Azolla Cultivation: अजोला की खेती से इस महिला किसान ने बढ़ाया दूध का उत्पादन, पौष्टिक चारे की समस्या को किया दूर

खुशी लेपचा के गांव में अक्सर पशुपालकों को हरे चारे की कमी का सामना करना पड़ता था, लेकिन अजोला की खेती (Azolla Cultivation) ने इस समस्या को दूर कर दिया है। जानिए अजोला की खेती से कैसे बढ़ा गाँव में दूध का उत्पादन और पशुओं के स्वास्थ्य में हुआ सुधार।

अजोला की खेती azolla cultivation for animals

देश का एक बड़ा वर्ग पशुपालन और डेयरी व्यवसाय (Dairy Farming) से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण इलाकों में पशुपालन आज भी लोगों की आय का मुख्य ज़रिया है। पशुधन क्षेत्र राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में योगदान के अलावा, 8 करोड़ ग्रामीण परिवारों को आजीविका उपलब्ध कराने में अहम भूमिका निभाता है। कभी-कभी किसानों को जानकारी के अभाव में कम उत्पादकता के कारण दुधारू पशुओं के पालन से लाभकारी आय नहीं हो पाती। इसकी एक बड़ी वजह है पशुओं को पौष्टिक चारा न मिल पाना। सिक्किम के लिंगथेम गांव की रहने वाली खुशी लेपचा के गांव में अक्सर पशुपालकों को हरे चारे की कमी का सामना करना पड़ता था, लेकिन अजोला की खेती (Azolla Cultivation) ने इस समस्या को दूर कर दिया है। 

खुशी लेपचा ने अपने गाँव में अजोला की खेती शुरू करके न सिर्फ़ हरे चारे की कमी का हल निकाला, बल्कि किसानों को अच्छी कमाई का एक ज़रिया भी सुझाया।

खुशी लेपचा ने कैसे की शुरुआत?

खुशी अपने क्षेत्र के एक स्वयं सहायता समूह की सदस्य हैं। कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसी (ATMA) ने उनके इलाके में हरे चारे की कमी की समस्या देखते हुए, वहां के किसानों को अजोला की खेती की ट्रेनिंग देने का निर्णय लिया। खेती करने के लिए खुशी लेपचा ने अपने प्लॉट पर ट्रेनिंग कराने की पेशकश की। यहीं पर किसानों को ट्रेनिंग दी गई।

इस ट्रेनिंग के बाद से ही खुशी, अजोला की खेती करने लगी और उनके इलाके में अब हरे चारे की कोई कमी नहीं है। साथ ही, इससे खुशी लेपचा को अच्छी आमदनी भी हो रही है। अजोला की पैदावार अन्य चारा फसलों के मुकाबले अधिक होती है, इसलिए इसमें मुनाफा भी ज़्यादा होता है। गाय, भैंस, बकरी, मछली, सुअर, मुर्गीपालन आदि के आहार के रूप में इसका इस्तेमाल होता है। 

अजोला की खेती azolla cultivation for animals
तस्वीर साभार: agricoop

कई पोषक तत्वों से भरपूर होता है अजोला का चारा

अजोला अपने विशिष्ट गुणों की वजह से हरे चारे का अच्छा स्रोत बन गया है। ये कई पोषक तत्वों से भरपूर है। इसमें  लगभग 25 से 30 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। अजोला में लिग्निन की मात्रा भी कम होती है, जो पशुओं में पाचन को सुचारु बनाता है। इसकी इन्हीं खूबियों की वजह से इसे ‘ग्रीन गोल्ड’ भी कहा जाता है। खुशी और उनके गाँव वालों ने पाया कि अजोला का चारा देने से पशुओं में न सिर्फ़ दूध उत्पादन बढ़ा, बल्कि इसकी गुणवत्ता और पशुओं के स्वास्थ्य में भी सुधार हुआ।

अजोला की खेती में लागत कम

अजोला तेज़ी से बढ़ने वाली फसल है। किसान इसे आसानी से उगा सकते हैं। खुशी के खेत में 14’x14’x2’ के साइज़ के तालाब में 600 किलो अजोला का उत्पादन हुआ। इसे 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा गया यानी कुल 12000 रुपये में। उत्पादन लागत 3000 रुपये आई। इस तरह से 9000 रुपये का सीधा मुनाफ़ा हुआ। खुशी लेपचा ने अपने खेत से अजोला की खेती की खेती शुरुआत की और फिर गाँव के कई किसानों ने इसे अपनाया। आज के समय में गाँव के लोग अजोला की खेती से खुश हैं और अपने कौशल को विकसित करके अच्छी कमाई कर रहे हैं।

अजोला की खेती azolla cultivation for animals
तस्वीर साभार: ICAR

Azolla Cultivation: अजोला की खेती से इस महिला किसान ने बढ़ाया दूध का उत्पादन, पौष्टिक चारे की समस्या को किया दूरआप भी कर सकते हैं अजोला की खेती

अजोला की खेती बहुत आसान है। इसे तालाब, नदी, गड्ढों व टब आदि में आसानी से उगाया जा सकता है। वैसे तो अजोला उगाने की कई तकनीक हैं, लेकिन हमारे देश में नेशनल रिसोर्स डेवलपमेंट विधि का प्रयोग किया जाता है। इसमें प्लास्टिक शीट की मदद से 2x2x0.2 मीटर के क्षेत्र में पानी रखने की जगह बनाई जाती है। एक तरह का टैंक तैयार कर लिया जाता है। फिर इसमें 10 से 15 किलो उपजाऊ मिट्टी डाली जाती है। सामान्य पी-एच 5 से 7 के बीच रखना चाहिए। सूर्य के प्रकाश की अच्छी उपलब्धता होनी चाहिए।

इसके बाद टैंक को 2 किलो गाय के गोबर की खाद और 30 ग्राम सुपर फॉस्फेट के मिश्रण से भरा जाता है। पानी डालकर पानी के स्तर को 10 से.मी. तक पहुंचा दिया जाता है। एक किलो अजोला कल्चर डाला जाता है। इसकी वृद्धि बहुत तेज़ होती है, जिस कारण  10 से 15 दिनों में ही 500-600 ग्राम अजोला रोज़ाना मिलने लगता है। इसमें फिर से 20 ग्राम फॉस्फेट और 1 किलो गोबर की खाद का मिश्रण हर 5 दिन पर डालें। अच्छे उत्पादन के लिए आयरन, सल्फर, कॉपर आदि भी मिलाना चाहिए।

अजोला की खेती में किन बातों का रखें ध्यान?

शुद्ध प्रजाति का ही बीज इस्तेमाल करें। समय-समय पर कटाई करने से अधिक उत्पादन होता है। भारत में पाई जाने
वाली अजोला प्रजाति की लम्बाई 2 से 3 सें.मी. और चौड़ाई 1 से 2 सें.मी. होती है। अधिक उत्पादन के लिए इसकी
कटाई 1 सें.मी. पर ही करनी चाहिए। पशुओं को अजोला का चारा देने से पहले इसे अच्छी तरह से धो लेना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि गोबर मिश्रित होने के कारण जानवर इसको पसन्द नहीं करते।

अजोला की खेती की लागत बहुत कम आती है, जिससे किसान कम खर्च में अच्छा मुनाफ़ा कमाकर अपने जीवनस्तर में सुधार ला सकते हैं, साथ ही पशुओं के पौष्टिक चारे की समस्या को दूर कर सकते हैं।

अजोला की खेती azolla cultivation for animals
तस्वीर साभार: agripari

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