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प्रस्तावना
क्या आप जानते हैं कि एक महिला किसान ने अपने जीवन की पीड़ा को समाज के लिए वरदान में बदल दिया? आज हम आपको बताएंगे राजस्थान की एक ऐसी महिला की कहानी, जिन्होंने जैविक खेती के माध्यम से न सिर्फ़ अपना जीवन बदला, बल्कि दूसरों के लिए भी स्वस्थ भविष्य की राह दिखाई। दौसा जिले की रूबी पारीक की कहानी संघर्ष और संकल्प की एक अनूठी मिसाल है। आइए जानते हैं कैसे इस महिला किसान ने जैविक खेती के माध्यम से स्वस्थ समाज की नींव रखी।
रूबी पारीक का परिचय (Introduction)
रूबी पारीक राजस्थान के दौसा जिले की रहने वाली हैं। उनके पति का नाम ओम प्रकाश है। जीवन के शुरुआती सालों में रूबी ने बहुत कठिनाइयों का सामना किया। उनके पिता को कैंसर जैसी भयंकर बीमारी हो गई थी, और इस कारण उनका निधन हो गया। उनके पिता की बीमारी के इलाज में उनकी सारी संपत्ति खर्च हो गई और जमीन-जायदाद भी बिक गई। इस पीड़ा को देखकर रूबी के मन में यह ख़्याल आया कि कितने लोग इसी प्रकार की परिस्थितियों से गुजरते होंगे और कितना कष्ट सहन करते होंगे। यह सोचकर उन्होंने ठान लिया कि उन्हें ऐसी पीड़ा से किसी को नहीं गुजरने देना।
जैविक खेती है समाधान (Organic Farming is the solution)
रूबी के पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने कैंसर जैसी बीमारियों के कारणों को समझने की कोशिश की। इस शोध में उन्हें यह बात पता चली कि खेतों में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थ और विषैले रसायन ही कई खतरनाक बीमारियों, विशेषकर कैंसर का मुख्य कारण होते हैं। इस तथ्य को समझते हुए उन्होंने यह निर्णय लिया कि यदि लोग रासायनिक उत्पादों से दूर रहकर जैविक खेती अपनाएं, तो स्वास्थ्य की कई समस्याओं से बचा जा सकता है।
जैविक खेती न केवल भूमि के लिए फ़ायदेमंद है, बल्कि यह पर्यावरण की रक्षा और मानव स्वास्थ्य के लिए भी सर्वोत्तम समाधान साबित हो सकती है। यही कारण था कि रूबी ने जैविक खेती को अपनाने का संकल्प लिया और इसे ही अपनी प्राथमिकता बनाया।
फ़सल और खाद के बारे में (About crop and fertilizer)
रूबी पारीक ने अपनी जमीन पर मौसम के अनुसार जैविक खेती की शुरुआत की। उन्होंने गेहूं, चना, आंवला, नींबू और करौंदा जैसी कई फ़सलें उगाई हैं, जो न केवल उनके खेतों को हरा-भरा रखती हैं, बल्कि उनके जैविक फ़ार्म के लिए फ़ायदेमंद भी हैं। इसके साथ ही, वे अन्य प्रकार की फ़सलें जैसे हरी मिर्च, टमाटर, बैंगन, और मूली भी जैविक तरीके से उगाती हैं।
फ़सलों की बेहतर वृद्धि और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए, रूबी वर्मीकंपोस्ट और जीवामृत जैसे जैविक खादों का इस्तेमाल करती हैं। इन खादों से न केवल भूमि की उर्वरता बढ़ती है, बल्कि यह पौधों को पोषण भी प्रदान करता है। रासायनिक दवाओं की जगह पर, वे आंवला, छाछ और गोमूत्र का मिश्रण बनाकर उसे 21 दिनों तक सड़ने देती हैं। इस मिश्रण का उपयोग फ़सल में जैविक कीटनाशक और उर्वरक के रूप में किया जाता है। इन जैविक उपायों से फ़सलों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है और साथ ही, पर्यावरण की सुरक्षा भी होती है। इस तरह, रूबी का फ़ार्म जैविक कृषि की मिसाल पेश करता है, जहां प्राकृतिक संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जाता है।
जैविक खेती के प्रचार-प्रसार के लिए किया संस्था का गठन (An organization was formed to promote organic farming)
रूबी पारीक पिछले दो दशकों से जैविक खेती को अपनाकर न केवल अपने खेतों को फल-फूल रहे हैं, बल्कि समाज में इसके लाभों को फैलाने के लिए भी निरंतर प्रयासरत हैं। 2006 में, कृषि विज्ञान केंद्र दौसा के वैज्ञानिकों की एक टीम उनके फ़ार्म पर आई और उन्हें जैविक खेती के बारे में विस्तृत जानकारी दी। इस मार्गदर्शन के बाद, रूबी ने अपने पति ओमप्रकाश के साथ मिलकर एक संस्था का गठन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य जैविक खेती के महत्व को समाज में फैलाना और इसके लाभों के बारे में लोगों को जागरूक करना था।
साथ ही, पर्यावरण के संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए, रूबी ने अपने फ़ार्म पर लगभग 10,000 पौधे लगाए हैं। इन पौधों से न केवल ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है, बल्कि ये विभिन्न फल और फूल भी उत्पन्न करते हैं, जो फ़ार्म को और भी अधिक हरा-भरा बनाते हैं। उनके इस प्रयास के बाद उनका फ़ार्म “पारीक ऑर्गेनिक फ़ार्म खटवा” के नाम से रजिस्टर्ड हुआ, जो जैविक खेती के क्षेत्र में एक मिसाल बन गया है।
ज़रूरतमंदों को रोज़गार उपलब्ध कराया (Provided employment to the needy)
रूबी पारीक ने न केवल जैविक खेती से अपनी जमीन को समृद्ध किया, बल्कि उन्होंने समाज के ज़रूरतमंद वर्ग के लिए भी कई कदम उठाए। 2008 में, उन्होंने नाबार्ड के सहयोग से राजस्थान में 200 मीट्रिक टन उत्पादन क्षमता वाली वर्मी कंपोस्ट इकाई स्थापित की। इस इकाई के माध्यम से कई ग़रीब और असमर्थ मजदूरों को रोज़गार प्राप्त हुआ। इसके अलावा, रूबी ने अपने कार्य के माध्यम से ग़रीब किसानों को निशुल्क वर्मी कंपोस्ट, केंचुआ और अजोला फर्न भी उपलब्ध कराए, ताकि वे भी जैविक खेती की ओर रुझान कर सकें और अपनी फ़सलों की उर्वरता बढ़ा सकें।
रूबी के इन प्रयासों को देखते हुए, 2011-12 में “किसान क्लब खटवा” को राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो उनके काम की एक महत्वपूर्ण सराहना थी।
जैविक पोषण वाटिका की स्थापना (Establishment of organic nutrition garden)
2015-16 में, रूबी पारीक ने “कृषक उत्पादक संगठन, खटवा किसान जैविक प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड” की स्थापना की। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य किसानों को उनके जैविक उत्पादों के लिए सही और उपयुक्त बाजार उपलब्ध कराना था, ताकि वे अपने उत्पादों को उचित मूल्य पर बेच सकें और उनकी आय में वृद्धि हो सके। इस पहल से न केवल किसानों को फ़ायदा हुआ, बल्कि जैविक खेती के महत्व को भी समाज में प्रोत्साहन मिला।
इसके बाद, रूबी ने कई सरकारी विद्यालयों में जैविक पोषण वाटिका की स्थापना की। इस पहल का उद्देश्य बच्चों को मिड-डे मील के रूप में स्वस्थ और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना था, ताकि उनका शारीरिक और मानसिक विकास बेहतर हो सके। ये पोषण वाटिकाएं बच्चों को न केवल स्वादिष्ट भोजन देती हैं, बल्कि उन्हें जैविक खेती के फायदे भी समझाती हैं।
इसके अलावा, रूबी ने सामुदायिक पारंपरिक जैविक बीज बैंक की भी स्थापना की। इस बीज बैंक के माध्यम से किसानों, विशेषकर महिलाओं को निशुल्क जैविक बीज उपलब्ध कराए जाते हैं, ताकि वे अपनी फ़सलों की शुरुआत जैविक तरीके से कर सकें। इस पहल से न केवल किसानों को सस्ते और स्वस्थ बीज मिलते हैं, बल्कि यह जैविक खेती के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों से मिला सम्मान (Honours and Awards)
रूबी पारीक के नवाचारों और उनकी मेहनत को देखते हुए, उन्हें कई बड़े पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जो उनके काम को और प्रेरित करने वाले रहे हैं। पिछले एक दशक में उन्हें कई महत्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त हुए, जो उनकी मेहनत और समर्पण का प्रमाण हैं। 2016 में, ग्लोबल लेवल के ग्राम टेक एग्रो मीट में, कृषि विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्हें राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे द्वारा राज्य स्तरीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद, 2017 में महिंद्रा एग्रो समृद्धि द्वारा आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने उन्हें “कृषि प्रेरणा पुरस्कार” से नवाजा।
2019 में, उन्हें महामहिम राज्यपाल कलराज मिश्र द्वारा श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर में आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। इसके बाद, रूबी पारीक को पांच राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिले। इनमें से पहला पुरस्कार था “धरती मित्र राष्ट्रीय पुरस्कार”, जो उन्हें ऑर्गेनिक इंडिया द्वारा दादा साहब फाल्के अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल मुंबई में 2021 में दिया गया। दूसरा पुरस्कार “स्वयं सिद्धा शिखर सम्मान राष्ट्रीय पुरस्कार” था, जो 2022 में कविकुंभ शिमला द्वारा दिया गया।
2023 में, उन्हें “इन्नोवेटिव फ़ार्मर्स राष्ट्रीय पुरस्कार” भी मिला, जिसे केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रदान किया। इसके साथ ही, उन्होंने “जैविक इंडिया राष्ट्रीय पुरस्कार” भी प्राप्त किया, जिसे इंटरनेशनल कंपीटीशन सेंटर फॉर ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर ने 2023 में दिया।
साथ ही, रूबी पारीक को 2024 में “सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय कृषि गौरव पुरस्कार” से भी नवाजा गया, जिसे गुजरात के महामहिम राज्यपाल और प्राकृतिक खेती के महानायक आचार्य देवव्रत द्वारा राष्ट्रीय कृषि पत्रकार संघ के कार्यक्रम में दिया गया। इन सभी पुरस्कारों ने न केवल रूबी की मेहनत को मान्यता दी, बल्कि उन्हें और अधिक प्रेरित किया, ताकि वे और बड़े स्तर पर जैविक खेती और नवाचार के क्षेत्र में अपना योगदान दे सकें।
सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ (Government Schemes and Subsidies)
रूबी पारीक ने अपनी जैविक खेती के विस्तार और सुधार के लिए कई सरकारी योजनाओं का लाभ उठाया है। उन्होंने सोलर पंप, वर्मी हैचरी, ड्रिप इरीगेशन और फवारा सेट जैसी योजनाओं के लिए सहायता प्राप्त की है, जो उनकी खेती को और अधिक पर्यावरण-friendly और सशक्त बनाते हैं। इन योजनाओं के माध्यम से उनकी फ़सल की सिंचाई की प्रक्रिया आसान और सस्ती हो गई है, साथ ही ऊर्जा का भी संरक्षण हुआ है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने रूबी को औषधीय पौधों और उत्कृष्ट फल-सब्जियों के बीज भी प्रदान किए, जिनका उपयोग उन्होंने अपने फ़ार्म पर किया, ताकि उनके उत्पाद और भी बेहतर और पौष्टिक हो सकें।
अन्य लोगों को जागरूक किया और प्रेरित किया (Inspire and Educate others)
रूबी पारीक का मानना है कि जैविक खेती की सफलता केवल उनके खेत तक सीमित नहीं रह सकती, बल्कि इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना ज़रूरी है। इसी सोच के साथ, उन्होंने कृषि महाविद्यालय के छात्रों और विशेष रूप से किसान महिलाओं को जैविक खेती के बारे में प्रशिक्षित किया है। अब तक, उन्होंने लगभग 23,000 लोगों को जैविक खेती की तकनीक और इसके फायदे समझाए हैं। उनकी मेहनत और समर्पण ने किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया है।
रूबी के योगदान को देखते हुए, उन्हें विभिन्न कृषि कार्यक्रमों में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है, जहां वे अपनी सफलता की कहानी और जैविक खेती के महत्व पर प्रकाश डालती हैं। यह अनुभव उन्हें न केवल संतुष्टि और खुशी देता है, बल्कि जैविक कृषि के प्रति जागरूकता फैलाने में भी मदद करता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
रूबी पारीक का मानना है कि जैविक खेती और प्राकृतिक खेती से ही स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है। उनका यह दृष्टिकोण राष्ट्र निर्माण में भी योगदान करता है। वे यह भी चाहती हैं कि नवाचार के प्रयासों को और गति मिले और अधिक से अधिक लोग जैविक उत्पादों का उपयोग करके लाभान्वित हों। उनका उद्देश्य यह है कि समाज में जैविक खेती को लेकर जागरूकता फैलाई जाए, ताकि लोग इसके लाभों को समझ सकें और एक स्वस्थ जीवन जी सकें।
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