किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता अर्पित दुबे की ख़ास सीरीज़ (भाग-3):
हाल ही में, मैं दिल्ली से सटे गाँव जट खोर के ‘ऑर्गेनिक एकड़’ फ़ार्म पहुंचा। फ़ार्म के फाउंडर लक्ष्य डबास से मुलाकात हुई। इस सीरीज़ के पहले दो भागों में मैंने आपको लक्ष्य डबास के फ़ार्म में कमाल के देसी जुगाड़ से बने पॉलीहाउस से लेकर कैसे वर्मीकम्पोस्ट बेड, खरपतवार की समस्या को दूर करने में मददगार है बताया था।
इस सीरीज़ का पहला भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं: Organic Acre के फाउंडर लक्ष्य डबास से जानिए देसी जुगाड़ से पॉलीहाउस बनाने का तरीका और कीजिये पूरे साल खेती
इस सीरीज़ का दूसरा भाग आप यहाँ पढ़ सकते हैं: Organic Acre: इन बातों का ख्याल रखेंगे तो खेती में होगी तरक्की, लक्ष्य डबास से जानिए उत्पादन बढ़ाने और फसलें बचाने की टिप्स
आज मैं आपको सीरीज़ के तीसरे भाग में, ऐसी जानकारियों के बारे में बताने जा रहा हूँ, जिससे आपको खेती करने में फ़ायदा मिलेगा। साथ ही, आप जानेंगे कि लक्ष्य अपने फार्म ‘ऑर्गेनिक एकड़’ में इन तरीकों को कैसे इस्तेमाल कर रहें हैं।
सब्जियों की लगातार सप्लाई ऐसे कर सकते हैं
मैंने उनसे पूछा कि वो सब्जियों की लगातार सप्लाई का ध्यान कैसे रखते हैं? इस पर उन्होंने बताया कि वो अपने पिछले साल के डाटा का इस्तेमाल करते हैं जिससे उन्हें ये पता चल जाता है कि एक हफ्ते में उनकी कितनी फ़सल बिक रही है। इसके बाद वो अपनी सब्जियों का एक पैच बनाते हैं। उदाहरण के तौर पर फूल गोभी (Cauliflower) ज़्यादा बिकती है तो उसके 4 बेड लगाये हैं, पत्ता गोभी (Cabbage) और ब्रोकली (Broculli) कम बिकती है, तो उसके 3 बेड लगाये हैं। सप्लाई को बरकरार रखने के लिए वो हर 15 से 20 दिन में दोबारा नए पौधे लगाते हैं। उन्होंने बताया कि हमें सबसे ज़्यादा इस चीज पर ध्यान रखने की ज़रुरत है कि कौन सी फ़सल कितने समय में तैयार होगी, जिससे प्लैनिंग करने में आसानी होती है।
ड्रिप इरिगेशन से खेती में फ़ायदे
अपने अनुभवों पर बात करते हुए उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने फार्म में स्ट्रॉबेरी और विदेशी सब्जियों (exotic vegetables) में पानी के इस्तेमाल के लिए ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल किया है। इसके फायदे गिनाते हुए उन्होंने बताया कि एक तो इसमें कम पानी का इस्तेमाल होता है, जिससे फ़सल में फंगस लगने की संभावनायें कम हो जाती हैं। दूसरा, खेत में पानी लगाने के लिए आमतौर पर मजदूरों की मदद चाहिए होती है लेकिन इस प्रक्रिया में बिजली के इस्तेमाल से लागत कम आती है।
उन्होंने साथ में ये सुझाव दिया की बेड वाली सब्जियों के लिए mulching प्रक्रिया का इस्तेमाल करें जिससे खरपतवार (weed) नहीं उगेगी। साथ ही, खरपतवार में बीज लगने से पहले उन्हें खेत से निकाल दें। अगर खरपतवार में बीज लग गया तो अगले साल इससे खरपतवार के हज़ारों पौधे लग जाएंगे और बड़ा नुकसान होगा।
मैंने उनसे पूछा कि किसान सही बीज का चुनाव कैसे और कहाँ से कर सकते हैं ? इस पर उन्होंने बताया कि किसानों को ज्यादातर लोकल यानि देसी बीज का चयन करना चाहिए। देसी बीज मिलने में असुविधा हो तो प्रमाणित हाइब्रिड बीज (certified hybrid seed) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। देसी बीजों के बारे में एक और बात उन्होंने बतायी कि वह सिर्फ जिस क्षेत्र में बनते हैं, ज़्यादातर वहीं कामयाब रहते हैं। इसलिए अगर इलाके के देसी बीज मिल जाएँ तो उन्हें तरजीह देनी चाहिए। उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि अगर आपकी बंजर ज़मीन है तो उसे जैविक खेती के लिए तैयार होने में तीन साल का समय लगता है। इसके लिए एक एकड़ में 15-20 टन गोबर की खाद, जीवमृत और बाकी देसी दवाइयों का इस्तेमाल करना चाहिए।
बेड पर फसलों को लगाने से फ़ायदा
मैंने वहाँ देखा कि उन्होंने कुछ सब्जियों की खेती के लिए बेड का इस्तेमाल किया हुआ है। मैंने उनसे पूछा कि इससे क्या फ़ायदा होता है? लक्ष्य ने बताया कि हमें बेड का इस्तेमाल जरूरत के मुताबिक करना चाहिए। उन्होंने बताया कि उनके यहाँ चिकनी मिट्टी है, जिससे मिट्टी में पानी का ज़्यादा भराव होता है।
ऐसे में बारिश ज़्यादा होने के समय फ़सल खराब होने की आशंका रहती हैं, इसलिए खेत में बेड बनने से पानी बीच में से निकल जाएगा। इसके फ़ायदों के बारे में उन्होंने ये भी बताया की अगर हम फ्लड इरिगेशन भी (flood irrigation) करते हैं, तो आमतौर से आधे पानी का ही इस्तेमाल होता है। उनका कहना था कि जड़ वाली फसलें जैसे गाजर, मूली, शलगम हमेशा चिकनी मिट्टी वाले इलाकों में ज़्यादा अच्छी होती हैं, और बेड पर लगाने से ही सबसे ज़्यादा फायदा देती हैं। इससे गुणवत्ताआती है और सब्ज़ी का आकार भी अच्छा मिलता है। सब्ज़ियों को मार्केट करने में भी आसानी रहती है।
लक्ष्य अपने फ़ार्म Organic Acre में किस तरह से अपनी सब्जियों की मार्केटिंग करते हैं और साथ ही सब्ज़ियों को बेचने से जुड़ीं काम की कई जानकारियां इस सीरीज़ के अगले भाग में आपसे शेयर करूंगा।
(आगे भी ज़ारी – पढ़ते रहिये www.kisanofindia.com)
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