Table of Contents
रविंद्र माणिकराव मेटकर का परिचय (Introduction)
रविंद्र माणिकराव मेटकर महाराष्ट्र के अमरावती जिले के एक छोटे से गांव से आते हैं। उनका परिवार बहुत साधारण था, और वे तीन भाई थे। उनके पास केवल 1 एकड़ ज़मीन थी, जो इतने बड़े परिवार के लिए बहुत कम थी। इस सीमित ज़मीन से घर का खर्चा चलाना और गुज़ारा करना बेहद मुश्किल था। परिवार की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय थी और कई बार उन्हें खाने-पीने तक के लिए भी संघर्ष करना पड़ता था। इस कठिन परिस्थिति में रविंद्र ने हार मानने के बजाय समाधान की ओर कदम बढ़ाया।
1995 में उन्होंने बैंक से कर्ज़ लेकर अपना व्यवसाय शुरू करने का साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने पोल्ट्री व्यवसाय (Poultry business) और जैविक खेती (organic farming) को अपनी राह बनाया और 4000 मुर्गियों के साथ पोल्ट्री फ़ार्म की शुरुआत की। यह कदम उनके लिए एक बड़ा जोखिम था, लेकिन रविंद्र का विश्वास था कि मेहनत और सही मार्गदर्शन से वह इस पोल्ट्री व्यवसाय में सफलता पा सकते हैं।
रविंद्र माणिकराव मेटकर का संघर्ष (Struggle of Ravindra Metkar)
रविंद्र माणिकराव मेटकर बताते हैं कि उनके पिता चपरासी थे और परिवार आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहा था। इस कठिन परिस्थिति में, उन्होंने बचपन से ही काम करना शुरू कर दिया था। अपनी कड़ी मेहनत और समर्पण से उन्होंने पोल्ट्री व्यवसाय में सफलता पाई। हालांकि उनके सफर में कई कठिनाईयां आईं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और संघर्ष जारी रखा।
रविंद्र ने 16 साल की उम्र में एक केमिस्ट की दुकान में काम करना शुरू किया, जहां उन्हें सिर्फ़ 5 रुपये रोज़ मिलते थे। आर्थिक तंगी के बावजूद, उन्होंने अपनी पढ़ाई नहीं छोड़ी और पैसों की कमी के बावजूद कॉलेज पैदल ही जाते थे। उनके एक पड़ोसी ने मुर्गी पालन में सफलता हासिल की थी, जिससे प्रेरित होकर रविंद्र ने भी इस पोल्ट्री व्यवसाय में कदम रखने का निर्णय लिया।
पोल्ट्री व्यवसाय की कैसे की शुरुआत (How to start Poultry Business)
रविंद्र ने अपने पिता के प्रोविडेंट फंड (PF) से 3,000 रुपये लेकर 100 मुर्गियों के साथ अपना पोल्ट्री व्यवसाय शुरू किया था। उनके कठिन परिश्रम और लगन ने रंग दिखाया और धीरे-धीरे उनके पास 400 मुर्गियां हो गईं। इस दौरान उन्होंने अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और 1992 में कॉमर्स में पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की।
इसके बाद, रविंद्र माणिकराव मेटकर ने शादी की और अमरावती में एक एकड़ ज़मीन खरीदी, ताकि वे अपने पोल्ट्री व्यवसाय को बढ़ा सकें। इसके लिए उन्होंने बैंक से 5 लाख रुपये का कर्ज़ लिया और 4,000 मुर्गियों के लिए पोल्ट्री फ़ार्म स्थापित किया। उनका व्यवसाय लगातार बढ़ता गया, और उन्होंने अपने घर का भी पुनर्निर्माण कराया। धीरे-धीरे उन्होंने अपने फ़ार्म का विस्तार कर 12,000 मुर्गियों तक पहुंचा लिया।
बर्ड फ्लू ने किया पोल्ट्री फ़ार्म का बड़ा नुकसान (Bird flu caused huge losses to Poultry Farms)
साल 2006 में भारत में बर्ड फ्लू फैलने से पोल्ट्री व्यवसाय (Poultry industry) बुरी तरह प्रभावित हुआ। रविंद्र को अपने 16,000 ब्रॉयलर मुर्गे भारी नुकसान पर बेचने पड़े। इस कठिन दौर के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी। 2008 में उन्होंने 25 लाख रुपये का कर्ज़ लेकर 20,000 मुर्गियों के साथ अपना पोल्ट्री व्यवसाय फिर से शुरू किया। आज उनका पोल्ट्री फ़ार्म 50 एकड़ में फैला हुआ है, जहां 1.8 लाख मुर्गियां पाली जा रही हैं। उनका पोल्ट्री व्यवसाय अब पूरी तरह से फल-फूल रहा है, और इससे उन्हें रोज़ाना 60,000 रुपये तक की कमाई होती है।
पोल्ट्री व्यवसाय के साथ करते हैं जैविक खेती
रविंद्र माणिकराव मेटकर बताते हैं कि उनके पास कुल 50 एकड़ ज़मीन है, जिसमें से 20 एकड़ से अधिक ज़मीन पर वे जैविक खेती (organic farming) करते हैं। उनके खेतों में विभिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाती हैं, जिनमें संतरा, मौसमी, नारियल, केला, सेब, सोयाबीन, गेहूं, कपास, दालें और अन्य कई सब्ज़ियां शामिल हैं।
रविंद्र का मानना है कि जैविक खेती के लिए प्राकृतिक संसाधनों का सही तरीके से उपयोग करना ज़रूरी है, और यही कारण है कि वे पोल्ट्री व्यवसाय से प्राप्त खाद का उपयोग अपने खेतों में करते हैं। यह खाद पूरी तरह से प्राकृतिक होती है, जो उनकी फ़सलों की गुणवत्ता को बेहतर बनाती है।
सिचाई के लिए वे ड्रिप इरिगेशन और फव्वारा विधि का इस्तेमाल करते हैं, जो न केवल पानी की बचत करता है, बल्कि फ़सलों को सही मात्रा में पानी भी उपलब्ध कराता है। इन तकनीकों का प्रयोग करने से उन्हें न केवल फ़सल की वृद्धि में मदद मिलती है, बल्कि पानी की खपत भी कम होती है, जो जलवायु परिवर्तन के दौर में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
कमाई और लागत (Earnings and costs)
रविंद्र माणिकराव मेटकर के अनुसार, उनकी सालाना कमाई 41 लाख रुपये से लेकर 50 लाख रुपये तक होती है। वे बताते हैं कि इस सफलता को हासिल करने के लिए उन्होंने अपनी खेती और पोल्ट्री व्यवसाय में लागत को कम करने की कोशिश की है। वे कम खर्चे में अधिक से अधिक उत्पादन करने का प्रयास करते हैं, जिससे उन्हें अधिक मुनाफ़ा होता है।
इसके अलावा, रविंद्र कृषि उपकरणों का अधिकतम उपयोग करते हैं, जिससे न केवल काम की गति बढ़ती है, बल्कि श्रम की भी बचत होती है। इन उपकरणों का सही तरीके से इस्तेमाल करने से उत्पादन में भी वृद्धि होती है और मेहनत भी कम होती है। इस स्मार्ट तरीके से उन्होंने अपनी जैविक खेती (organic farming) और पोल्ट्री व्यवसाय को आधुनिक तकनीकों से जोड़कर कमाई में इज़ाफा किया है।
किसानों के लिए बनाई घरेलू जैविक दवाई (Homemade organic medicine made for farmers)
किसानों को फ़सलों में कीटों का हमला और जानवरों के खेतों में घुसकर फ़सल को नुकसान पहुंचाने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इन समस्याओं से निपटने के लिए रविंद्र माणिकराव मेटकर ने एक प्राकृतिक दवा तैयार की है, जो 30% तक पैदावार बढ़ा सकती है। उनके आसपास के कई जिलों के किसान इस दवा का उपयोग कर रहे हैं और अच्छे परिणाम पा रहे हैं।
रविंद्र का कहना है कि आजकल लोग नेचुरल और जैविक उत्पादों की तरफ बढ़ रहे हैं, और इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने यह जैविक दवा बनाई। यह दवा पूरी तरह से कीटनाशक रहित है और इसे घर में आसानी से तैयार किया जा सकता है। उन्होंने इस दवा की प्रमाणिकता की जांच करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को पत्र लिखा और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) से इसे वैज्ञानिक रूप से जांचने की अपील की है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा किसान इसका लाभ उठा सकें।
सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)
रविंद्र माणिकराव मेटकर ने अपने कठोर परिश्रम और कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त किए हैं, जो निम्न हैं:
- वसंतराव नाइक शेतनिष्ठ पुरस्कार – 2014 (कृषि क्षेत्र, राज्य, कृषि विभाग, महाराष्ट्र)
- वसंतराव नाइक स्मृति सम्मान – 2018 (कृषि और संबद्ध व्यवसाय, राज्य, वसंतराव नाइक प्रतिष्ठान, पुशद)
- आदर्श शेतकरी पुरस्कार – 2019 (कृषि, राज्य, डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय, अकोला)
- राजीव गांधी कृषि रत्न पुरस्कार – 2018 (सर्वश्रेष्ठ उद्यमिता, राज्य, कृषि विज्ञान केंद्र, घाटखेड, अमरावती)
- एग्रो विजन शेतकरी पुरस्कार – 2019 (कृषि और संबद्ध व्यवसाय, राज्य, एग्रीविजन फाउंडेशन, नागपुर)
- युवा प्रताप पुरस्कार – 2019 (सर्वश्रेष्ठ उद्यमिता, राज्य, कृषि स्नातक संघ, पुणे)
- IARI इनोवेशन फ़ार्मर अवार्ड – 2020 (कृषि यांत्रिकीकरण और ड्रिप इरिगेशन पोल्ट्री फ़ार्म, राष्ट्रीय, IARI, नई दिल्ली)
- डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि रत्न पुरस्कार – 2020 (उद्यमिता, राज्य, जयकिसान फ़ार्म, नासिक)
- IARI फेलो फ़ार्मर अवार्ड – 2021 (हाई टेक प्रोडक्शन टेक्नोलॉजी, राष्ट्रीय, IARI, नई दिल्ली)
- जगजीवन राम इनोवेशन फ़ार्मर अवार्ड – 2022 (इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग सिस्टम, राष्ट्रीय, ICAR, नई दिल्ली)
- अमृतम सस्टेनेबल एग्री अवार्ड – 2024 (ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग, राष्ट्रीय, श्री ऑरोबिंदो योगा नॉलेज फाउंडेशन ट्रस्ट, इंडिया)
इन पुरस्कारों के माध्यम से रविंद्र मेटकर को उनकी उत्कृष्टता और कृषि क्षेत्र में नवाचार के लिए सम्मानित किया गया है। उनके इन पुरस्कारों से यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि उनकी मेहनत और समर्पण ने उन्हें न केवल राज्य, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी मान्यता दिलाई है।
नए किसानों के लिए उनका संदेश (His message to new farmers)
रविंद्र माणिकराव मेटकर का कहना है कि किसानों को हमेशा कम लागत में अच्छा उत्पादन करने की दिशा में काम करना चाहिए। यदि किसान कम खर्च में अधिक उत्पादन करेंगे, तो उनका मुनाफ़ा बढ़ेगा और वे आर्थिक रूप से मजबूत बन सकेंगे। इसके अलावा, वे यह भी सलाह देते हैं कि किसानों को कृषि के साथ-साथ अन्य छोटे व्यवसाय भी शुरू करने चाहिए, जैसे मुर्गी पालन (Poultry farming), पशुपालन, मधुमखी पालन, डेयरी फ़ार्मिंग, आदि।
इससे किसानों को अतिरिक्त आय का स्रोत मिलेगा, और वे आर्थिक तंगी से उबर सकते हैं। एक ही खेत से एक से अधिक आय स्रोत बनाकर वे अपनी आमदनी को बढ़ा सकते हैं। रविंद्र का मानना है कि अगर किसान नई तकनीकों को अपनाकर और विभिन्न व्यवसायों को जोड़कर अपनी कृषि को सही दिशा में ले जाएं, तो वे सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
रविंद्र माणिकराव मेटकर की कहानी यह साबित करती है कि कठिन परिस्थितियों और संघर्षों के बावजूद अगर मेहनत, समर्पण और सही रणनीति हो, तो सफलता हासिल की जा सकती है। उन्होंने पोल्ट्री व्यवसाय (Poultry business) और जैविक खेती (organic farming) के जरिए न केवल अपनी ज़िंदगी बदलने का काम किया, बल्कि अपने आसपास के किसानों को भी प्रेरित किया।
उनकी सफलता का राज कम लागत में अधिक उत्पादन, आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल और कृषि के साथ अन्य व्यवसायों को जोड़ने में छिपा है। रविंद्र ने जैविक दवाइयां तैयार कर किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभ भी समझाए। उनके द्वारा प्राप्त पुरस्कार और सम्मान उनके समर्पण और कृषि क्षेत्र में नवाचार को दर्शाते हैं। उनका संदेश साफ़ है — सही दिशा में काम करें और अपनी आय के स्रोतों में विविधता लाएं, ताकि सफलता को हासिल किया जा सके।
ये भी पढ़ें: पहाड़ी इलाके में मछलीपालन करने वाली हेमा डंगवाल की कहानी
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।