मधुमक्खी पालन लाभकारी है, इसके बावजूद जानकारी और प्रोत्साहन की कमी के कारण कम लोग इससे जुड़े हैं। मधुमक्खी पालन को कम लागत में छतों में, मेड़ों के किनारे, तालाब के किनारे किया जा सकता है। जिन किसानों के पास कम ज़मीन है, वो खेती-बाड़ी के साथ-साथ मधुमक्खी पालन आसानी से कर सकते हैं। अगर सही जानकारी मिले तो एक साल में ही मधुमक्खी पालन से ठीक- ठाक कमाई कर सकते हैं।
लखनऊ जिले के मदारपुर केवली गाँव के रहने वाले बृजेश कुमार वर्मा एक ऐसे ही किसान हैं। आज बृजेश कुमार उत्तर प्रदेश के मध्य इलाकों यानी सेंट्रल यूपी में जाना-माना नाम हैं । बृजेश कुमार मधुमक्खी पालन से अच्छी आमदनी कर रहे हैं। उन्होंने क्षेत्र के कई किसानों और बेरोजगार युवाओं को रोजगार भी दिया है।
कैसे हुई मधुमक्खी पालन की शुरुआत
परिवार की आर्थिक तंगी के कारण बृजेश कुमार ने अपनी पुश्तैनी ज़मीन के 0.4 हेक्टेयर हिस्से में खेती करनी शुरू की। 1990 में उत्तर प्रदेश सरकार के बागवानी विभाग द्वारा मधुमक्खी पालन को बढ़ावा दिया जा रहा था। उस दौरान ही गांव में उत्तर प्रदेश सरकार के बागवानी विभाग ने मधुमक्खी पालन का ट्रेनिंग कैम्प लगाया था। यहीं से उन्होंने मधुमक्खी पालन से जुड़ी तमाम बारीकियों के बारे में सीखा।
फिर अपने साथी किसानों के साथ बृजेश लखनऊ स्थित बागवानी विभाग पहुंचे। वहां से उन्हें एक मधुमक्खी पालन के लिए बॉक्स मुफ़्त में दिया गया। इसके बाद वो पूरी लगन से मधुमक्खी पालन में लग गए। इस एक मधुमक्खी बॉक्स से जो शहद तैयार हुआ, उसे बेचकर दो साल में ही उन्होंने 10 और मधुमक्खी के बक्से खरीद डाले।
बृजेश कुमार ने ICAR-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा आयोजित कई ट्रेनिंग प्रोग्राम्स में भी भाग लिया। इन ट्रेनिंग प्रोग्राम्स से उन्हें मधुमक्खियों से अच्छी गुणवत्ता वाले शहद निकालने, उत्पाद की ब्रांडिंग और इसकी बिक्री के लिए अच्छे तरीकों की जानकारी मिली।
गाँव में लगवाई प्रोसेसिंग यूनिट
बृजेश कुमार ने एक मधुमक्खी पालक समूह भी बना रखा है। ये समूह ‘अभिषेक ग्रामोद्योग संस्थान’ के नाम से सहकारी समिति के तौर पर रजिस्टर्ड भी है। इस संस्थान ने राज्य सरकार के ग्राम विकास विभाग के सहयोग से लखनऊ जिले के गोसाईगंज में शहद निकालने की यूनिट लगवाई।
प्रोसेसिंग यूनिट में तैयार किया जाता है उच्च गुणवत्ता वाला शहद
ये संस्थान कई गांवों से कच्चा शहद इकट्ठा कर उच्च गुणवत्ता वाला शहद तैयार करता है। फिर इस प्रोसेस किए गए शहद को राज्य के कई आउटलेट्स पर बेचा जाता है।
मधुमक्खी पालन से शहद कारोबार में कामयाबी हासिल करने के बाद, बृजेश ने अन्य प्रोडक्ट्स के उत्पादन में भी हाथ आजमाया। वो फूलों की खेती कर उससे निकलने वाले पराग ( Pollens ), मेडिकल कंपनियों को बेचते हैं। इन पोलेंस से 35% से 40% प्रोटीन निकलता है, जिसे दवा बनाने में इस्तेमाल किया जाता है।
6 हज़ार किसानों को दे चुके हैं ट्रेनिंग
बृजेश से मधूमक्खी पालन के गुण सीखने दूर-दराज से लोग आते हैं। अब तक बृजेश लगभग 6,000 किसानों को ट्रेनिंग दे चुके हैं। अब दूसरे किसान भी मधुमक्खी पालन में अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं।
हर साल होती है अच्छी ख़ासी कमाई
लखनऊ जिले के लगभग 1,120 मधुमक्खी पालक सीधे उनके संस्थान से जुड़े हुए हैं। ये संस्थान लगभग 350 टन शहद, 150 किलोग्राम पोलेंस और 100 किलोग्राम प्रोपोलिस का उत्पादन करता है। इस ग्रामीण उद्यम से हर साल की कमाई 3 करोड़ की है।
कई पुरस्कारों से सम्मानित
इस संगठन ने हाल ही में मधुमक्खी पालन के उपकरण किसानों और ग्रामीण युवाओं को आसानी से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से बक्से, फ्रेम, वैक्स शीट आदि बनाना भी शुरू किया है। बृजेश वर्मा को कृषि क्षेत्र में उनके योगदान के लिए राज्य और राष्ट्रीय, दोनों स्तरों पर कई पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है।