उत्तर प्रदेश के पीलीभीत ज़िले का एक गाँव है बलपुर मुस्तखम। यहाँ प्रगतिशील किसान अजय सिंह रहते हैं। उन्हें खेती में नये-नये प्रयोग करते रहना पसंद है। वो किसानों से अपने प्रयोग और अनुभव साझा करते रहते हैं। किसानों को कैसे फ़ायदा पहुंचे, किसानों तक कैसे उन्नत तकनीकों का ज्ञान पहुंचाया जाए, इसको लेकर उन्होंने अपने खाली पड़े प्लॉट पर एक फ़ार्म स्कूल का निर्माण करवाया। खेती की उन्नत तकनीकों के गुर सीखने आज उनके फ़ार्म पर कई किसान आते हैं। इस फ़ार्म स्कूल में वो चावल की नई किस्मों में प्रयोग करने, जैविक उर्वरकों और नवीन कीट प्रबंधन तकनीकों को आज़माते हैं।
कैसे आया फ़ार्म स्कूल खोलने का ख़्याल?
अजय सिंह के एक दोस्त कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA) में काम करते थे। दोनों में अक्सर किसानों और युवाओं के खेती कौशल को मजबूत कैसे बनाया जाए, इसको लेकर चर्चा होती थी। यहीं से अजय सिंह को फ़ार्म स्कूल खोलने का आइडिया आया। उनके पिताजी कहा करते थे कि एक अच्छे मौके के इंतज़ार में बैठे मत रहो। जवाब और रास्ता आपके आसपास ही है। सबसे ज़रूरी है कभी न हारने वाला रवैया और सफलताओं की निरंतर खोज करते रहना। अजय सिंह ने अपने पिता के इन्हीं शब्दों पर अमल करते हुए फ़ार्म स्कूल खोला। अजय सिंह किसानों के लिए कुछ करना चाहते थे, इसीलिए बिना देरी किए किसानों और युवाओं को खेती की नयी-नयी जानकारियां और तकनीकों के बारे में बताने के मकसद के साथ इस फ़ार्म स्कूल को खोला गया।
अपने फ़ार्म को बनाया ट्रेनिंग सेंटर
उन्होंने अपने फ़ार्म के एक हेक्टेयर में चावल की पूसा बासमती-1121 (Pusa Basmati-1121) किस्म लगाई। किसानों को उसका फ्रंट लाइन डेमोस्ट्रेशन (Front Line Demonstration) करके दिखाया। अन्य किसानों ने भी इसे अपनाया। ये उनकी सबसे बड़ी बड़ी उपलब्धि रही।
अजय ने ट्रेनिंग लेने आए किसानों को बीजों के उपचार के बारे में जानकारी दी। अजय ने बताया कि बीजों को नर्सरी बेड में बोने से 12 घंटे पहले उनका स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (Streptocyclin) से उपचार करना चाहिए। स्ट्रेप्टोसाइक्लिन एक जीवाणुरोधी एंटीबायोटिक दवा है, जो धान में बैक्टीरियल लीफ़ ब्लाइट जैसे लगने वाले रोगों से फसल का बचाव करती है। इसके अलावा वो खाद में ट्राइकोडर्मा मिलाते हैं, जो मिट्टी से होने वाली बीमारियों को नियंत्रित करता है। फिर 25 दिन बाद नर्सरी से पौधों को खेत में लगाया जाता है।
फसल को नुकसान से बचाने के लिए सुझाए तरीके
एक वक़्त ऐसा आया कि फ़ार्म में लगे पौधे तना छेदक रोग से संक्रमित हो गए। इसके उपचार के लिए अजय ने विशेषज्ञों से सलाह ली। विशेषज्ञों ने प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में हफ़्ते में एक बार ट्राइकोग्रामा के 7 से 8 कार्ड लगाने की सलाह दी। तीन बार ये विधि दोहराने को कहा। इससे उनकी फसल के नुकसान का प्रतिशत कम हुआ।
अजय ने अपने फ़ार्म स्कूल और फ्रंट लाइन डेमोस्ट्रेशन के माध्यम से किसानों को एकीकृत कीट प्रबंधन विधियों के लाभों के बारे में बताया। ये विधियां न केवल किसानों के लिए प्रभावी रहीं, बल्कि इससे लागत में भी कटौती आई। नतीजतन, अजय को प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल चावल की उपज मिली। अपने इस प्रयास की बदौलत वो अपने साथी किसानों के लिए एक मिसाल की तरह उभरे हैं।
पूसा बासमती 1121 किस्म की ख़ासियत
2005 में रिलीज़ हुई पूसा बासमती 1121 किस्म के चावल का दाना लंबा होता है। 1121 चावल का साइज 12 एमएम से भी ज़्यादा है। चावल एक्सपोर्ट (Rice Export) में 1121 चावल की हिस्सेदारी सबसे ज़्यादा है। 1121 धान की औसतन पैदावार 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। जबकि 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक अधिकतम पैदावार हो सकती है। इसके पौधे की ऊंचाई 110 से 120 सेंटीमीटर तक होती है। पूसा बासमती-1121 किस्म को परिपक्व होने में लगभग 106 दिनों का समय लगता है।
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