
- मखाने की खेती के लिए सब्सिडी: ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ योजना के तहत ₹52,000 की सब्सिडी मिली।
- विद्युत पंप की सब्सिडी: कृषि विभाग द्वारा 2 HP इलेक्ट्रिक पंप की स्थापना के लिए सब्सिडी मिली।
- तकनीकी सहायता: कृषि विज्ञान केंद्र जाले और मखाना अनुसंधान केंद्र, दरभंगा से तकनीकी सहायता मिली।
- प्रशिक्षण और एक्सपोजर: ATMA और NABARD द्वारा कृषि पर विभिन्न विषयों पर प्रशिक्षण दिया गया, साथ ही CCS NIAM, जयपुर और CIPHET, लुधियाना का भी एक्सपोजर मिला।
अन्य किसानों के लिए प्रेरणा (Inspiration for other farmers)
धीरेन्द्र कुमार की सफलता ने कई अन्य किसानों को भी प्रेरित किया। पहले बाढ़ और सूखा के कारण खेत छोड़ने वाले किसान अब मखाने और सिंघाड़े की खेती को अपना रहे हैं। धीरेन्द्र ने साबित कर दिया है कि अगर सही तकनीक अपनाई जाए तो जलवायु परिवर्तन और बाढ़ जैसी समस्याओं को अवसर में बदला जा सकता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
धीरेन्द्र कुमार की कहानी यह साबित करती है कि कृषि में नवाचार और आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके किसी भी समस्या का समाधान पाया जा सकता है। मखाने की खेती (Makhana cultivation) के माध्यम से उन्होंने न केवल अपनी ज़िंदगी बदली, बल्कि दूसरों के लिए भी एक आदर्श प्रस्तुत किया। उनका यह सफर यह दिखाता है कि मेहनत और सही दिशा में किए गए प्रयासों से कृषि क्षेत्र में भी अपार सफलता पाई जा सकती है।
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