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हिमालय के दिल में बसा है सिक्किम और यहां के द्ज़ोंगू क्षेत्र के देसी लेप्चा समुदाय जो काफी लंबे वक्त से पारंपरिक जैविक खेती (Organic Farming) करता आ रहा है। ये लोग केमिकल फ्री, बारिश पर आधारित मिश्रित खेती को करते हैं जो उनकी सांस्कृतिक विरासत को गहराई से दिखाता है। लेप्चा समुदाय इस क्षेत्र की नाजुक वन-आधारित कृषि-पारिस्थितिकी को संरक्षित करते हैं। साथ ही अपनी आजीविका को बनाए रखे हुए हैं। ये लोग मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) करते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने सहयोगियों के साथ शुरू किया प्रोग्राम
सबसे ज़्यादा दबाव वाले मुद्दों में से सबसे अहम खरपतवार संक्रमण (Weed infestation) है। जो ख़ासतौर से सिक्किम हिमालय के हाई रेनफॉल वाले एरिया में, जहां सालाना बारिश (Annual rainfall) 3,000 मिमी से अधिक होती है। इसने मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती पेश की है। क्योंकि रासायनिक शाकनाशियों (Chemical Herbicides) के बिना खरपतवारों का प्रबंधन श्रम-गहन (Labor-intensive) और वक्त लेने वाला है। इसके अलावा, क्षेत्र का खड़ी ढलान वाला इलाका भारी जैविक खाद, जैसे कि खेत की खाद को खासतौर से मुश्किल बना देता है।
परिणामस्वरूप, द्ज़ोंगू जैसे दूरदराज के क्षेत्रों में किसानों ने मौसमी फसल उत्पादकता और समग्र कृषि संबंधित लाभ में चिंताजनक गिरावट देखी है। इन चुनौतियों के जवाब में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)-उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम केंद्र ने सिक्किम सरकार के बागवानी विभाग के सहयोग से 2021 की शुरुआत में जनजातीय उप योजना (TSP) के तहत एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शन कार्यक्रम शुरू किया।
सिक्किम सरकार की पहल से मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) को मिला बढ़ावा
सिक्किम सरकार की इस पहल का उद्देश्य क्षेत्र में आधुनिक कृषि तकनीकों और उच्च उपज वाली फसल किस्मों को पेश करना था, जिसका लक्ष्य कृषि से फायदा उठाने वाले लोगों में सुधार करना और युवा पीढ़ी के बीच मिर्च की जैविक खेती करने के लिए फिर से जगाना था। पिछले तीन सालों में, ये कार्यक्रम द्ज़ोंगू में लिंगडोंग-बारफोक, ही-ग्याथांग, ग्नोन-सांगडोंग और लुम गोर सांगटोक GPU एरिया के लगभग 237 किसानों तक पहुंच चुका है।
इस प्रोग्राम का केंद्र मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) के क्षेत्र में काम करना है। जिसमें उन्नत कृषि पद्धतियों का इस्तेमाल किया गया है जो क्षेत्र के जैविक खेती के स्वाभाव के अनुरूप हैं। इस पहल की सफलता की कुंजी मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) की दो किस्मों के ब्रीडर सीड (breeder seeds) से मिर्च की जैविक खेती की शुरूआत रही है।
अर्का मेघना (एफ1) और अर्का स्वेता किस्मों का मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) में इस्तेमाल
अर्का मेघना (एफ1) , जो पाउडर फफूंदी और मोज़ेक वायरस से सहनशील है और अर्का स्वेता, जो वायरस के प्रतिरोध के लिए जानी जाती है। इन किस्मों को क्षेत्र की जलवायु के लिए उनके इस्तेमाल और उपज बढ़ाने की उनकी क्षमता के आधार पर मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) के लिए चुना गया था।
उत्पादकता को और बढ़ाने के लिए इफको-सागरिका का पर्णीय (foliose) का इस्तेमाल इस कार्यक्रम में शुरू किया गया। जो कप्पाफाइकस अल्वारेज़ी (लाल शैवाल) और सारगासम स्वार्टज़ी (भूरा शैवाल) से पाया गया। ये एक तरल समुद्री शैवाल का अर्क है।
इस जैव-उत्तेजक को पौधे की बढ़ोत्तरी के तीन अहम चरणों में लगाया गया था। बीज को लगाना (seedling establishment) जो रोपाई के लगभग एक महीने बाद फूल आने से पहले और फूल आने के बाद।
इफको-सागरिका के इस्तेमाल से पौधे की छतरी की बढ़ोत्तरी में काफी वृद्धि हुई। सिक्किम हिमालय के उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में मल्चिंग मिर्च की जैविक खेती के लिए एक गेम-चेंजर साबित हुई है।
मानसून के महीनों के दौरान, इसने बहुत ज़्यादा खरपतवार की बढ़ोत्तरी को प्रभावी ढंग से दबा दिया, जिससे गहन निराई की ज़रूरत कम हो गई। मानसून के बाद के महीनों में, इसने अपशिष्ट की मिट्टी की नमी को संरक्षित किया, जिससे ये सुनिश्चित हुआ कि फसलों को पनपने के लिए पर्याप्त पानी मिले।
खरपतवार नियंत्रण और नमी संरक्षण के इस दोहरे फायदे ने बेहतर उपज और कृषि को फायदा पहुंचाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन तकनीकी हस्तक्षेपों के अलावा, कार्यक्रम ने मिर्च की जैविक खेती (Organic chili Farming) करने वाले किसानों को ICAR उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम केंद्र और लाइन विभाग के अधिकारियों से नियमित निगरानी और मार्गदर्शन प्रदान किया।
मिर्च की जैविक खेती से आदिवासी लेप्चा किसानों को मिला अच्छा आय स्त्रोत
इन प्रयासों के परिणाम शानदार (transformative) रहे हैं। मिर्च के पौधों में फूल जून के पहले पखवाड़े में आना शुरू हो गए और हर मौसम में औसतन तीन से छह बार तोड़े गए। बाज़ार मूल्य 100-120 रुपये प्रति किलोग्राम के बीच होने के कारण, कटाई अक्टूबर के बीच तक जारी रही, जिससे किसानों को एक बेहतर आय का स्रोत मिला।
इस कार्यक्रम का सबसे उल्लेखनीय प्रभाव कृषि अर्थशास्त्र पर पड़ा है। प्रति एकड़ के आधार पर गणना की गई जैविक मिर्च की खेती (Organic chili Farming) को द्ज़ोंगू के आदिवासी लेप्चा किसानों के लिए बहुत फायदेमंद रही। मल्चिंग ने न केवल गर्मियों और बरसात के मौसम में खरपतवार के बढ़ने को रोका बल्कि दूसरे अंतर-कृषि कामों से जुड़ी श्रम लागत को भी कम किया। इफको-सागरिका के इस्तेमाल से पैदावार और बढ़ गई। जिससे श्रम लागत में महत्वपूर्ण बचत हुई और ताजी हरी मिर्च की पैदावार अधिक हुई।
सांगडोंग के पेम्पा शेरिंग लेप्चा और लिंगडोंग के शेरिंग ओंगडेन लेप्चा जैसे किसानों की सफलता की कहानियां इस कार्यक्रम के प्रभाव के शानदार उदाहरण हैं। पेम्पा शेरिंग लेप्चा ने इस प्रोग्राम में हिस्सा लेकर सभी किसानों के बीच सबसे ज़्यादा मुनाफ़ा कमाया, जिसका फायदा-लागत अनुपात 2.85 रहा।
यहां तक कि डिकचू बाज़ार जैसे कम अनुकूल बाज़ारों में अपनी उपज बेचने वाले भी खराब सड़क संपर्क और सीमित मांग जैसी चुनौतियों के बावजूद सम्मानजनक मुनाफ़ा हासिल करने में कामयाब रहे।
ग्रामीण युवाओं की जैविक मिर्च की खेती में भागीदारी
इस प्रौद्योगिकी प्रदर्शन कार्यक्रम (Technology Demonstration Program) की सफलता किसी की नज़र से ओझल नहीं हुई है। उल्लेखनीय उपज सुधार और बढ़ी हुए कृषि लाभ ने ज़ोंगू के आस-पास के गांवों के पड़ोसी किसानों को इन कार्यक्रम को अपनाने के लिए प्रेरित किया। पिछले तीन सालों में, खेती योग्य क्षेत्रों का तेज़ी से विस्तार हुआ है और ग्रामीण युवाओं की जैविक मिर्च की खेती (Organic chili Farming) में अधिक भागीदारी हुई है।
सिक्किम सरकार के बढ़े कदमों से पारंपरिक कृषि पद्धतियां फली-फूली
कृषि में अपने पारंपरिक काम निचले ज़ोंगू में आदिवासी लेप्चा किसानों की लगातार आजीविका सुरक्षा में योगदान दिया है, जिससे ये देखा गया कि आधुनिक युग में उनकी पारंपरिक कृषि पद्धतियां फल-फूल सकती हैं।
आईसीएआर-उत्तर पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र, सिक्किम केंद्र और बागवानी विभाग, सिक्किम सरकार की ओर से अपनाए गए इस दृष्टिकोण ने सिक्किम हिमालय में पारंपरिक जैविक मिर्च की खेती (Organic chili Farming) में नई जान फूंक दी है।
आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकियों को पारंपरिक प्रथाओं के साथ जोड़कर, उन्होंने एक टिकाऊ मॉडल तैयार किया है। जो न सिर्फ क्षेत्र की अनूठी कृषि-पारिस्थितिकी को संरक्षित करता है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए अपने स्वदेशी समुदायों की आजीविका को भी सुरक्षित करता है।
सिक्किम के लेप्चा समुदाय के पारंपरिक खेती से जुड़े सवाल और उनके जवाब
सवाल1- सिक्कम में जैविक खेती को लेकर क्या चुनौतियां हैं?
जवाब- सिक्किम हिमालय में हर साल 3000 मिमी से ज़्यादा बारिश होती है, जिससे यहां खरपतवार में भारी वृद्धि होती है। जैविक खेती में भारी जैविक खाद और जैविक उर्वरकों पर निर्भरता, पारंपरिक गोबर खाद का एकमात्र विकल्प होने के कारण, किसानों के लिए श्रम की मांग बढ़ जाती है। इसके चलते ज़ोंगु जैसे दूरस्थ क्षेत्रों में खेती की उत्पादकता बनाए रखना कठिन हो जाता है।
सवाल2- जैविक मिर्च की खेती के लिए सिक्कम में कौन-कौन से काम किये गये?
जवाब- जैविक मिर्च की खेती के सफल प्रदर्शन के लिए मल्चिंग तकनीक और समुद्री शैवाल के अर्क (इफको-सागरिका) के पत्तों पर छिड़काव के ज़रीये से उपज में उल्लेखनीय सुधार हासिल किया। द्ज़ोंगू (उत्तरी सिक्किम) के आस-पास के गांवों के पड़ोसी किसानों को प्रेरित किया। ग्रामीण युवाओं की जैविक खेती में भागीदारी हुई। इसकी वजह से सिक्किम हिमालय के निचले द्ज़ोंगू में आदिवासी लेप्चा किसानों की आजीविका में सुधार हुआ।
सवाल3- सिक्किम में जैविक खेती क्या है?
जवाब- सिक्किम दुनिया का पहला ऐसा राज्य है जो 100 फीसदी जैविक है। इसकी सारी कृषि भूमि प्रमाणित जैविक है। इस नीति के तहत रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों को कई चरणों में खत्म किया गया है। इसके साथ ही रासायनिक कीटनाशकों की बिक्री और इस्तेमाल पर प्रतिबंध है।
सवाल4- सिक्किम में पारंपरिक कृषि क्या है?
जवाब- सीढ़ीनुमा सूखे खेतों में सिक्कम के किसान मक्का, बाजरा, दालें वगैरह उगाते हैं। यहां के सीढ़ीनुमा खेतों में घास चारे के लिए उगाई जाती है। शुष्क मौसम के दौरान ज़मीन बंजर रहती है। सर्दियों के दौरान किसान प्रबंधन पद्धति के रूप में कटाई और जला देते हैं और दालें, टैपिओका और सिक्किम में ही होने वाली फसलें उगाते हैं।
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