सम्मान 2024 : आशीष कुमार राय के जैविक दृष्टिकोण से रासायनिक खेती के जाल से मिली मुक्ति, खेतों में आई हरियाली

आशीष कुमार राय धान, गेहूं, चना, मटर, अरहर, तिल, और अलसी जैसी विविध फसलें उगाते हैं। वो अपनी फसलों के पोषण के लिए वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद और धैचा (हरी खाद) का उपयोग करते हैं।

जैविक खेती तकनीक

प्रस्तावना

जैविक खेती, जिसे हम “विज्ञान और प्रकृति का संगम” कह सकते हैं, आज के समय में अत्यंत महत्वपूर्ण बन चुकी है। रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों ने न केवल स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचाया है। इस परिप्रेक्ष्य में, आशीष कुमार राय की कहानी एक प्रेरणादायक उदाहरण है, जिसने जैविक खेती को अपनाकर न केवल अपने खेतों में हरियाली लाई, बल्कि अपने समुदाय को भी जागरूक किया।

आशीष कुमार राय का परिचय

आशीष कुमार सिंह, एक ऐसा नाम जो उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव में रहकर जैविक खेती के क्षेत्र में एक अलग पहचान बना रहा है। वो अपने खेतों में बिना रासायनिक खाद और कीटनाशकों के सहारे फसल उगाते हैं, और सोचते हैं कि हमारी मिट्टी और हमारा स्वास्थ्य, दोनों ही इस पद्धति से सुरक्षित रह सकते हैं। आशीष ने जैविक खेती की राह चुनी और अपने परिवार की चौथी पीढ़ी के रूप में खेती को एक नए दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ा रहे हैं।

बदलते खेती के तरीकों का इस्तेमाल

आशीष कुमार राय धान, गेहूं, चना, मटर, अरहर, तिल, और अलसी जैसी विविध फसलें उगाते हैं। वो बताते हैं, “खेत के कुछ हिस्सों में ही जैविक खेती की शुरुआत की है।” खेतों में कीट लगने का डर होता है, तो वो यूरिया जैसे रसायनों की बजाय नीम के तेल का छिड़काव करते हैं। ये न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि उनकी फसलों को भी लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखता है।

वो अपनी फसलों के पोषण के लिए वर्मी कम्पोस्ट, गोबर की खाद और धैचा (हरी खाद) का उपयोग करते हैं। आशीष बताते हैं कि “धान की फसल कटने के बाद उसके पुआल को डी-कम्पोजर की मदद से सड़ा देता हूँ, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ जाती है और अगली फसल के लिए खेत तैयार हो जाता है।” वो अपने खेतों में अलग-अलग फसल उगाते हैं, जिससे मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है और फसलों की उत्पादकता बढ़ती है।

खेती से प्यार, मुनाफ़े पर ज़ोर नहीं

बावजूद इसके कि जैविक खेती में मेहनत ज़्यादा और लागत अधिक लगती है, आशीष ने अभी तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया है। वो बताते हैं कि खेती में मुनाफा-नुकसान सब कुछ प्रकृति पर निर्भर करता है। उनका कहना है-

“हमारे क्षेत्र में मंडी की सुविधा नहीं है, जिससे कभी-कभी हमारे उत्पादों को बेचने में मुश्किलें आती हैं। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। आसपास के लोग ही मेरे जैविक उत्पादों को खरीदते हैं, और इसी से मेरे घर का गुजारा सही चलता है।”

सफलता की कहानियों से प्रेरणा

आशीष की मेहनत और उनके प्रयोगों की सराहना 2018-19 में राज्य स्तर पर की गई, जब उन्हें “चौधरी चरण सिंह किसान सम्मान” से नवाज़ा गया। ये सम्मान उन्हें चने की जैविक खेती में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए मिला था, जिसमें उन्होंने हरियाणा से एच.सी. 5 प्रजाति का चना मंगवाकर उगाया था। उस समय उनकी उपज 40.40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर थी, जो जैविक खेती के हिसाब से एक उत्कृष्ट परिणाम था। इस दौरान उन्होंने रासायनिक खाद की जगह नीम के तेल का इस्तेमाल किया, और उनका ये प्रयोग सफ़ल रहा।

खेती के प्रति समर्पण और परिवार का सहयोग

आशीष के परिवार में माता-पिता, पत्नी, एक बेटा और एक बेटी हैं। वो कहते हैं, “खाना-पीना ठीक से चल रहा है, बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं और मैं चाहता हूँ कि वे पढ़-लिखकर एक बेहतर भविष्य बनाएं।” उन्होंने खेती में होने वाली चुनौतियों के बावजूद, कभी भी रासायनिक खेती की ओर वापस मुड़ने का विचार नहीं किया। उनका मानना है कि, “थोड़ा कम खाएंगे, लेकिन रोगी नहीं रहेंगे। जो पैसा दवा में खर्च करेंगे, उससे बेहतर है कि उसे खेती और अपने स्वास्थ्य पर खर्च करें।”

जैविक खेती की ओर बढ़ते कदम

आशीष का सपना है कि उनके गांव के और भी किसान जैविक खेती की ओर प्रेरित हों। वो बताते हैं, “जब उन्होंने देखा कि फसलें बिना किसी रसायन के अच्छी उपज दे रही हैं, तो उन्होंने भी इस पद्धति में रुचि दिखाना शुरू कर दिया।” उनका उद्देश्य न केवल खुद का स्वास्थ्य बेहतर रखना है, बल्कि आसपास के समाज और पर्यावरण को भी स्वस्थ रखना है।

चुनौतियां और संभावनाएं

जैविक खेती में लाभ की संभावनाएं तो हैं, लेकिन चुनौतियां भी कम नहीं हैं। मंडी की अनुपलब्धता, उत्पादन की सही कीमत न मिलना, और रासायनिक खेती के समर्थकों से मिलती अस्वीकृति जैसी समस्याएं अक्सर सामने आती हैं। आशीष कहते हैं-

“हमारा क्षेत्र जैविक उत्पादों के लिए विकसित नहीं है, जिससे हमें अपने उत्पाद बेचने में कठिनाई होती है। लेकिन मुझे विश्वास है कि धीरे-धीरे लोग जागरूक होंगे और जैविक उत्पादों की मांग बढ़ेगी।”

भविष्य की दिशा

आशीष का मानना है कि जैविक खेती केवल एक पद्धति नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। वो इसे एक ऐसी विरासत मानते हैं, जो उन्होंने अपने पूर्वजों से सीखी है और जिसे वह आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं। वो चाहते हैं कि उनके बच्चे और गाँव के अन्य युवा भी इस दिशा में सोचें और जैविक खेती को बढ़ावा दें।

“अगर हम अपनी मिट्टी और पर्यावरण को नहीं बचाएंगे, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए क्या छोड़ेंगे?” ये सवाल आशीष अक्सर अपने साथियों से पूछते हैं। उन्होंने अपने जीवन में ये ठाना है कि चाहे जितनी भी मुश्किलें आएं, वे जैविक खेती को ही अपनाएंगे और इसे ही आगे बढ़ाएंगे।

सामुदायिक प्रभाव

आशीष की सफलता ने उनके गांव में जागरूकता फैलाई। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया और अन्य किसानों को प्रेरित किया। सामूहिक प्रयासों से, गांव में जैविक खेती को एक नई पहचान मिली, जिससे सभी किसानों को लाभ हुआ।

जैविक खेती की तकनीकें

  1. हरी खाद: खेत में धैचा, सन, मूंग जैसी फसलें उगाकर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जाती है।
  2. फसल चक्र: एक ही खेत में अलग-अलग मौसम में अलग फसलें उगाई जाती हैं, जिससे मिट्टी की पोषकता बनी रहती है।
  3. वर्मी कम्पोस्ट: केंचुओं द्वारा जैविक खाद बनाकर मिट्टी की गुणवत्ता सुधारी जाती है।
  4. प्राकृतिक कीटनाशक: नीम, गोमूत्र आदि का उपयोग कर कीटों का प्रबंधन किया जाता है।
  5. फसल अवशेष प्रबंधन: खेत के बचे अवशेषों से जैविक खाद बनाई जाती है।
  6. जीवामृत/घनजीवामृत: देसी गाय के गोबर-गोमूत्र से मिट्टी के सूक्ष्मजीव बढ़ाए जाते हैं।
  7. मल्चिंग: सूखे पत्तों से मिट्टी ढककर नमी को बनाए रखा जाता है।
  8. जैविक बीज: बिना रासायनिक उपचार के स्थानीय बीजों का प्रयोग।
  9. अंतरफसली खेती: एक ही खेत में दो या अधिक फसलें उगाकर उपज बढ़ाना।
  10. पशुपालन व कृषि का समन्वय: खेती के साथ पशुपालन कर खेत की उर्वरता बढ़ाई जाती है।
  11. डीकम्पोजर का उपयोग: फसल अवशेष सड़ाकर जैविक खाद तैयार की जाती है।
  12. पानी संरक्षण: ड्रिप इरिगेशन व अन्य तकनीकों से पानी बचाना।
  13. खरपतवार प्रबंधन: जैविक तरीकों से खरपतवार नियंत्रित करना।

निष्कर्ष

आशीष कुमार राय की कहानी ये सिखाती है कि जैविक खेती न केवल एक विकल्प है, बल्कि एक आवश्यकता भी है। उनके दृष्टिकोण ने ये साबित किया कि यदि हम प्रकृति के साथ तालमेल बनाकर चलें, तो न केवल हमारी खेती सफल होगी, बल्कि पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा। आशीष का संदेश स्पष्ट है: “प्रकृति का सम्मान करें, और सफलता खुद-ब-खुद आपके कदम चूमेगी।”

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुंचाएंगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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