वाशिंगटन सुंदर… किसी समय अनजान रहे इस नाम को लोगों ने सुना भी है और इस नाम के चेहरे को देखा भी है। ये नाम अचानक से उस समय सामने आय़ा जब ब्रिस्बेन में टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की जमीन पर पटखनी दी। उस मैच में एक लड़के ने गेंद और बल्ले से शानदार प्रदर्शन करते हुए अपने पहले टेस्ट डेब्यू आगाज किया।
वो लड़का कोई और नहीं बल्किन वाशिंगटन सुंदर है। चलिए आज इनके संघर्ष और मेहनत की कहानी आपको बताते हैं..
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किस्मत थी मेहरबान इसीलिए मिल गया मौका
वो कहते हैं ना समय बदलते देर नहीं लगती। किस्मत चाहे तो राजा को रंक और रंक को राजा बना दे। वहीं सुंदर के साथ हुआ। दरअसल वाशिंगन सुंदर पहले से टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं थे लेकिन तीसरे टेस्ट में रविचंद्रन अश्विन के चोटिल होने और फिर आखिरी टेस्ट में बने हालातों ने उन्हें टेस्ट में डेब्यू करने का मौका दे दिया। वाशिंगटन सुंदर के टेस्ट करियर की शुरुआत की कहानी जितनी मजेदार है उतनी ही दिलचस्प उनकी जिंदगी की कहानी भी है।
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एक कान से सुन नहीं पाते हैं सुंदर
अपने बल्ले की आवाज से गेंदबाजों को बेहरा करने वाले सुंदर खुद एक कान से सुन नहीं पाते हैं। इस बारे में सुंदर ने खुद एक इंटरव्यू में कहा था। लेकिन इस कमजोरी को उन्होंने कभी अपने सपनों के बीच नहीं आने दिया और हमेशा से मौके का फायदा उठाते रहे।
काम की तरह नाम भी अनोखा
दरअसल वाशिंगटन सुंदर के घर से कुछ ही दूरी पर एक रिटायर फौजी रहा करते थे, जिन्हें क्रिकेट का बहुत शौक था। वो खेल देखने के लिए मरीना ग्राउंड में आया करते थे। सुंदर के पिता काफी गरीब थे, इस दौरान वाशिंगटन ही उनके लिए स्कूल के कपड़े, किताबें लाते थे। उनकी फीस भी पीडी वाशिंगटन ही भरते थे। दोनों के बीच काफी गहरा रिश्ता था। इसीलिए सुंदर के पिता ने उनका नाम वाशिंगटन सुंदर रखा। इस बात का जिक्र सुंदर के पिता ने एक इंटरव्यू में किया था।