Millets Farming – मिलेट्स की खेती: मिलेट्स जिसमें ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाज आते हैं, उसे कभी गरीबों का भोजन माना जाता था, लेकिन इसके स्वास्थ्य लाभ और पौष्टिकता को देखते हुए अब सरकार भी मिलेट्स की खेती यानि मोटे अनाज की खेती और इससे बने उत्पादों को बढ़ावा दे रही है। इसी कड़ी में राजस्थान के कई किसान अब न सिर्फ़ मिलेट्स उगा रहे हैं, बल्कि उससे ढेर सारे पौष्टिक और स्वादिष्ट उत्पाद बनाकर बेच भी रहे हैं।
मिलेट्स की खेती से जहां लोगों को स्वस्थ विकल्प मिल रहे हैं, वहीं किसानों की आमदनी बढ़ रही है। मिलेट्स उत्पादों को बढ़ावा देने वाले किसानों में एक नाम जोधपुर के किसान रावलचंद पंचारिया (Rawal Chand Panchariya) का भी है। वो न सिर्फ़ मिलेट्स उगा रहे हैं, बल्कि इसके मूल्य संवर्धन उत्पाद (Value Added Products) भी बनाते हैं। इसके साथ ही वो कई अन्य फसलों की भी सफल खेती कर रहे हैं। ख़ास बात ये है कि वो जैविक खेती करते हैं।
मूल्य संवर्धन उत्पाद और मिलेट्स की खेती से जुड़े कई पहलुओं पर रावलचंद पंचारिया ने बात की किसान ऑफ़ इंडिया की संवाददाता दीपिका जोशी के साथ।
फसल की सेल्फ़ लाइफ़ बढ़ जाती है
साल 2023 को सरकार ने इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स घोषित किया है। मिलेट्स की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक स्वस्थ अनाज और इससे बने उत्पाद पहुंचे। रावलचंद पंचारिया का कहना है कि बाजरा जो मिलेट् में आता है, उसकी सेल्फ लाइफ आटे के रूप में बहुत कम होती है यानी आटा जल्दी खराब हो जाता है। इसलिए उन्होंने बाजरे का दलिया तैयार किया है, जो 6 महीने तक खराब नहीं होता। इसके अलावा, बाजरे के लड्डू 4 महीने तक चलते हैं, जबकि मठरी 2 महीने और नमकीन 3 महीने तक खराब नहीं होती।
मिलेट्स की प्रोसेसिंग के हैं फ़ायदेमंद
रावलचंद का कहना है कि फसल उगाने के साथ ही अगर उसकी प्रोसेसिंग की जाए तो किसानों को अधिक फ़ायदा होगा। उन्होंने विभिन्न उत्पादों के मूल्य संवर्धन के लिए प्रोसेसिंग यूनिट अपने फ़ार्म पर ही बनाई है और वहीं सारे उत्पाद बनाए जाते हैं। उनके उत्पाद सभी सरकारी मानकों पर खड़े उतरते हैं और जांच के बाद ही इसे वो बाज़ार में लाते हैं। उनके तैयार किए उत्पादों में शामिल हैं- बाजरे के लड्डू, बाजरे के कुरकुरे, मठरी, नमकीन और बिस्कीट। आंवले के लड्डू, शरबत, कैंडी, अचार की भी अच्छी डिमांड है। नींबू का शरबत, नींबू का बिना तेल का अचार और टमाटर का अचार बनाते हैं। इसके साथ ही, वो देसी गाय का घी भी बनाते हैं।
फसलों की विभिन्न किस्में
पश्चिमी राजस्थान में तापमान अधिक है। इसलिए रावलचंद पंचारिया ऐसी किस्मों की तलाश में रहते हैं जिससे कम पानी में भी उत्पादन अच्छा हो सके। नई किस्में उगाने का प्रयास वो हमेशा करते रहते हैं। अब तक वो शकरकंद की 5 किस्में, गाजर की 2 और प्याज की 3 किस्में ईज़ाद कर चुके हैं। उनकी खेती की ख़ासियत है कि वो पूरी तरह से जैविक है और इसके लिए सारे ज़रूरी इनपुट खाद वग़ैरह वो खुद अपने फ़ार्म में ही तैयार करते हैं।
रोज़गार के अवसर
रावलचंद का कहना है कि खेती और प्रोसेसिंग यूनिट में उनके परिवार के साथ ही 3 और परिवारों के लोग भी जुड़े हैं। इसके अलावा, रोज़ाना 10 महिलाएं आती हैं जो सारे उत्पाद बनाती हैं। इस तरह वो कई लोगों को रोज़गार भी दे रहे हैं।
किसानों को संदेश
रावलचंद अपने साथी किसानों को संदेश देते हैं कि अपनी मिलेट्स की खेती द्वारा उगाई हुई फसल का मूल्य संवर्धन करके उत्पाद उन्हें खुद ही बेचने चाहिए। इससे किसान सफल बनेंगे। जैसे सरसों उगा रहे हैं, तो उसका तेल बनाकर बेचिए, मूंगफली का तेल निकालिए।बाजरे को कभी गरीबों का अनाज कहा जाता था, लेकिन अब इसकी पौष्टिकता जानकर हर कोई इसे अपने भोजन में शामिल करना चाहता है।
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