कश्मीर के बारे में कहा गया है, “गर फिरदौस बर रूये ज़मी अस्त, हमी अस्तो हमी अस्तो हमी अस्त”। यानि धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है, यहीं है, यहीं है। कश्मीर की खूबसूरती का जिक्र जब भी हम करते हैं तो हरे-भरे पहाड़, लहलहाते खेत, बर्फीली वादियों की छवि हमारे दिमाग में तैरने लगती है।
कश्मीर के श्रीनगर जिले का एक गाँव खंबेर भी इन मनमोहक दृश्यों से पटा हुआ है, लेकिन अक्सर गर्मी के मौसम में यहां के खेतों की फसल मुरझा जाती थी। इस समस्या का हल यहां के किसान रईस अहमद गनी ने निकाला। उन्होंने वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक बनाकर गर्मी में पानी की कमी की समस्या का स्थाई समाधान निकालने का काम किया और वहां की सिंचाई व्यवस्था को सुधारा।
किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में रईस अहमद गनी ने बताया कि मई-जून में इस क्षेत्र में गर्मी की वजह से पानी की कमी से दो-चार होना पड़ता था। ऐसे में उनकी मदद के लिए कृषि विभाग ने पहल करते हुए वहां वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक्स लगवाए। उन्होंने ये भी बताया कि पहले वो जो भी फसल उगाते थे, धूप के कारण सूख जाती थी और उन्हें नीचे जाकर अपने गांव से दूसरी जगह से पानी लाना पड़ता था, जिसमें पूरा दिन चला जाता था। लेकिन अब वहां वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक लगने के बाद खेती करने में काफ़ी आसानी हुई है और अब ज़्यादा पैदावार के साथ-साथ कमाई भी अच्छी होती है।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत किसानों को मिलती है सब्सिडी
20 फुट लंबाई, 20 फुट चौड़ाई और 3 फुट गहराई का वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक बनाने में औसतन 3 लाख 60 हज़ार रुपये का खर्च आता है, जिसमें से प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत एक लाख 80 हज़ार रुपये सरकार की ओर से सब्सिडी मिलती है।
कैसे बनता है वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक?
मृदा संरक्षण सहायक अबूजर इकबाल बट्ट बताते हैं कि प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत हर जिले में वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक्स लगवाए जाते हैं। इस टैंक को बनाने में मशीन का उपयोग नहीं होता और बनाते वक़्त इसका कैचमेंट एरिया कवरेज सुनिश्चित करना होता है साथ ही फील्ड एजेंसी सर्वे करती है। इसके बाद ही वॉटर हार्वेस्टिंग टैंक का निर्माण किया जाता है। इस से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए वीडियो देखें।
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