खेती के साथ ही उससे जुड़ी अन्य गतिविधियों को वैज्ञानिक तरीके से करके किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। मणिपुर के थौबल ज़िले का गांव लैफ्राकपम सब्ज़ी उत्पादन के लिए मशहूर है। यहां हर घर में लोग सब्ज़ी का उत्पादन करते हैं और घरेलू उपयोग के बाद उसे अच्छी कीमत पर बाज़ार में बेचते भी हैं। इसी गांव की वैरोकपम ओंगबी बिमोला देवी भी सब्ज़ियों की खेती के साथ ही अन्य कृषि गतिविधियों में भी शामिल थी, मगर वैज्ञानिक तकनीक की जानकारी न होने की वजह से उन्हें कड़ी मेहनत के बावजूद अच्छी आमदनी नहीं हो रही थी। फिर एक दिन वो कृषि विज्ञान केन्द्र के संपर्क में आईं और उनकी ज़िंदगी बदल गई।
हिम्मत नहीं हारी
वैरोकपम ओंगबी बिमोला देवी ने 58 साल की उम्र में खेती की वैज्ञानिक पद्धति अपनाकर सफलता पाई। खेती तो वो कई साल से करती आ रही हैं, मगर सही जानकारी न होने के कारण आमदनी बहुत कम थी, मगर अब एकीकृत कृषि प्रणाली अपनाने से उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार हुआ है और वो अपने क्षेत्र की सफल महिला किसान बन चुकी हैं। शुरुआत में सब्ज़ियों की खेती और अन्य कृषि गतिविधियों से कड़ी मेहनत के बाद भी अधिक फ़ायदा नहीं हो रहा था, मगर बिमोला देवी ने हिम्मत नहीं हारी और प्रयास जारी रखा।
कृषि विज्ञान केन्द्र से मिली मदद
कृषि विज्ञान केन्द्र थौबल ने लैफ्राकपम गांव में ट्रेनिंग सेशन का आयोजन किया। ये कार्यक्रम बिमोला देवी की ज़िंदगी का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। यहां से उन्हें एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming Model) और खेती की अन्य वैज्ञानिक पद्धतियों की जानकारी मिली। उनके पास एकीकृत कृषि के सभी प्रमुख घटक जैसे स्थानीय गायों की नस्लें, सूअर, पोल्ट्री, सब्ज़ी बागान और चावल के खेत थे। उनके पास मौजूद चीज़ों को देखने के बाद कृषि विज्ञान केन्द्र ने उन्हें प्रशिक्षण देने का फैसला किया। कई विषयों पर ट्रेनिंग देने के साथ ही उन्हें पॉलीहाउस सुविधा, बागवानी विभाग की ओर से वर्मीकंपोस्ट यूनिट, चावल बीज उत्पादन पर फ़ील्ड ट्रेनिंग दी गई। चावल की कटाई के बाद उसी खेत में रबी फसल के रूप में मसूर की दाल, मटर और सरसों की खेती की गई।
उत्साहजनक रहा परिणाम
पॉलीहाउस में किंग चिली (मिर्च) के उत्पादन से उन्हें अच्छी आमदनी हुई। इसके अलावा, फसल के रूप में चावल उत्पादन की बजाय उन्हें चावल के बीज उत्पादन से अधिक फ़ायदा हुआ। सुअर पालन यूनिट से भी अच्छी आय प्राप्त हुई। वो अच्छी तरह परिवार का खर्च चलाने के साथ ही बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में भी सक्षम है। उनके परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ी और अब उनकी पहचान एक सफल और प्रगतिशील महिला किसान के रूप में है।
बेस्ट महिला किसान
खेती में उनके योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान मिल चुके हैं। 2017 में मणिपुर SAMETI की ओर से उन्हें सर्वश्रेष्ठ किसान सम्मान दिया गया। इसके अलावा, कृषि विज्ञान केन्द्र, थौबल की ओर से भी सर्वश्रेष्ठ महिला किसान अवॉर्ड से नवाज़ा गया। 2019-20 में उन्हें डीडीके सर्वश्रेष्ठ महिला किसान पुरस्कार मिला, जिसके तहत 2 लाख रुपये नकद इनाम मिला।
बिमोला देवी की सफलता देखकर आसपास के अन्य किसान भी उनके नक्शेकदम पर चलने के लिए प्रेरित हुए। बिमोला देवी ने महिला किसानों को आगे बढ़ने में मदद करने के मकसद से क्लब की भी स्थापना की।
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