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सोयाबीन की नई किस्में (New Soybean Varieties): देश के किसानों की हालत में सुधार, उनकी आय में वृद्धि के उद्देश्य से कृषि वैज्ञानिक आधुनिक तकनीक और फसलों की उन्नत किस्में लगातार विकसित करते रहे हैं। अभी हाल ही में अलग-अलग फसलों की 35 नई किस्मों की सौगात किसानों को दी गई। ये नई किस्में जलवायु अनुकूल और कुपोषण मुक्त भारत के अभियान को रफ़्तार देने में मददगार होंगी।
देश के अलग-अलग कृषि संस्थानों द्वारा ईज़ाद की गई इन किस्मों में सूखा प्रभावित क्षेत्र के लिए चने की नई किस्म, कम समय में तैयार होने वाली अरहर, जलवायु अनुकूल और रोग प्रतिरोधी धान की किस्में, पोषक तत्वों से भरपूर गेहूं, बाजरा, मक्का की किस्में शामिल हैं। इसके अलावा किनोवो, कुट्टू, विंग्डबीन और बाकला की उन्नत किस्में और उच्च गुणवत्ता वाले सरसों और सोयाबीन की प्रमुख किस्में की वैरायटी भी किसानों को समर्पित की गईं। इस लेख में आगे आप सोयाबीन की नई किस्मों की खासियत और उत्पादन क्षमता के बारे में जानेंगे।
सोयाबीन की जो नई किस्में आईं हैं, वो कई मायनों में ज़्यादा उन्नत हैं, जो इसकी खेती करने वाले किसानों को अच्छे उत्पादन के साथ-साथ गुणवत्ता भी देंगी। सोयाबीन प्रोटीन की मात्रा से भरपूर होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 40 से 50 फ़ीसदी पाई जाती है। इसके नियमित सेवन से प्रोटीन की कमी से होने वाली बीमारियों से बचाव होता है। सोयाबीन के इन गुणों को देखते हुए ही लोगों के बीच इसकी अच्छी मांग रहती है। इस वजह से किसान अगर उन्नत किस्मों की खेती करेंगे तो उन्हें लाभ की संभावना ज़्यादा रहेगी।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद- सोयाबीन अनुसंधान के भारतीय संस्थान इंदौर (ICAR-IISR) ने सोयाबीन की नई किस्मों को लेकर विस्तार से जानकारी दी है। आइए जानते हैं इन सोयाबीन की नई किस्मों के बारे में।
सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 128
सोयाबीन की एन. आर. सी. 128 किस्म (Soybean Varieties nrc 128) की खासियत है कि ज़्यादा पानी गिरने और जलभराव वाली स्थिति में भी इस किस्म को नुकसान नहीं पहुंचता। इस किस्म में रोए होते हैं जिस कारण कीड़ों का प्रकोप कम होता है। ये किस्म बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के किसानों के लिए अच्छी है। साथ ही उत्तर मैदानी क्षेत्र पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के लिए भी ये किस्म उपयुक्त है। पूर्वी क्षेत्र और उत्तर मैदानी क्षेत्र के किसानों को इस किस्म की खेती से फ़ायदा होगा। इस किस्म को विकसित करने का श्रेय डॉ. एम. शिवकुमार को जाता है।

सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 127
सोयाबीन की किस्म एन. आर. सी. 127 खाद्य प्रोडक्ट बनाने के लिए बेहद उपयुक्त है। अन्य किस्मों को जहां इस्तेमाल से पहले उबालना पड़ता है। ये किस्म कड़वा मुक्त होने के कारण इसे खाया जा सकता है। ये किस्म 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। ये किस्म मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के लिए उपयुक्त है।

सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 130
एन. आर. सी. 130 बहुत ही कम समय में पकने वाली किस्म है। जो किसान एक साल में अलग-अलग तीन फसलें लगाना चाहते हैं, उन किसानों के लिए ये किस्म पहली पसंद हो सकती है। इंदौर स्थित सोयाबीन अनुसंधान के भारतीय संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक संजय गुप्ता ने इस किस्म को विकसित किया है।

सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 138
सोयाबीन की किस्म एन. आर. सी. 138 अन्य किस्मों से अधिक महत्वपूर्ण किस्म है। इस किस्म की सबसे बड़ी खासियत है कि इस किस्म में तना छेदक और पीला मोजक का प्रकोप नहीं रहता। इसकी औसतन उपज क्षमता 1789 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। कम समय में पकने वाली इस किस्म को डॉ. अनीता रानी और डॉ. विनीत कुमार ने विकसित किया है। ये खास तौर मध्य क्षेत्र के किसानों के लिए विकसित की गई है।

सोयाबीन किस्म एन. आर. सी. 142
एन. आर. सी. 142 को विकसित करने का श्रेय भी डॉ. अनीता रानी और डॉ विनीत कुमार को जाता है। इस किस्म में गुच्छे में फलियां होती हैं। इस किस्म के पकने की अवधि करीबन 100 दिन के आसपास है। एन. आर. सी. 142 लिपोक्सीजिनेज-2 और केटीआई मुक्त देश की प्रथम सोयाबीन प्रजाति है। सोयाबीन मुख्य तौर पर दूध और पनीर बनाने के काम आता है, लेकिन अमूमन होता क्या है कि इसके बने प्रोडक्टस में एक तरह की हीक आती है, जिसे ज़्यादातर लोग पसंद नहीं करते।
सोयाबीन में एक तरह का लिपोक्सीजिनेज-2 अम्ल होता है, जिस वजह से हीक आती है। इस नई किस्म में से इस अम्ल को हटा दिया गया है। इसलिए ये किस्म सोया पनीर और सोया दूध बनाने के लिए सबसे अच्छी है।

सोयाबीन किस्म आर. वी. एस. एम. 2011-35
सोयाबीन की आर. वी. एस. एम. 2011-35 (RVSM 2011-35 Soybean) स्कीम को ग्वालियर स्थित राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्व विद्यालय द्वारा विकसित किया गया है। इसकी फलियां चिकनी होती हैं। मध्य प्रदेश के किसान इस किस्म को लगा सकते हैं और अच्छी पैदावार कर मुनाफ़ा कमा सकते हैं। स्वर्गीय डॉ. वीके तिवारी ने इस किस्म को विकसित किया है। इसकी औसतन उत्पादन क्षमता 2200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। ये किस्म ताना मक्खी, चक्र भृंग एवं पर्णबक्षी कीट प्रतिरोधी है।

सोयाबीन किस्म आर. एस. सी. 10-46
आर. एस. सी. 10-46 किस्म (RSC 10-46 Soybean) को रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने विकसित किया है। खासतौर पर मध्य क्षेत्रों के लिए ये किस्म विकसित की गई है। ये किस्म भी रोए रहित है। ये किस्म पीला मोजक रोग मुक्त है, जिस वजह से किसानों को अलग से फसल के रखरखाव पर खर्च करने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। वहीं आर. एस. सी. किस्म भी मध्य क्षेत्रों के लिए है। इसमें दो से तीन दाने की फलियां होती हैं।

सोयाबीन किस्म ए. एम. एस. 100-39
वहीं ए. एम. एस. 100-39 (Soybean AMS 100-39 (PDKV Amba) को अकोला के डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ द्वारा विकसित किया गया है। इसके पौधे में भी बड़ी और चिकनी फलियां होती हैं। इसका औसत उत्पादन 2087 किलोग्राम प्रति हेक्टेर है।

सोयाबीन फसल की ये नई किस्में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में अहम हो सकती हैं। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई फसलों की ये नई किस्में छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद फ़ायदेमंद साबित हो सकती है।
सोयाबीन की नई किस्मों का प्रदर्शन (29 सितम्बर 2021).#ICAR #AatmaNirbharKrishi @PMOIndia @nstomar @KailashBaytu @PIB_India @AgriGoI @DDKisanChannel https://t.co/AAnayJzhIj
— Indian Council of Agricultural Research. (@icarindia) September 30, 2021
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