गाजर की खेती कर रहे, सफल किसान मोहनदीप सिंह की प्रेरणादायक कहानी पढ़ें 

मोहनदीप सिंह, जिन्होंने इंजीनियरिंग छोड़कर गाजर की खेती में नई पहचान बनाई। उनकी कहानी मेहनत और जुनून की मिसाल है, जो सपनों को सच करने की प्रेरणा देती है।

गाजर की खेती Carrot Farming

प्रस्तावना

आज कल के जमाने में जब हर कोई शहरों की ओर भाग रहा है, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो अपने गांव और खेती की ओर लौट रहे हैं। ऐसी ही एक दिलचस्प कहानी है पंजाब के मोहनदीप सिंह की, जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री होने के बावजूद गाजर की खेती करना चुना।

उनकी कहानी बताती है कि सपनों को पूरा करने के लिए कभी देर नहीं होती। बचपन से ही खेती में रुचि रखने वाले मोहनदीप ने आखिरकार अपने दिल की सुनी और एक बड़ा फैसला लिया। आइए जानते हैं कैसे एक इंजीनियर ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए नई राह चुनी और खेती को अपना करियर बनाया।

मोहनदीप सिंह जी का परिचय (Introduction)

मोहनदीप सिंह पंजाब के लुधियाना जिले के माछीवाड़ा नगर के निवासी हैं। बचपन से ही उन्हें खेती में गहरी रुचि थी। उनके माता-पिता खुद खेती करते थे, लेकिन वे चाहते थे कि मोहनदीप इंजीनियरिंग करें और एक बेहतर करियर बनाएं। माता-पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए, मोहनदीप ने जूनियर इंजीनियर का डिप्लोमा और इसके बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। हालांकि, इस दौरान उन्हें एहसास हुआ कि उनका मन इस क्षेत्र में बिल्कुल नहीं लगा। 

मोहनदीप के दिल में हमेशा खेती का जुनून था। वे अपने गांव की हरियाली और खेतों की खूबसूरती से हमेशा प्रेरित होते रहे। इसी कारण उन्होंने तय किया कि वे अपनी असली रुचि की ओर लौटेंगे और गाजर की खेती को अपने करियर का हिस्सा बनाएंगे।

विदेश में सीखी आधुनिक कृषि (He learned Modern Agriculture in  Abroad)

इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी होने के बाद मोहनदीप को नौकरी का प्रस्ताव मिला, लेकिन उनका मन कृषि में कुछ बड़ा करने का था। उन्होंने अपने माता-पिता से खुलकर कहा कि वे नौकरी नहीं करना चाहते और अपने सपनों को साकार करने का फैसला किया। इसके बाद वे नीदरलैंड चले गए, जहां उन्होंने शुरुआत में एक रेस्तरां में काम किया। लेकिन फिर भी, उनका मन हमेशा कृषि की ओर ही लगा रहता था। 

नीदरलैंड में रहते हुए उन्होंने एक मित्र के कृषि फ़ार्म में काम करना शुरू किया। यह फ़ार्म 5 एकड़ में फैला हुआ था और यहां लगभग 40 भारतीय कार्य कर रहे थे। इस फ़ार्म में फूल, गाजर की खेती और टमाटर जैसी फ़सलों की खेती की जाती थी। मोहनदीप ने 2007 से 2011 तक इस फ़ार्म पर काम करते हुए कृषि के क्षेत्र में गहन अनुभव प्राप्त किया। यहां उन्होंने कृषि में नई तकनीक के बारे में सीखा, जो उनके भविष्य के लिए बेहद उपयोगी साबित हुआ।

भारत लौटकर की कृषि की शुरुआत (Started Farming after returning to India)

जब मोहनदीप ने अपने मित्र से कृषि के बारे में अपने विचार साझा किए, तो उन्होंने भारत की मिट्टी की गुणवत्ता के बारे में बताया और भारत लौटकर खेती करने की सलाह दी। यह सुनकर मोहनदीप को एक नई दिशा मिली। 2011 में, वे भारत लौटे और अपने माता-पिता की सहमति से गाजर की खेती की शुरुआत की।

मोहनदीप बताते हैं कि नीदरलैंड जाने से पहले वे गाजर की खेती कर रहे थे, लेकिन विदेश जाने के कारण यह काम रोकना पड़ा था। वापस आकर, उन्होंने अपनी पुरानी खेती को फिर से शुरू किया और धीरे-धीरे अपने खेत का विस्तार करते गए। उन्होंने हर साल अपनी ज़मीन में 10 एकड़ की वृद्धि की, जिससे आज वे 70 एकड़ से अधिक भूमि में गाजर की सफल खेती कर रहे हैं। उनकी मेहनत और लगन ने उन्हें इस क्षेत्र में एक सफल किसान बना दिया है।

गाजर की खेती में नई तकनीक और विविधता (New technology and variety in carrot cultivation)

बाज़ार में विविधता लाने के उद्देश्य से, मोहनदीप ने लाल गाजर के अलावा काली, सफ़ेद, पीली और नारंगी गाजर की खेती भी शुरू की है। इसके लिए वे विदेश से विशेष बीज मंगवाते हैं, जिससे उनकी फ़सल में न केवल विविधता बढ़ी है, बल्कि बाज़ार में उनकी मांग भी तेजी से बढ़ी है। 

2014 में, मोहनदीप के खेत में प्राकृतिक परागण (Natural Pollination) के जरिए गाजर की खेती के लिए एक नई क़िस्म विकसित हुई, जिसे उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय को परीक्षण के लिए सौंपा। यह नई क़िस्म किसानों के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हो रही है, और मोहनदीप अब इसके बीज बड़ी मात्रा में बेचते हैं।

इसके अलावा, उनके पास नीदरलैंड से लाई गई एक विशेष क़िस्म भी है, जो 44 डिग्री तापमान में भी टिकाऊ है। इस तरह, वे अपने ग्राहकों को 20 जुलाई तक ताज़ा गाजर की आपूर्ति करते हैं। इन सभी प्रयासों से उन्होंने कृषि क्षेत्र में एक नई मिसाल क़ायम की है।

गाजर की विशेषता और बाज़ार (Specialty and Market of their Carrots)

मोहनदीप की गाजर देश-विदेश में मान्यता प्राप्त है। उनकी गाजर की गुणवत्ता (quality) इतनी अच्छी है कि इसे देखकर अन्य राज्यों की गाजर भी पीछे रह जाती हैं। उनके प्रमुख ग्राहकों में रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं, जो उनके उत्पादों की विश्वसनीयता और गुणवत्ता को उच्च मानती हैं। 

गर्मियों के मौसम में, जब 10 मई तक अधिकांश ताज़ा गाजर बाज़ार से समाप्त हो जाती हैं, तब भी मोहनदीप की गाजर जुलाई तक बाज़ार में उपलब्ध रहती है। यह उनकी मेहनत और कृषि में नई तकनीक का परिणाम है। उनकी गाजर न केवल स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि पोषण मूल्य में भी उच्च होती हैं, जिससे ग्राहक इन्हें प्राथमिकता (Priority) देते हैं। यह सभी पहलू मिलकर उनके उत्पाद को बाज़ार में एक विशेष पहचान दिलाते हैं।

विविध फ़सलों का उत्पादन (Production of diverse crops)

मोहनदीप सिंह अपनी 85 एकड़ से अधिक ज़मीन में केवल गाजर की खेती ही नहीं करते, बल्कि वे अपनी फ़सल विविधता को बढ़ाने के लिए फ्रेंच बीन, हरी मिर्च और मक्का जैसी अन्य फ़सलें भी उगाते हैं। इससे न केवल उनकी आय में वृद्धि होती है, बल्कि मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहती है। खेती में वे रासायनिक दवाओं का न्यूनतम प्रयोग करते हैं, केवल बुवाई से पहले खरपतवारनाशक का छिड़काव करते हैं। इसके अलावा, फॉस्फोरस, पोटाश और नाइट्रोजन का संतुलित प्रयोग करके वे अपनी फ़सलों की सेहत को बनाए रखते हैं, जिससे उत्पाद की गुणवत्ता और बढ़ जाती है।

सिंचाई की व्यवस्था (Irrigation system)

उनका फ़ार्म सतलज नदी के निकट स्थित है, जहां 15-16 फीट की गहराई पर पानी उपलब्ध है। वे ट्यूबवेल का प्रयोग करते हैं, जो उन्हें सिंचाई के लिए निरंतर पानी प्रदान करता है। इसके साथ ही, वे सौर ऊर्जा का भी उपयोग करते हैं, जिससे बिजली की कमी के दौरान भी सिंचाई में कोई बाधा नहीं आती। इस तरीके से, मोहनदीप न केवल अपनी फ़सलों को उचित मात्रा में पानी देते हैं, बल्कि पर्यावरण के प्रति भी अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं।

आर्थिक पहलू (Economic aspects)

गाजर की खेती में प्रति एकड़ लगभग 80 हज़ार रुपये की लागत आती है, जिसमें बीज, श्रम और डीजल के ख़र्च शामिल हैं। औसत उत्पादन प्रति एकड़ 200 क्विंटल होता है, जो कि एक अच्छा मुनाफ़ा देने वाला आंकड़ा है। सभी फ़सलों से मिलाकर उनकी वार्षिक आय 51 से 99 करोड़ रुपये के बीच रहती है, जो उनकी मेहनत और स्मार्ट कृषि में नई तकनीक का परिणाम है।  उन्होंने कभी भी गाजर 7 रुपये प्रति किलो से कम दाम पर नहीं बेची, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वे अपने उत्पाद की गुणवत्ता और मूल्य को प्राथमिकता देते हैं।

विपणन और चुनौतियां (Marketing and challenges)

शुरुआत में विपणन में कुछ चुनौतियां आईं, जैसे कि बाज़ार में प्रतिस्पर्धा (Competition) और ग्राहक तक पहुँचने में कठिनाई। लेकिन अब उनका बाज़ार नेटवर्क मज़बूत हो चुका है, और उनकी गाजर की मांग विदेशों में भी बढ़ गई है। वे अपनी गाजर का निर्यात हवाई और समुद्री मार्ग से करते हैं, ख़ासकर यूरोप, कनाडा और खाड़ी देशों में। इन देशों में उनकी गाजर को सर्वोत्तम मूल्य प्राप्त होता है, जो उनके व्यवसाय को और अधिक लाभदायक बनाता है। इस प्रकार, विपणन के क्षेत्र में उन्होंने चुनौतियों का सामना करते हुए एक सफल मॉडल स्थापित किया है।

सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)

उनकी उत्कृष्ट उपलब्धियों के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ सब्जी किसान पुरस्कार 2024 (Best Vegetable Farmer Award 2024) और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से ‘सरदार उजागर सिंह ढालीवाल पुरस्कार’ प्राप्त हो चुका है। यह पुरस्कार उनकी मेहनत, समर्पण और कृषि के प्रति उनके नवाचारों (Innovations) की पुष्टि करते हैं, जो उन्हें कृषि क्षेत्र में एक प्रेरणा स्रोत बनाते हैं।

भविष्य की योजनाएं (His Future plans)

मोहनदीप अपने व्यवसाय का विस्तार खाड़ी देशों में करना चाहते हैं, ताकि वे अधिक से अधिक किसानों को रोजगार दे सकें। उनका लक्ष्य न केवल अपनी गाजर की खेती उत्पादन को बढ़ाना है, बल्कि स्थानीय समुदायों को भी सशक्त (Empowered) करना है। इसके लिए वे नई तकनीकों का उपयोग करने और स्थानीय किसानों को प्रशिक्षित (Trained) करने की योजना बना रहे हैं। इससे न केवल उनकी आय बढ़ेगी, बल्कि कृषि क्षेत्र में नई संभावनाएं भी खुलेंगी।

नए किसानों के लिए उनका संदेश (His message to new farmers)

मोहनदीप सिंह का मानना है कि खेती में असीम संभावनाएं हैं। उनका कहना है कि ईमानदारी और लगन से काम करने वाले को सफलता अवश्य मिलती है। वे नए किसानों को प्रेरित करते हैं कि असफलता से नहीं डरना चाहिए और प्रयास जारी रखना चाहिए। उनके अनुसार, इस क्षेत्र में सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं है; केवल कड़ी मेहनत और समर्पण से ही सफलता हासिल की जा सकती है। यह संदेश सभी युवा किसानों के लिए एक प्रेरणा है कि वे अपने सपनों को साकार करने में पीछे न हटें।

निष्कर्ष (Conclusion)

13 वर्षों की सफल खेती के बाद भी, मोहनदीप में सीखने की लालसा बनी हुई है। वर्तमान में, वे पंजाब विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. कृषि कर रहे हैं। वे अपने दोनों बच्चों को भी कृषि की शिक्षा दिलाना चाहते हैं, ताकि वे इस क्षेत्र में और आगे बढ़ सकें। मोहनदीप अपने माता-पिता के कृषि कार्य से प्रेरित होकर आज एक सफल किसान बने हैं और इससे बेहद खुश हैं। उनकी यात्रा इस बात का उदाहरण है कि अगर मन में जुनून और मेहनत हो, तो किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।

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