संरक्षित खेती के क्षेत्र में एक नई पहल करने वाले हेमंत धाकड़ की कहानी

हेमंत धाकड़ ने मध्य प्रदेश के खाचरोद गांव में संरक्षित खेती अपनाकर अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत की और स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा बने।

संरक्षित खेती Protected cultivation

हेमंत धाकड़, मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के खाचरोद गांव से ताल्लुक रखते हैं। 1996 में जन्मे हेमंत ने परंपरागत खेती से अलग हटकर आधुनिक और संरक्षित खेती (Protected Cultivation) को अपनाया है। उनकी सोच और मेहनत ने न केवल उनकी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है, बल्कि उन्हें स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणास्त्रोत भी बना दिया है। वर्तमान में, वे पॉलीहाउस में पौध तैयार करने का कार्य करते हैं, जो नई तकनीकों का उपयोग कर खेती में क्रांति लाने का प्रयास है।

संरक्षित खेती की शुरुआत

हेमंत बताते हैं, “परंपरागत खेती में जलवायु और मौसम की अनिश्चितताओं के कारण हमें हमेशा नुकसान उठाना पड़ता था। इसीलिए मैंने संरक्षित खेती (Protected Cultivation)  को अपनाने का फैसला किया। पॉलीहाउस के जरिए मैं फसलों को अनुकूल वातावरण प्रदान कर सकता हूं, जिससे उत्पादन की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार हुआ है।”

संरक्षित खेती के तहत हेमंत ने पॉलीहाउस में पौधों की नर्सरी तैयार करने की शुरुआत की। पॉलीहाउस तकनीक में पौधों को नियंत्रित तापमान, नमी और पर्यावरणीय कारकों में उगाया जाता है। इससे फसलों को मौसम की मार से बचाया जा सकता है।

तकनीकों का उपयोग और प्रक्रिया

हेमंत के पॉलीहाउस में निम्नलिखित तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है:

1.मृदा स्टीमिंग (Soil Steaming): बीज बोने से पहले मिट्टी को रोगाणु रहित किया जाता है।

2.ड्रिप इरिगेशन (Drip Irrigation): पानी की बचत और पौधों को उचित मात्रा में पानी पहुंचाने के लिए।

3.संवर्धित वातावरण (Controlled Environment): पॉलीहाउस के अंदर तापमान और नमी को नियंत्रित किया जाता है, जिससे पौधों का विकासअधिक तेजी से होता है।

4.सजीवपोषण (Organic Nutrients): रासायनिक खादों की जगह जैविक खाद का उपयोग किया जाता है।

हेमंत बताते हैं कि उन्होंने अपने पॉलीहाउस में टमाटर, शिमला मिर्च और फूलों की पौध तैयार की है। हर सीजन में वे लगभग 30,000 पौधों की नर्सरी तैयार करते हैं।

आर्थिक सफलता और कमाई

हेमंत का वार्षिक आय वर्ग 21-30 लाख रुपये है, जो यह दर्शाता है कि संरक्षित खेती (Protected Cultivation)  ने उनकी आर्थिक स्थिति को कितनी मजबूती दी है। वे बताते हैं,

“पॉलीहाउस की मदद से न केवल उत्पादन बढ़ा है, बल्कि गुणवत्ता भी बेहतर हुई है। बाजार में हमारे पौधों की मांग बढ़ रही है, जिससे हमारी कमाई में लगातार वृद्धि हो रही है।”

हेमंत अपने तैयार किए गए पौधों को स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के बाजारों में बेचते हैं। उनके पौधों की गुणवत्ता के कारण ग्राहक उन्हें बार-बार ऑर्डर देते हैं। 

स्थानीय किसानों के लिए प्रेरणा

हेमंत का मानना है कि संरक्षित खेती भारतीय कृषि में बदलाव लाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। उन्होंने अपने गांव और आसपास के किसानों को इस पद्धति के फायदे बताए हैं।

“हमने देखा है कि अगर सही तकनीक और योजनाओं का उपयोग किया जाए तो किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। मैंने कई किसानों को पॉलीहाउस खेती शुरू करने के लिए प्रेरित किया है।”

हेमंत ने किसानों को यह भी सिखाया कि कैसे ड्रिप इरिगेशन और जैविक पोषण का उपयोग करके खेती को अधिक लाभदायक बनाया जा सकता है।

सरकारी योजनाओं का लाभ और सहयोग

वर्तमान में, हेमंत ने किसी सरकारी योजना का लाभ नहीं उठाया है, लेकिन उनका मानना है कि अगर उन्हें सरकारी अनुदान और सब्सिडी मिलती, तो वे अपने पॉलीहाउस का विस्तार कर सकते थे। भारत सरकार और राज्य सरकार की विभिन्न योजनाएं, जैसे कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY), संरक्षित खेती (Protected Cultivation)  को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त हैं।

हेमंत के अनुसार, “अगर किसानों को इन योजनाओं की सही जानकारी दी जाए, तो संरक्षित खेती को अपनाने वाले किसानों की संख्या तेजी से बढ़ सकती है।

भविष्य की योजनाएं

हेमंत का सपना है कि वे अपने पॉलीहाउस की संख्या बढ़ाकर इसे एक मॉडल फार्म के रूप में विकसित करें। वे इसे एक ऐसा प्रशिक्षण केंद्र बनाना चाहते हैं, जहां अन्य किसान आकर आधुनिक खेती की तकनीकें सीख सकें।

“हमारा लक्ष्य है कि हमारे गांव और जिले के अधिक से अधिक किसान संरक्षित खेती को अपनाएं और अपनी आय में वृद्धि करें।”

वे जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए भी काम कर रहे हैं और अपने फार्म पर जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करते हैं।

संरक्षित खेती के फायदे और चुनौतियां

हेमंत के अनुभव के अनुसार, संरक्षित खेती के कई फायदे हैं:

1.उच्च गुणवत्ता: फसलों को नियंत्रित वातावरण में उगाने से उनकी गुणवत्ता में सुधार होता है।

2.अधिक उत्पादन: परंपरागत खेती की तुलना में संरक्षित खेती में उत्पादन अधिक होताहै।

3.मौसम पर निर्भरता कम: फसलों को मौसम की अनिश्चितताओं से बचाया जा सकता है।

4.पानी की बचत: ड्रिप इरिगेशन का उपयोग पानी की खपत को काफी हद तक कम कर देता है।

हालांकि, हेमंत यह भी बताते हैं कि इस पद्धति को अपनाने में प्रारंभिक निवेश अधिक होता है। उन्हें उम्मीद है कि सरकार इस क्षेत्र में निवेश करने वाले किसानों को और अधिक सहायता प्रदान करेगी।

निष्कर्ष

हेमंत धाकड़ ने संरक्षित खेती (Protected Cultivation)  के माध्यम से अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से न केवल अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया है, बल्कि अन्य किसानों के लिए भी एक प्रेरणा बने हैं। उनकी कहानी यह साबित करती है कि अगर सही तकनीक और योजनाओं का उपयोग किया जाए, तो भारतीय किसान वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं।

हेमंत का मानना है, “संरक्षित खेती केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि यह किसानों के लिए एक नया अवसर है। हमें इसे अपनाकर अपने कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाना होगा।”

उनकी इस सफलता को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारतीय कृषि का भविष्य संरक्षित खेती और आधुनिक तकनीकों पर निर्भर है। अगर किसानों को सही दिशा और सहायता मिलती है, तो वे न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि भारत को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर भी बना सकते हैं। 

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