सदियों से खेती और गौपालन का चोली-दामन का रिश्ता रहा है, क्योंकि गौवंश के उत्पाद जितना इंसानों के लिए उपयोगी हैं उससे ज़्यादा खेती के लिए ज़रूरी हैं। मशीनीकरण के मौजूदा दौर में खेती-किसानी की गतिविधियों में गौवंश और ख़ासकर बैल की हिस्सेदारी घटती जा रही है, लेकिन गाय का दूध और अन्य उत्पाद अब भी पशुपालक किसानों की जीविका और कमाई का अहम ज़रिया बना हुआ है।
गौपालन को जैविक खेती का अभिन्न अंग माना गया है। इसकी वजह से कीटनाशक के रूप में गोमूत्र की माँग और उपयोग भी ख़ासा बढ़ा है और देसी नस्लों के गौवंश को पालना लाभदायक साबित हुआ है। यही वजह है कि देश की कुल गायों में से तीन-चौथाई यानी करीब 15 करोड़ गायें देसी नस्लों की हैं, वो भी तब जबकि भारतीय पशुधन की करीब 55 करोड़ आबादी में से एक-तिहाई (करीब 36 फ़ीसदी यानी 20 करोड़) ही गायें हैं।
मौजूदा दौर में प्रगतिशील किसानों का देसी गायों की डेयरी के प्रति रुझान भी लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि देसी नस्लों की गायें पालने में लागत के मुकाबले ख़ासी कमाई होती है। भौगोलिक विविधताओं की वजह से भारत में देसी गायों की कम से कम 26 उम्दा नस्लों को उन्नत माना जाता है। फिर अलग-अलग नस्लों की खूबियों के आधार पर देसी गायों की दुनिया को भी तीन वर्गों में बाँटा गया है। इसीलिए यदि गौ-पालक अपनी ज़रूरतों के मुताबिक, देसी गायों की उपयुक्त नस्ल का चुनाव करें तो उन्हें बेहतर आमदनी मिल सकती है।
दुधारू – इस नस्ल की देसी गायें अधिक दूध देने वाली होती हैं। गिर, लाल सिन्धी, साहीवाल और देओनी नस्लों को दुधारू वर्ग में अग्रणी माना गया है।
ड्राफ्ट – दुधारू के मुकाबले ड्राफ्ट वर्ग की नस्लों वाली देसी गायें दूध तो कम देती हैं, लेकिन इसके बैल ज़्यादा बलिष्ठ होते हैं। इनकी वजन ढोने क्षमता ज़ोरदार होती है। नागोरी, मालवी, केलरीगढ़, अमृतमहल, खिलारी, सिरी आदि ऐसी देसी नस्लें हैं जिन्हें ड्रॉफ्ट वर्ग में रखा गया है।
दोहरे उद्देश्य वाली – ये देसी गायों की ऐसी नस्लें हैं जो दूध उत्पादन और भार-वहन क्षमता दोनों में उम्दा होती हैं। इसीलिए इन्हें दोहरे उद्देश्य वाली नस्लें कहा गया। इस वर्ग में हरियाणा, ओंगोल, थारपारकर, कंकरेज आदि नस्लों का प्रमुख स्थान है।
प्रमुख देसी नस्लों की खूबियाँ
गिर नस्ल – दुधारू श्रेणी की देसी नस्लों में गिर सबसे अहम है। इसे काठियावाड़ी, भोडली, देशन, गुराती, स्वर्ण कपिला और देवमणि जैसे नामों से भी जानते हैं। ये गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बहुतायत में पायी जाती हैं। ये ज़्यादातर कत्थई-लाल और हल्के भूरे रंग की होती हैं। इनकी उम्र 12 से 15 साल तक होती है। इस दौरान ये 6 से 12 बार गर्भवती हो सकती हैं और लम्बे अरसे तक दुधारू बनी रहती हैं।
गिर गाय रोज़ाना औसतन 20 लीटर दूध देती है। इसके दूध में सबसे अधिक यानी करीब 7% तक फैट (वसा / चिकनाई / क्रीम) पाया जाता है। इसीलिए गिर गाय के दूध का सबसे बढ़िया दाम मिलता है और ये व्यावसायिक गौपालकों की पहली पसन्द बनती हैं। गिर नस्ल की एक गायें हर बार बियाने (ब्यांत) के बाद करीब 1500-1700 लीटर दूध का उत्पादन करती हैं।
गिर गाय का दूध शहरों में 70 रुपये से 200 रुपये प्रति लीटर तक और इसका घी 2000 रुपये प्रति किलो तक बिक सकता है। इसकी कीमत 60-70 हज़ार रुपये से लेकर डेढ़ लाख रुपये तक हो सकती है। दस गायों की डेयरी के उत्पादों से लागत को निकालने के बाद करीब दो लाख रुपये महीने की आमदनी हो जाती है।
साहीवाल नस्ल – देसी गायों की नस्लों में साहीवाल सबसे ज़्यादा दूध देने वाली गाय है। ये बुनियादी तौर पर उत्तर पश्चिमी भारत और पाकिस्तान में बहुतायत में मिलती हैं। ये ज़्यादातर कत्थई-लाल रंग की होती हैं। साहीवाल गायें हर बार बियाने (ब्यांत) के बाद करीब 2500 से 3000 लीटर दूध का उत्पादन करती हैं। इसीलिए ये देसी गायों की सबसे महँगी नस्ल मानी जाती है।
लाल सिन्धी – ये मूलतः पाकिस्तान के सिन्ध प्रान्त की नस्ल है। लेकिन इस नस्ल की गायें पूरे उत्तर भारत में मिलती हैं। इनका दूध उत्पादन वैसे तो गिर नस्ल की तरह ही है या ज़रा बेहतर। क्योंकि सिन्धी गायें हर बार बियाने (ब्यांत) के बाद करीब 1600-1700 लीटर दूध देती हैं।
हरियाणा नस्ल – मूलतः हरियाणा की मानी गयी इस नस्ल की गायों का रंग ज़्यादातर सफ़ेद होता है। हरियाणा नस्ल की गायें हर बार बियाने (ब्यांत) के बाद करीब 1200 लीटर दूध का उत्पादन करती हैं, लेकिन नस्ल के बैल बहुत बलिष्ठ होते हैं और अच्छे दाम पर बिकते हैं।
देसी गौवंश को प्रोत्साहन
देसी नस्ल के गौवंश को बढ़ावा देने के लिए केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से सब्सिडी देने की योजनाएँ हैं। इनका लाभ उठाने के लिए पशुपालक किसानों को अपने नज़दीकी पशुपालन विभाग से सम्पर्क करना चाहिए। गौ-पालन के लिए बैंकों से आसान शर्तों और रियायती ब्याज़ दरों पर कर्ज़ भी मिलता है। इसका लाभ लेने के इच्छुक लोगों को अपने नज़दीकी बैंक से सम्पर्क करना चाहिए।
कुलमिलाकर, डेयरी सेक्टर में दिलचस्पी रखने वाले गौपालकों के लिए देसी नस्ल की गायें कम निवेश में बढ़िया कमाई का ज़रिया हैं, बशर्ते पशुपालक किसान गायों के चारे-पानी, देखरेख-उपचार का उचित ख़्याल रखें। सदियों से पशुपालन का मूल मंत्र रहा है कि पशुओं को औलाद की तरह पालना चाहिए तभी वो कमाऊ पूत साबित होते हैं। इसीलिए गौपालन को आमदनी का सुरक्षित ज़रिया बनाने के लिए गौवंश का बीमा करवाना और इसे नियमित रूप से नवीकृत कराते रहना भी बेहद ज़रूरी है।