Suran Ki Kheti: कैसे सूरन की खेती में कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा? सब्सिडी का उठाएं फ़ायदा

Suran Ki Kheti: सूरन (Suran) को ओल और जिमीकंद के नाम से देश के अलग-अलग हिस्सों में सब्जी के तौर […]

suran ki kheti सूरन की खेती

Suran Ki Kheti: सूरन (Suran) को ओल और जिमीकंद के नाम से देश के अलग-अलग हिस्सों में सब्जी के तौर पर खाया जाता है। सूरन को एलीफैंट फुट याम (Elephant Foot Yam) भी कहते हैं। इसकी सब्जी बनने के बाद काफ़ी टेस्टी होती है। साथ ही इसके कई सारे औषधीय फ़ायदे भी हैं। इसका साइंटिफिक नाम अमोर्फोफैलुस कम्पानुलातुस (Amorphophallus campanulatus) है। सूरन की बुवाई पहले किचन गार्डेन, घर के आसपास की ज़मीन तक ही सीमित थी। आज के वक़्त में सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) करके किसान लाखों की कमाई कर रहे हैं। इसकी विदेशों में भारी डिमांड हैं। सूरन से कई तरह की दवाइयां भी बनती हैं। क‍िसान अगर सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) एक एकड़ में करते हैं तो वो अपनी लागत का चार से पांच गुना तक मुनाफ़ा कमा सकते हैं। भारत में सूरन की कई किस्में हैं जिनकी खेती की जाती है।

सूरन की खेती कब होती है? (Suran Farming

सूरन की फसल उगाने के लिए सबसे ज़रूरी है इसका सही तरीका जानना। सही टेक्निक से किसान इसकी खेती करके लाखों की कमाई कर सकते हैं। सूरन या जिमिकंद की खेती (Suran Ki Kheti) अप्रैल से जून महीने के आखिर तक होती है। अगर किसान के पास सिंचाई की सुविधाएं मौजूद हैं तो सूरन की बुवाई मार्च महीने में भी की जा सकती है।

सूरन की खेती का तरीका (Farming Technique Of Suran)

सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) के लिए रेतीली दोमट मिट्टी फ़ायदेमंद होती है। ओल की खेती (Suran Ki Kheti) के लिए किसानों को सही और अच्छे कंदों पर ध्यान देने की ज़रूरत होती है जो बुवाई में काम आ सकें। किसान चाहे तो अपने खेत के कुछ हिस्सों में भी सूरन को आसानी से लगा सकते हैं। सूरन की फसल को उगाने के लिए सबसे पहले अच्छे से खेत की जुताई कर लें। इससे रोपाई बेहतर तरीके से होती है। खेत की मिट्टी से नमी हट जाने के बाद दोबारा रोटावेटर से खेत की जुताई करें। इसके बाद खेत में प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद डाल दें और मिट्टी को बराबर कर दें।

सूरन की बुवाई से पहले उपचार (Treatment Before Sowing)

बुवाई करने से पहले इनका उपचार बहुत ज़रूरी है। इसके लिए एमिसान 5 ग्राम और स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर सूरन के कन्द को करीब 30 मिनट से लेकर 35 मिनट तक भिगो कर रखें। घोल से निकाल कर इसको सूखने के लिए छोड़ दें। इसके बाद गोबर के घोल में दो ग्राम कार्बोडाइजिम पाउडर प्रति लीटर पानी में घोल कर कन्द को उसमें भिगो दें। दोबारा से सूखने के बाद ही इसको खेतों में लगाना शुरू करें।

सूरन की खेती में सिंचाई और निराई-गुड़ाई (Irrigation In Suran Farming)

खेत में दो-दो फ़ीट पर नाली तैयार करके उसमें कंपोस्ट खाद डालें। इसके बाद एक-एक फ़ीट की दूरी पर सूरन के छोटे कंदों को डालकर मिट्टी से ढंक दें। बुवाई के बाद फौरन हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। ये बात जानना अहम है कि इसमें सिर्फ तीन बार पानी से सिंचाई होती है। जून के बाद सिंचाई की ज़रूरत नहीं होती। सूरन के साइज़ का बड़ा होने के लिए सही देखभाल और निराई गुड़ाई ज़रूरी है। तीन से चार महीने के बाद एक सूरन कंद का वज़न तीन से चार किलो तक हो जाता है।

Suran Ki Kheti: कैसे सूरन की खेती में कम लागत में अच्छा मुनाफ़ा? सब्सिडी का उठाएं फ़ायदा

सूरन की फसल कब तैयार होती है? (When Suran Crop Is Ready?)

खेत में रोपने के 7 से 10 महीने के बाद उपज कटने के लिए तैयार होती है। जब पत्तियां पीली होकर झुकने लगे तब समझ जाना चाहिए की फसल तैयार है। खुदाई के वक्त बहुत सावधानी बरतनी चाहिए, जिससे सूरन के कंद कट न पायें। सारे कंदों को मिट्टी से निकाल कर छायादार जगह पर फैलाकर सुखा लें। छोटे कंदों को अगली बुवाई के लिए सुखाकर हवादार कमरों में रख देना चाहिए।

ट्रांसपोर्टेशन में सावधानियां ( Safety Measures In Transportation)

सूरन के कंद को धान के पुआल या फिर केले के सूखे पत्तों के बीच रखकर ही दूसरे स्थानों पर भेजा जाना चाहिए, नहीं तो कंद के खराब होने के चांसेज होते हैं।

सूरन में लगने वाले कीट और रोग (Pests And Diseases In Suran)

भृंग रोग (Beetle Disease)
सूरन के पौधों में अक्सर भृंग रोग लग जाता है। ये रोग टहनियों और पत्तियों में लगता है। इस रोग से पौधों को बचाने के लिए नीम के रस को माइक्रोजाइम के साथ मिलाकर पौधों में छिड़काव करना चाहिए।

झुलसा रोग (Blight Disease)
झुलसा रोग भी सूरन के पौधों में लग कर फसल को बर्बाद कर देता है। ये रोग जीवाणु जनित (Bacterial) होता है। इसके कारण पौधे की पत्तियां हल्की भूरे रंग की हो जाती है। इसके लिए बॉबी पीलिया विंडो स्टैंड का छिड़काव करें।

तंबाकू सुंडी रोग (Tobacco Bollworm Disease)
तंबाकू सुंडी रोग भी सूरन में लग कर पौधों को नष्ट कर देता है। हल्के भूरे रंग की पत्तियां होने के बाद पौधे मुर्झाने लगते हैं। तंबाकू सुंडी रोग के लिए मैनकोजेब कॉपर ऑक्सिक्लोराइड का घोल बनाकर छिड़काव करें।

याम बीटल (Yam Beetle)
याम बीटल जो सूरन की डंठलों को खाकर पौधों को कमजोर बना देते हैं। इससे बचाव के लिए कार्बोरिल 50 डब्ल्यू.पी दवा की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

सूरन की किस्में  (Best Varieties Of Suran)

सूरन की कई किस्में हैं। यहां हम आपको कुछ उन्नत किस्मों के बारे में बताने जा रहे हैं-

गजेंद्रा किस्म (Gajendra Variety)
देश के अलग-अलग हिस्सों में किसान इस किस्म को लगाते हैं। गजेन्द्रा एक देसी किस्म है। इसमें सिर्फ एक कंद बनता है। कंदों का रंग हल्का नारंगी होता है। इस किस्म को देश में सबसे ज्यादा उगाया जाता है क्योंकि ये सबसे ज़्यादा उत्पादन करता है। इस किस्म की क्षमता 80-100 टन प्रति हेक्टेयर है।

संतरागाछी किस्म (Santraganchi Variety)
इस किस्म में कंदों के गूदे का रंग हल्का पीला है। इसको खाते वक्त हल्की सी खुजली भी मचती है। इस किस्म की उपज क्षमता 50 से 70 टन प्रति हेक्टेयर है।

एम-15 किस्म (M 15 Variety)
सूरन की एक और बेहतरीन किस्म एम-15 है जो दक्षिण भारत के राज्यों में उगाई जाती है। इससे 80 टन की पैदावार प्रति हेक्टेयर होती है।

श्री पद्मा किस्म (Sri Padma variety)
इस किस्म के कंद में खुजलाहट नहीं पाई जाती है। इसका डण्ठल हरे रंग का होता है। इस किस्म की मदद से उत्पादन 40 से 60 टन प्रति हेक्टेयर है।

सूरन की खेती से कमाई (Income From Suran Farming)

करीब 200 क्विंटल तक सूरन की पैदावार (Suran Ki Kheti) एक एकड़ खेत में बड़े आराम से हो सकती है। एक बीघे में सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) करने पर अधिकतम पांच हजार से आठ हजार तक खर्च आता है। भारतीय बाज़ारों में सूरन 3 हजार से 4 हजार रुपये क्विंटल के भाव में बिकता है।

सूरन के फ़ायदे (Benefits Of Suran)

  • इसमें विटामिन सी, विटामिन बी6, विटामिन बी1, फोलिक एसिड और फाइबर भरपूर मात्रा में पाया जाता है। मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटेशियम, आयरन और फॉस्फोरस जैसे मिनिरल्स इस सब्जी में मौजूद है।
  • सूरन से पेचिश, खूनी बवासीर, बवासीर, दमा, फेफड़ों की सूजन जैसी बीमारियों को खत्म करने वाली दवाईयां तैयार की जाती हैं।
  • सूरन का इस्तेमाल घरों में सब्जियों के रूप में होता है। इससे अलग-अलग तरह की सब्जियां, आचार, चटनी, चिप्स व नमकीन तैयार किये जाते हैं।

सूरन की खेती में सब्सिडी (Subsidy In Suran Farming)

केंद्र और राज्य सरकार सूरन की खेती (Suran Ki Kheti) को बढ़ावा देने का काम कर रही हैं। किसानों की आय में इज़ाफे के लिए कई स्कीम चलाई जा रही है। बिहार सरकार किसानों के लिए एकीकृत उद्यान विकास योजना चला रही है। इसके तहत किसानों को सूरन की खेती के लिए सब्सिडी मिल रही है। राज्य सरकार के ‘अंतर्वर्ती फसल अभियान’ अभी 12 ज़िलों में चल रहा है। इसके लिए किसान ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। ओल की खेती पर बिहार सरकार 50 फीसदी की सब्सिडी दे रही है। योजना का फायदा लेने के लिए किसान भाई आधिकारिक वेबसाइट https://horticulture.bihar.gov.in पर लॉग इन करें।

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन स्कीम (Prime Minister Micro Food Industry Upgradation Scheme) के तहत सूरन से बनने वाले चिप्स, पाउडर, चटनी, अचार तैयार करने के लिए स्मॉल बिजनेस की शुरुआत के लिए इकाई लागत का 35 फीसदी और  अधिकतम 10 लाख रुपये का अनुदान मिलता है।  

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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