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पारंपरिक खेती के साथ ही किसान औषधीय पौधों की खेती से (Cultivation Of Medicinal Plants) अच्छी कमाई कर सकते हैं। आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियां बनाने के लिए इन पौधों की मांग रहती है। खेती में अब किसान भी तरह-तरह के एक्सपेरिमेंट करने लगे हैं और सरकार की तरफ़ से भी उन्हें कुछ अलग करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, ताकि किसानों की आमदनी में इज़ाफा हो सके।
हमारे देश में सदियों से आयुर्वेद में इलाज के लिए तरह-तरह की जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल होता आया है, जिन पौधों से ये जड़ी-बूटियां बनाई जाती हैं, उन्हें ही औषधीय पौधे कहते हैं। इनमें सर्पगन्धा, अश्वगंधा, ब्राम्ही, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा, वच, लेमनग्रास, अकरकरा, सहजन जैसे कई औषधीय पौधे शामिल हैं। वैसे तो औषधीय पौधों की लिस्ट बहुत लंबी है, मगर ज़्यादा इस्तेमाल में आने वाले पौधे कुछ ही हैं।
बुंदेलखंड के किसानों को पारंपरिक खेती के अलावा औषधीय पौधों की खेती के लिए प्रेरित करने के मकसद से झांसी के रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों का उद्यान बनाया गया है। यहां किसानों को औषधीय पौधों की खेती से जुड़ी सभी जानकारी दी जाती है । इस बारे में विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर विनोद कुमार से बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली ने।
औषधीय पौधों की खेती को बढ़ावा
प्रोफ़ेसर विनोद कुमार बताते हैं कि विश्वविद्यालय परिसर में जो औषधीय और संगधीय उद्यान बनाया गया है, उसका मकसद छात्रों और किसानों को ये बताना है कि बुंदेलखंड की जलवायु के हिसाब से किन-किन औषधीय पौधों की खेती वो इस क्षेत्र में कर सकते हैं। उनका मकसद औषधीय और संगधीय पौधों की खेती को बढ़ावा देना है, ताकि किसानों को अतिरिक्त आमदनी हो सके।
साथ ही इस उद्यान से छात्रों को भी प्रैक्टिकल जानकारी दी जाती है। उन्हें बताया जाता है कि कैसे औषधीय पौधों की खेती करनी है और इन पौधों के क्या इस्तेमाल हैं ताकि वो बाद में चाहें तो अपना खुद का व्यवसाय भी शुरू कर सकते हैं। विनोद कुमार बताते हैं कि उनके उद्यान में 56 से 57 तरह के औषधीय पौधे हैं।
बंजर ज़मीन पर औषधीय पौधों की खेती
विनोद कुमार का कहना है कि ऐसी ज़मीन जहां कोई फसल नहीं उग सकती है, वहां भी औषधीय पौधे उग जाते हैं, जिससे परती पड़ी ज़मीन का भी अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता है। बंजर भूमि का इस्तेमाल होने पर किसानों को अतिरिक्त आमदनी होती है।
प्रोफ़ेसर विनोद बताते हैं कि किसानों की मदद के लिए उनका विभाग किसानों को बीज मुहैया कराने के साथ ही खेती से जुड़ी हर तरह की जानकारी देता है। किसान तो इनके पास आते ही हैं, साथ ही ये लोग भी किसानों के पास जाते हैं और उन्हें औषधीय व संगधीय पौधों की खेती के बारे में बताते हैं। वो कुछ किसानों का चुनाव करके फ़ील्ड पर जाकर भी ट्रेनिंग देते हैं।
खरीफ़ सीज़न में औषधीय पौधों की खेती
प्रोफ़ेसर विनोद बताते हैं कि औषधीय पौधों की खेती खरीफ़ के मौसम में करना सबसे अच्छा होता है। अश्वगंधा, एलोवेरा, तुलसी, कालमेघ आदि को इस समय लगाने से पौधों का विकास अच्छी तरह होता है। चंद्रशूर और इसबगोल भी इस मौसम में लगाने से फसल अच्छी होती है।
अन्य फसलों के साथ कालमेघ की खेती
औषधीय पौधों को दूसरी फसलों के साथ भी लगाया जा सकता है। प्रोफ़ेसर विनोद बताते हैं कि कुछ किसान मिश्रित खेती करते हैं, तो अन्य फसलों के साथ कालमेघ की खेती कर सकते हैं। इसे नगदी फसलों, फल और सब्ज़ी के साथ लगाया जा सकता है। इस पौधे की एक ख़ासियत है कि एक बार काटने पर ये दोबार उग जाता है और जड़ से लेकर तने तक, इस पौधे का पूरा इस्तेमाल किया जा सकता है।
औषधीय पौधों का इस्तेमाल
प्रोफ़ेसर विनोद का कहना है कि औषधीय पौधों को कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। एक तो किसान घर पर ही इसका उपयोग कर सकते हैं और दूसरा बड़े पैमाने पर इसकी व्यवसायिक खेती कर सकते हैं, क्योंकि इन पौधों से कई तरह के आयुर्वेदिक उत्पाद बनाए जाते हैं जैसे- एलोवेरा से साबुन बनाया जाता है और कई तरह के स्किन प्रोडक्ट्स में भी इसका इस्तेमाल होता है।
तुलसी की पूजा होती है और इससे एसेंशियल ऑयल भी बना सकते हैं, जिसका इस्तेमाल फ़ूड, फ्लेवर और फ्रेगरेंस इंडस्ट्री में किया जाता है। खाने में इस्तेमाल के साथ ही इससे इत्र जैसी कई और चीज़ें भी बनाई जाती हैं। इसी तरह लेमनग्रास को चाय में डाल सकते हैं और इससे तेल भी निकाला जाता है। शतावरी जिसे फीमेल टॉनिक भी कहा जाता है, इसका इस्तेमाल कई तरह की दवा में किया जाता है। इसका पौधा 18 महीने में तैयार हो जाता है।
रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय में औषधीय पौधों पर ट्रेनिंग
प्रोफ़ेसर विनोद कुमार बताते हैं कि अगर कोई किसान औषधीय पौधों से जुड़ी किसी तरह की जानकारी चाहते हैं, तो सीधे रानी लक्ष्मीबाई कृषि विश्वविद्यालय परिसर में आकर उनके विभाग से संपर्क कर सकते हैं। उन्हें खेती की जानकारी देने के साथ ही इन पौधों के ज़रिए कैसे वो अपना उद्यम स्थापित कर सकते हैं और किन पौधों से किस-किस तरह के उत्पाद बनाए जा सकते हैं, इस बारे में भी जानकारी दी जाती है। आमतौर पर आजकल बाज़ार में सभी औषधीय पौधों अर्क, कैप्सूल या चूर्ण के रूप में उपलब्ध हैं। किसानों के साथ ही उद्यमी बनने में विश्वविद्यालय छात्रों की भी मदद करता है।
लोकप्रिय औषधीय पौधे
वैसे तो औषधीय पौधे कई तरह के होते हैं, लेकिन आमतौर पर जिन पौधों का इस्तेमाल अधिक होता है और जिनके बारे में लोग जानते हैं, उनमें शामिल हैं-
शतावरी
शतावरी एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग कई तरह की दवाओं में किया जाता है। पिछले कुछ सालों में इसकी मांग बढ़ी है, इसलिए किसान इसकी खेती से अच्छी कमाई कर सकते हैं। शतावरी की खेती आमतौर पर जुलाई से लेकर सितंबर तक की जाती है। इस पौधे की ख़ासियत है कि इसमें कीट और रोग नहीं लगते हैं। साथ ही कांटेदार होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खा पाते जिससे फसल का नुकसान नहीं होता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड, राजस्थान में बड़े पैमाने पर शतावरी की खेती होती है।
लेमनग्रास
लेमनग्रास का इस्तेमाल चाय में करने के साथ ही इससे एसेंशियल ऑयल भी बनाया जाता है। इसका तेल काफ़ी महंगा बिकता है। इसके तेल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक्स और दवा बनाने में किया जाता है। इसलिए इसकी मांग बनी रहती है। लेमनग्रास की खेती से किसानों को अच्छी आमदनी हो सकती है। शतावरी की तरह ही लेमनग्रास को जानवर नहीं खाते हैं। रोपाई के बाद सिर्फ़ एक बार निराई करने की ज़रूरत पड़ती है, जबकि साल में 4 से 5 बार सिंचाई करनी पड़ती है। सरकार भी लेमनग्रास की खेती को बढ़ावा दे रही है। लेमन ग्रास का पौधा लगाने के बाद ये लगभग छह महीने में ही तैयार हो जाता है। उसके बाद हर 70 से 80 दिनों पर किसान इसे काट सकते हैं। एक साल में 5-6 कटाई की जा सकती है।
अश्वगंधा
ये एक झाड़ीनुमा पौधा होता है। ये दूसरी सभी जड़ी-बूटियों में सबसे अधिक लोकप्रिय है। इसकी जड़, पत्ती, फल और बीज को औषधि के रूप में उपयोग में लाया जाता है। अश्वगंधा को कैश क्रॉप भी कहा जाता है। अश्वगंधा कम लागत में अधिक उत्पादन देने वाली औषधीय फसल है। इसकी बुवाई के लिए जुलाई से सितंबर का समय उपयुक्त माना जाता है।
ईसबगोल
ईसबगोल भी एक तरह की औषधीय फसल है। ईसबगोल की खेती दोमट या बलुई दोमट मिट्टी में की जाती है। हमारे देश में गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में मुख्य रूप से इसकी खेती की जाती है। ईसबगोल का इस्तेमाल कब्ज और अल्सर के इलाज में किया जाता है, क्योंकि इसके बीज के छिलके में पानी सोखने की क्षमता होती है।
गिलोय
गिलोय बहुत ही लाभकारी औषधीय पौधा है जिसे इन्यूनिटी बढ़ाने के लिए जाना जाता है। कोरोना काल में लोगों ने इसका खूब सेवन किया और तब से इसकी मांग काफ़ी बढ़ गई। इसकी खेती रेतीली, दोमट, बलुई दोमट, हल्की चिकनी और अच्छी जल निकास वाली मिट्टी में की जानी चाहिए। गिलोय का पौधा लता की तरह फैलता है। ये दूसरे पौधों के सहारे ऊपर चढ़ता है।