कश्मीर में महिलाओं का एकमात्र कस्टम हायरिंग सेंटर कैसे बदल रहा स्थानीय किसानों की ज़िंदगी

कश्मीर में महिलाओं की तरफ से चलाया जा रहा कस्टम हायरिंग सेंटर उन पुरुषों की आमदनी का ज़रिया बन रहा है, जो बेरोज़गार हैं या जिनके पास खाली समय होता है। उपकरणों को चलाने के लिए गांव या आसपास के ही किसी व्यक्ति को बुलाया जाता है। बदले में उनको मेहनताना दिया जाता है।

कस्टम हायरिंग सेंटर custom hiring centre

ये सच में कभी-कभी अकल्पनीय लगता है, सिर्फ़ 25 रूपये हफ़्ता जोड़कर कुछ अरसे बाद खुद का व्यवसाय करके इतनी आमदनी कर लेना, जिससे बच्चों की देखभाल से लेकर घर का खर्च भी चल जाए। लेकिन कश्मीर के पुलवामा के चकपोरा गाँव की रहने वाली शाहीन ने ये करके दिखाया। शाहीन के जिस घर में रोज़मर्रा की ज़रुरत पूरा करने के लिए सामान का बन्दोबस्त करना भी चुनौती था, वहां आज वो एक सफल पशुपालक बन कर बच्चों की अच्छी परवरिश कर पा रही हैं। 

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पशुपालक शाहीन

जम्मू-कश्मीर के पुलवामा से राजधानी श्रीनगर के रास्ते में पड़ने वाले इस छोटे से गाँव की रहने वाली शाहीन ने इसी साल के शुरुआत में दो गायें ली। इसके लिए उन्होंने सवा लाख रूपये का क़र्ज़ महिलाओं के ‘इमाद’ नाम के उस ग्रुप की सदस्य के तौर पर लिया, जिसमें गांव की महिलाएं मात्र 25 रूपये प्रति हफ़्ता जोड़ती हैं। ये ग्रुप राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की योजना से सम्बद्ध है और कश्मीर में इसे उम्मीद नाम दिया गया है। शाहीन और इस तरह की कई महिला किसानों और पशुपालकों की सफलता की कहानी के पीछे एक ख़ास शख्सियत है, जिनका नाम है आबिदा अशरफ। आबिदा को ज़्यादातर लोग फौजिया के नाम से जानते हैं।

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आबिदा अशरफ उर्फ़ फौजिया

उम्र महज़ 25 साल, 20 साल की उम्र से शुरू किया अपना मिशन

रेडियो कश्मीर पर खबरे और कार्यक्रम सुनने की शौक़ीन शाहीन एक जिज्ञासु और जागरूक स्वभाव की छात्रा है। ग्रामीण विकास में पोस्ट ग्रेजुएट करने के बाद अब इसी विषय पर पीएचडी करने की सोच रही हैं। शाहीन याद करके बताती हैं कि ये पांच साल पुरानी बात है जब हर दिन की तरह उस रोज़ भी घर की साफ़ सफ़ाई करते-करते वो रेडियों सुन रही थीं। तभी उनके कान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन की योजना पर चल रहे कार्यक्रम की बातें पड़ीं।

2013 में केंद्र सरकार की तरफ से शुरू की गई ये योजना जम्मू-कश्मीर में भी शुरू हो चुकी थी और पुलवामा में भी 2016 में इसे लागू किया गया। इत्तेफ़ाक से उसी दिन गाँव में मिशन के लिए काम करने वाले अधिकारी आए। फौजिया ने भी उनसे बात की। फौजिया को योजना सही लगी और उसने गाँव की महिलाओं को इसके लिए राज़ी किया। कई स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) बनाए। हरेक समूह से 8 से 12 महिलाएं जुड़ीं, जो हर हफ़्ते 25 रुपये इकट्ठा करती थीं। महीने बाद जो रकम जमा हुई वो उनकी पूंजी हो गई। जिस किसी सदस्य को पैसों की ज़रूरत पड़ी, उसने उस रकम में से क़र्ज़ ले लिया और फिर महीने भर बाद ग्रुप फंड के तौर 1 % अतिरिक्त रकम के साथ लौटा दिया। धीरे-धीरे ये पूंजी बढ़ती गई। फिर ग्रुप का बैंक खाता खुला और ऑडिट भी हुआ। ग्रुप ने इस रकम को तरह-तरह के व्यवसाय में निवेश करना शुरू किया, जिससे पहले छोटी मोटी आमदनी भी होने लगी। 

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कश्मीर में महिलाओं का एकमात्र कस्टम हायरिंग सेंटर कैसे बदल रहा स्थानीय किसानों की ज़िंदगी

कस्टम हायरिंग सेंटर से महिलाओं को मिला लाभ

समूह से जुड़ी एक और महिला फिरोज़ा बताती हैं कि इसी बीच महिलाओं के एक समूह को उन्होंने बागवानी विभाग से जोड़ लिया। इन महिलाओं ने 2021 में अपने जमा पैसे से ट्रैक्टर, जनरेटर, टिलर जैसे 10 कृषि उपकरण खरीदे। 11 लाख रूपये कीमत के इस सामान के लिए ग्रुप ने 2.10 लाख रूपये दिए, बाकी सबसिडी मिली। ये किसान महिलाएं अपने बागान और खेतों में जुताई, दवा के छिड़काव  आदि के लिए जो उपकरण किराए पर लाती थीं अब उन्हें बाज़ार से कम दाम पर अपने ही ग्रुप से हासिल करती हैं। इससे महिलाओं के पैसे की तो बचत होती ही है, समूह की आमदनी और पूंजी भी बढ़ती है। इसे कस्टम हायरिंग सेंटर (Custom Hiring Centre) कहा जाता है। कश्मीर में महिलाओं की तरफ से संचालित ये पहला सेंटर है। इससे सिर्फ़ समूह के सदस्य ही नहीं, अन्य किसान भी लाभ उठाते हैं। वे किसान किराए पर ट्रेक्टर आदि ले जाते हैं। इससे उनको बाज़ार से 15-20 प्रतिशत कम खर्च आता है। फौजिया बताती हैं कि इस सेंटर से अब तक 150 किसानों का लाभ मील चुका है। 

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कश्मीर में महिलाओं का एकमात्र कस्टम हायरिंग सेंटर कैसे बदल रहा स्थानीय किसानों की ज़िंदगी

दिलचस्प है कि कश्मीर में महिलाओं की तरफ से चलाया जा रहा ये समूह उन पुरुषों की आमदनी का ज़रिया बन रहा है, जो बेरोज़गार हैं या जिनके पास खाली समय होता है। उपकरणों को चलाने के लिए गांव या आसपास के ही किसी व्यक्ति को बुलाया जाता है। बदले में उनको मेहनताना दिया जाता है। तमाम उपकरण रखने के लिए गाँव के ही बाहर मेन रोड के करीब एक दुकान किराए पर ली गई है। फौजिया के पास ऐसी बहुत सी दिलचस्प कहानियां हैं, जो किसान महिलाओं के बनाए इन समूहों की सफलता बयान करती हैं। फौजिया बताती हैं कि  गुडुरा गाँव की एक महिला शाजिया यूसुफ़ परेशान थी, जिसकी समूह ने आर्थिक मदद कर गारमेंट्स शॉप खुलवाई। ऐसे ही एक लड़की को अपनी बहन के कॉलेज की फ़ीस भरने के लिए 20, 000 रूपये चाहिए थे, ग्रुप ने उसकी भी सहायता की।

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ट्रेनर ऑफ़ ट्रेनर्स बनी फौजिया

कितने ही लोगों और ख़ासतौर से महिलाओं को प्रोत्साहित कर चूकी फौजिया अब बतौर ट्रेनर ऑफ़ ट्रेनर्स (प्रशिक्षकों की प्रशिक्षक) के तौर पर काम कर रही हैं। फौजिया बताती हैं कि कृषि, पशुपालन आदि में लगे लोगों के लिए वर्कशॉप आदि से लेकर डॉक्युमेंटेशन जैसे काम वो करती है और सिखाती भी हैं। उपरोक्त योजनाओं को नाबार्ड भी सपोर्ट करता है। उनका कहना है वर्तमान आमदनी या घर चलाने में तो स्वयं सहायता समूह से मदद मिलती ही है, साथ ही ग्रुप सदस्य के वृद्धावस्था होने पर या दिव्यांग होने की परिस्थिति में भी समूह वित्तीय मदद करता है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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