खेती में रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते इस्तेमाल से साल दर साल मिट्टी सख़्त होती जा रही है। इससे ज़मीन की पानी सोखने की क्षमता और उपजाऊ गुण तेज़ी से कम हो रहे हैं और देखते ही देखते ज़मीन बंजर हो रही है।
इसे देखते हुए अब कई किसान जैविक खेती की तरफ़ बढ़ रहे हैं। उनका सोचना है कि अगर ऐसे ही केमिकल युक्त खेती होती रही तो आने वाले समय में खेती करने लायक ज़मीन ही नहीं बचेगी। साथ ही, जैविक तरीके से तैयार फसल को बाज़ार में दाम भी अच्छा मिलता है।
20 एकड़ क्षेत्र में करते हैं जैविक खेती
उत्तर प्रदेश के चित्रकूट के रहने वाले योगेश जैन 2009 से जैविक खेती कर रहे हैं। 20 एकड़ के बाग में उन्होंने अलग-अलग तरह की कई फल-सब्जियों के पेड़ लगा रखे हैं। साथ ही दाल और कई तरह के मसालों की खेती भी योगेश जैन करते हैं।
योगेश जैन ने फलों में केला, अमरूद, आंवला, मौसमी, अंजीर, नींबू, थाई पिंक अमरूद के पेड़ अपने बाग में लगा रखे हैं। योगेश जैन ने खेती में कई प्रयोग भी किये हैं जिससे क्षेत्र के कई किसानों को मदद भी मिल रही है।
खेती के लिए पानी की कमी को किया दूर
किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में योगेश जैन ने बताया कि वो जिस ज़मीन पर खेती कर रहे हैं वो पूरी तरह बंजर पड़ी थी। इसमें फसल उगाना मुश्किल था। न पानी, न बिजली और न ही सड़क की व्यवस्था इस क्षेत्र में थी। शुरुआत में उन्होंने अपने इस बाग में पांच पेड़ लगाए। फिर देखा कि पेड़ बड़े होने लगे हैं।
इसके बाद उन्होंने ज़मीन की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने के लिए कई काम किये। छोटा सा ट्यूबवेल बनाकर पानी की व्यवस्था की। जब गर्मियों में पानी की कमी की समस्या हुई तो उस वक़्त ड्रिप इरिगेशन मेथड से खेती की। साथ ही, पानी की कमी को दूर करने के लिए तालाब भी बनवाया, जिसमें बारिश का पानी इकट्ठा हो सके।
तकनीक को खेती से जोड़ा
योगेश जैन ने अपने बाग में सोलर प्लांट भी लगवा रखा है। वॉटर गन तकनीक का इस्तेमाल भी योगेश जैन करते हैं। इस तकनीक में पेड़ों पर पानी की बौछार की जाती है। इससे पेड़ साफ हो जाते हैं और उनमें रोग नहीं लगता।
ज़ीरो बजट खेती पर होना चाहिए ज़ोर
योगेश जैन कहते हैं कि किसानों का लागत को कम कर आमदानी को बढ़ाने का लक्ष्य होना चाहिए। ज़ीरो बजट खेती से ये मुमकिन भी है। योगेश जैन ने बताया कि जैविक खेती गौपालन के बिना मुमकिन ही नहीं है। उन्होंने करीबन 100 गाय भी पाल रखी हैं। गोबर खाद से लेकर गौमूत्र, नीम और धतूरे से जीवामृत बनाकर कीटनाशक के रूप में इस्तेमाल होता है।
मसालों की खेती से अच्छा मुनाफ़ा
योगेश जैन ने अपने बाग में कई मसालों की खेती की भी शुरुआत की है। योगेश जैन कहते हैं कि बुंदेलखंड के लिए मसालों की खेती फ़ायदेमंद है। अगर बड़ी मात्रा में अन्य फसलों के साथ मसालों की खेती की जाए तो किसान अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। मसालों की बाज़ार में अच्छी कीमत भी मिलती है। कोरोना काल में कच्ची हल्दी 200 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकी।
बांस के पेड़ों से 5 लाख तक का मुनाफ़ा
बाग में इस समय कुल 13 हज़ार 760 पेड़ लगे हैं। इनमें बांस के पेड़ भी हैं, जिसे हरा सोना भी कहा जाता है। योगेश जैन ने बताया कि हर दो साल में बांस की कटाई होती है। बांस के अगर 500 पेड़ लगा रखें हैं तो 5 लाख तक का मुनाफ़ा किसान कमा सकते हैं।
6 महीने में तैयार हो जाती है अरहर की ये किस्म
योगेश जैन ने अपने खेत में अरहर की किस्म नरेंद्र अरहर 7 की खेती भी की हुई है। इस किस्म की फसल 6 महीने में तैयार हो जाती है। इसकी कटाई के बाद किसान अन्य किसी दूसरी फसल की खेती कर अपनी आमदनी में इज़ाफ़ा कर सकते हैं।
ज़मीन को भी कई पोषक तत्वों की ज़रूरत
योगेश जैन कहते हैं कि कृषि भूमि की पूरी तरह से सेवा करने की ज़रूरत होती है। ज़मीन को भी कई पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है। योगेश जैन ने बताया कि उन्होंने अपने बाग में जिप्सम खाद डाली हुई है, जो ज़मीन की पानी सोखने की क्षमता को बढ़ाता है। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। जिप्सम खाद से खेतों की मिट्टी हल्की और मुलायम बनती है और फसलों की जड़े काफ़ी स्वस्थ रहती है।
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जैविक फसल को मिलता है अच्छा दाम
योगेश जैन कहते हैं कि खेती फ़ायदे का सौदा तब बनेगा, जब किसान जैविक खेती की ओर बढ़ेंगे। योगेश जैन को अपनी फसल को बेचने के लिए बाज़ार तलाशने की ज़रूरत नहीं होती। लोग खुद उनसे सीधा माल खरीदते हैं। जहां बाज़ार में गेहूं 1600 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल तक बिकता है, वहीं योगेश जैन 4000 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल में गेहूं बेचते हैं। जो चावल बाज़ार में 30 से 35 रुपये प्रति किलो बिकता है, योगेश 60-70 रुपये प्रति किलो बेचते हैं। इस तरह लागत कम और कीमत में इज़ाफ़ा होता है।
योगेश जैन कहते हैं कि वो खेती-किसानी को घाटे का सौदा नहीं मानते। किसानों को नये प्रयोग और मेहनत करने की ज़रूरत होती है। जैविक खेती करने के लिए किसान में सहनशीलता होना ज़रूरी है। जैविक खेती संयम के साथ की जाती है। 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद किसान को जैविक खेती के अच्छे परिणाम मिलने लगते हैं।
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