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आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी कि नींव मज़बूत होगी, तभी तो मज़ूबत इमारत बनेगी। ठीक इसी तरह मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी, तभी तो अधिक उपज प्राप्त होगी। रसायनों के बढ़ते इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति लगातार घट रही है, ऐसे में इसकी सेहत बनाए रखने के लिए मृदा प्रबंधन बहुत ज़रूरी है। जिस रफ़्तार से जनसंख्या बढ़ रही है, उसी रफ़्तार से खेती योग्य ज़मीन कम होती जा रही है, जो भविष्य के लिए खतरे की घंटी है, क्योंकि अगर संतुलन नहीं बनाया गया, तो आने वाले समय में पूरी दुनिया को खाद्यान संकट से जूझना पड़ सकता है।
एक रिसर्च के मुताबिक, आज विश्व में सिर्फ 52% मिट्टी पर ही खेती की जा सकती है, ऐसे में किसानों को इस समस्या के प्रति जागरुक करने और जैविक खेती के साथ-साथ दूसरे जैव उपायों के ज़रिए मिट्टी को बचाना बेहद ज़रूरी हो गया है। इसके ज़रूरी है सही समय पर मिट्टी की जांच। आमतौर पर तीन-चार साल के अन्तराल पर मिट्टी की जांच करवाकर विशेषज्ञों की राय के मुताबिक़ मिट्टी का उपचार ज़रूर करना चाहिए। ऐसे में हर 3 साल में मिट्टी की जांच ज़रूरी है।
मिट्टी की जांच के लिए सैम्पल कैसे लें?
कृषि वैज्ञानिक डॉ. नीरज रजवाल ने बताया कि जिस जगह से मिट्टी ले रहे हैं, पहले उस खेत से घास, पत्ते, कंकड़ जैसी चीज़ें हटा दें। फिर V आकार में 6 इंच का गड्ढा खोदें। गड्ढे को कुछ इस तरह खोदे कि खुपरी को गड्ढे के ऊपरी हिस्से से नीचे की ओर ले जाएं। इस गड्ढे में गिरने वाली मिट्टी को नमूने के तौर पर इकट्ठा कर लें। फिर खेत की अलग-अलग जगहों पर चार से पांच बार इस प्रक्रिया को दोहराए। इस तरह से अलग-अलग जगह से करीब आधा किलो मिट्टी इकट्ठा कर लें।
फिर चार से पांच जगह से ली गई इन मिट्टियों को एक साथ मिला लें और चार हिस्सों में बाट लें। दो हिस्से की मिट्टी को फेंक दें। बाकी दो हिस्से को फिर से मिला लें। इस प्रोसेस को तीन से चार बार करें। जब 200 से 250 ग्राम मिट्टी बच जाए तो इसे सैंपल बैग में डाल दें। फिर एक पर्ची में अपना नाम, खेती की जानकारी जैसी ज़रूरी जानकारी लिख दें और नज़दीकी मिट्टी जांच केन्द्र में जाकर सैम्पल जमा करा दें। इस बात का ध्यान रखें कि सैम्पल ऐसी जगह से लें जहां मिट्टी में नमी कम हो।
मिट्टी जांच के मापदंड
मिट्टी की सेहत को परखने के लिए 12 मापदंड तय किए गए हैं। ये हैं- pH यानी मिट्टी की अम्लीयता या क्षारीयता का मापक, विद्युत चालकता (Electro Conductivity), मिट्टी में मौजूदा कार्बनिक तत्व, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सल्फर (N, P, K, S) की मात्रा तथा ज़िंक, कैडमियम, लौह तत्व, मैग्नीशियम और बेरियम (Zn, Cu, Fe, Mn & B) जैसे सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा।
कैसे की जाती है मिट्टी की सेहत की जांच?
डॉ. नीरज रजवाल ने बताया कि मिट्टी के सैंपल को पहले ग्राइंडिंग और प्रोसेसिंग के ज़रिए पाउडर बनाया जाता है। फिर 12 पैरामीटर पर अलग-अलग मशीनरी से इसकी जांच की जाती है। मिट्टी का ऑर्गेनिक कार्बन टेस्ट किया जाता है। हर जांच में अलग-अलग केमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, फिर इसे फिल्टर किया जाता है।
देशभर में मिट्टी जांच केन्द्र
किसान इन मापदंडों की जांच लैब्स में जाकर करा सकता है। मिट्टी की सेहत, ये विषय की गंभीरता को देखते हुए 2015-16 में राष्ट्रीय पैमाने पर मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card, SHC) योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के तहत किसानों को मुफ़्त अपने खेत की मिट्टी की जांच करवाने की सुविधा दी जाती है। किसान को अपने खेत की मिट्टी का सैम्पल लेकर प्रयोगशाला में लेकर जाना होता है। बता दें कि देश भर में 10,052 प्रयोगशालाएं चलायी जा रही हैं, जो मिट्टी की जांच करती हैं।
इस योजना के तहत, अब तक क़रीब 11 करोड़ किसानों को मुफ़्त Soil Health Card दिये गये हैं। इस योजना में किसानों को मिट्टी की जांच की सुविधा मुफ़्त मिलती है। उन्हें सिर्फ़ अपने खेत की मिट्टी की नमूना सही ढंग से इक्कठा करके जांच करने वाली प्रयोगशाला में भेजना होता है। यहीं से मृदा स्वास्थ्य कार्ड के रूप में जाँच रिपोर्ट मिलती है।
इन सभी मापदंडों का ब्यौरा मृदा स्वास्थ्य कार्ड (Soil Health Card) में मौजूद रहता है। मिट्टी की जाँच करने वाली सभी स्थायी या मोबाइल प्रयोगशालाओं (लैब) में निर्धारित वैज्ञानिक प्रक्रिया का पालन करके ही रिपोर्ट तैयार की जाती है।
मिट्टी की सेहत का अर्थ
मिट्टी की सेहत यानि उसकी गुणवत्ता का मतलब है मिट्टी की भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताएं, जो लंबे समय तक फसल उत्पादन के लिए ज़रूरी है। इससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचता है। हालांकि, मिट्टी की गुणवत्ता को सीधे तौर पर नहीं मापा जा सकता, लेकिन इसके लिए मिट्टी के पीएच बैलेंस, इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी, कार्बनिक पदार्थ, कैशन एक्सचेंज कैपेसिटी (cation exchange capacity) आदि के ज़रिए मिट्टी की सेहत का अनुमान लगाया जा सकता है।
मिट्टी स्वस्थ तब मानी जाती है, जब इसकी जैविक, रासायनिक और भौतिक स्थितियां सबसे अच्छी हों, जिससे फसलों की अधिक पैदावार हो सके। स्वस्थ मिट्टी में पौधों की जड़े आसानी से बढ़ती है और भरपूर मात्रा में पानी मिट्टी में प्रवेश करता है और जमा होता है। पौधे में पर्याप्त पोषक तत्व होते हैं। मिट्टी में कोई हानिकारक रसायन नहीं होता है और लाभकारी जीव बहुत सक्रिय होते हैं, जिससे पौधों का विकास अच्छा होता है।
स्वस्थ मिट्टी के लाभ
अगर खेती की मिट्टी स्वस्थ होगी, तो पौधों का बेहतर विकास होगा और अधिक उपज मिलेगी। ऐसे में उपज हानि का जोखिम कम हो जाता है। खेती की लागत और इनपुट लागत (उर्वरक और पौध संरक्षण लागत) में कमी आती है। पर्यावरण को नुकसान नहीं पंहुचता।
कैसे बनाएं मिट्टी को स्वस्थ?
रसायनों के इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत लगातार खराब हो रही है। ऐसे में मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए किसानों को ये काम करने होंगे।
दलहनी फसलों की खेती
विशेषज्ञों का मानना है कि किसानों को लगातार पारंपरिक फसलों की खेती नहीं करनी चाहिए। इससे मिट्टी की सारी शक्ति खत्म हो जाती है। इसका असर अगली फसल के उत्पादन पर पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए दलहनी फसलों की खेती करनी चाहिए। दलहनी फसलों की खेती से मिट्टी में ज़रूरी पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। मिट्टी कुदरती तरीके से उपजाऊ बन जाती है। इसलिए किसानों को पारंपरिक फसलों के बाद अगले दलहनी फसल लगानी चाहिए।
हरी खाद और अजोला की खेती
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए कुछ किसान जैविक खेती करते हैं। ये किसी तरह के रसायन का प्रयोग नहीं करतें, बल्कि अलग-अलग तरह की ऑर्गेनिक खाद और एंजाइम्स का इस्तेमाल करते हैं। मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए हरी खाद का भी इस्तेमाल किया जाता है।
हरी खाद के रूप ढैंचा, बरसीम और सनई के साथ-साथ दलहनी फसलें भी उगाई जाती हैं। इन फसलों की खेती के बाद खेत से अपशिष्टों को हटाने की बजाय इनके कचरे पर यूरिया डालकर जैविक खाद बनाई जाती है, जो मिट्टी में मिलकर खेत को उपजाऊ बनाती है। किसान खेत में अजोला उगाकर भी मिट्टी की खोई हुई शक्ति को वापस लौटा सकते हैं।
कीटनाशक पौधों की खेती
रासायनिक कीटनाशकों के लगातार इस्तेमाल से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। ऐसे में किसान कुछ जैविक कीटनाशकों की खेती करके न सिर्फ़ रोग और कीटों से छुटकारा पा सकते हैं, बल्कि इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। कई ऐसे पौधे हैं जिनसे जैविक कीटनाशक बनाये जाते हैं जैसे- नीम, कैटनिप और एग्रेटम आदि। इन पौधों को खेत में लगाने से कीटों समस्या काफ़ी हद तक कम हो जाती है।
इसके अलावा, किसान नीम से बने कीटनाशकों का भी उपयोग कर सकते हैं जिससे मिट्टी को किसी तरह का नुकसान नहीं होता, बल्कि इनकी शक्ति बढ़ती है। रासायनिक कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल से मित्र कीट और सूक्ष्मजीव भी खत्म हो जाते हैं, जो हानिकारक कीटों को नष्ट करने में मदद करते हैं। इससे प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है।
इतना ही नहीं, कीटनाशकों के अवशेष फसलों में भी रह जाते हैं और जानकारों का मानना है कि ऐसी फसल के सेवन से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं जैसे तंत्रिका संबंधी विकार, हार्मोनल असंतुलन और बच्चों में विकास संबंधी समस्याएं शामिल हैं।
मिट्टी की जांच ज़रूरी
मिट्टी की सेहत बनाए रखने के लिए समय-समय पर उसकी जांच ज़रूरी है। तभी पता चल पाता है कि असल में मिट्टी में किन पोषक तत्वों की कमी है और फिर उसी के हिसाब से खाद-उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए। ज़रूरत से ज़्यादा उर्वरक और पोषक तत्व मिट्टी की गुणवत्ता को खराब कर देते हैं।
किसान मिट्टी की जांच के लैब में करवा सकते हैं। मृदा जांच लैब किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जिसमें मिट्टी का प्रकार और मिट्टी की ज़रूरतों से लेकर कौन-सी फसल के लिए मिट्टी उपयुक्त है, इन सबकी जानकारी होती है। अगर किसान मृदा स्वास्थ्य कार्ड में दी गई जानकारी के हिसाब से खेती करें, तो उनके लिए ये फ़ायदेमंद होगा। जब किसान मिट्टी की सेहत का ध्यान रखेंगे तो मिट्टी की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी और उन्हें अच्छा उत्पादन प्राप्त होगा, जिससे जाहिर सी बात है कि मुनाफ़ा बढ़ेगा।
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