चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक और निर्यातक देश है। यहाँ सालाना क़रीब 900 लाख टन धान की पैदावार होती है। मौजूदा खरीफ़ सीज़न (2021-22) में ही 9 जनवरी तक न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर क़रीब 533 लाख टन धान की खरीदारी हो चुकी है। लेकिन भारत में सफ़ेद और ब्राउन राइस की तुलना में ब्लैक राइस बहुत कम लोकप्रिय है। हालाँकि, अपने अद्भुत गुणों की वजह से आहार विशेषज्ञों ने काले चावल (black rice) को ‘सुपर फूड’ का ख़िताब दिया है। शायद, इसीलिए अमेरिका और यूरोपीय देशों में काले चावल की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ रही है।
भारत में सफ़ेद और ब्राउन राइस की ख़ूब पैदावार होती है, लेकिन परम्परागत धान से बेहतर माने गये काले चावल की पैदावार ख़ासतौर पर मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय और असम जैसे पूर्वोत्तर राज्यों के अलावा ओड़ीशा में भी होती है। मणिपुर के काले चावल को तो GI Tag भी हासिल है। फिर भी भारत में ज़्यादातर लोग काले चावल के बारे में कम ही जानते हैं। लिहाज़ा, चिकित्सकीय गुणों और पोषक तत्वों से भरपूर काले चावल के बारे में देश में जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इसकी माँग करें और इसकी भरपाई के लिए काले चावल की पैदावार बढ़ सके।
क्या है GI Tag?
GI Tag के ज़रिये किसी खाद्य पदार्थ, प्राकृतिक और कृषि उत्पादों तथा हस्तशिल्प के उत्पादन क्षेत्र की गारंटी दी जाती है। भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के तहत जीआई टैग वाली पुख़्ता पहचान देने की शुरुआत 2013 में हुई। ये किसी ख़ास क्षेत्र की बौद्धिक सम्पदा का भी प्रतीक है। एक देश के जीआई टैग पर दूसरा देश दावा नहीं कर सकता। भारत के पास आज दुनिया में सबसे ज़्यादा जीआई टैग हैं। इसकी वजह से करीब 365 भारतीय उत्पादों की दुनिया में ख़ास पहचान है।
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काले चावल को मिला ‘सुपर फूड’ का दर्ज़ा
काले चावल की सुपर पौष्टिक प्रजाति का नाम ‘ओराइजा सेटाइवा’ है। देश में काले चावल को बैंगनी चावल, निषिद्ध चावल, स्वर्ग चावल, शाही चावल और राजा चावल जैसे नामों से भी पहचाना जाता है। काले चावल को मणिपुर में ‘चक-हो अम्बी’ भी कहते हैं। इसका मतलब ‘स्वादिष्ट काला चावल’ है। ये चिकना, स्वादिष्ट और उच्च स्तर के पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इसे सन्तुलित ‘सुपर फूड’ का दर्ज़ा हासिल है। ‘सुपर फूड्स’ ऐसे खाद्य पदार्थ को कहा जाता है जिसमें कैलोरी, पौष्टिकता और स्वास्थ्यवर्धक गुण होते हैं।
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काले चावल के नियमित सेवन से कार्सिनोजेनेसिस, डायबिटीज, कार्डियोवस्कुलर जैसे दीर्घकालिक रोगों की आशंका पूरी तरह से ख़त्म हो सकती है। काला चावल भी सामान्य चावल की ही एक प्रजाति है। इसे ब्लैक-4 नामक जीन से विकसित किया गया है। इसकी खेती मुख्य रूप से चीन, थाईलैंड, भारत, श्रीलंका, भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों में की जाती है। इसकी उत्पत्ति चीन में हुई। वहाँ इसे भाग्यशाली चावल माना जाता था। चीन ही काले चावल का सबसे बड़ा उत्पादक है। वहाँ इसके कुल वैश्विक उत्पादन की क़रीब 62 प्रतिशत पैदावार होती है।
सफ़ेद चावल की काले चावल से तुलना
सफ़ेद चावल की तुलना में काले चावल में उच्च स्तर के प्रोटीन, फाइबर, विटामिन ‘बी’, लोहा, जस्ता, कैल्शियम, फॉस्फोरस और सेलेनियम जैसे खनिज तत्व भी पाये जाते हैं। ये अनेक स्वस्थ्यवर्द्धक गुणों जैसे एंटीडायबिटिक, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीकैंसर और एंटीएजिंग आदि से भरपूर होते हैं। काला चावल, ग्लूटेन और कोलेस्ट्रॉल से मुक्त होता है। इसमें चीनी, नमक तथा वसा तत्व भी कम पाये जाते हैं। काला चावल आयु को बढ़ाता है। ऐसी मान्यता है कि काले चावल का सेवन करने वाले लोग आवश्यक फाइटो पोषक तत्वों की उपस्थिति के कारण अधिक समय तक जीवित रहते हैं।
काले चावल की चिकित्सकीय ख़ूबियाँ
काले चावल के दाने के बाहरी आवरण पर बैंगनी रंग देने वाले रसायन ‘एंथोसायनिन’ की 26% मौजूदगी की वजह से इसका रंग काला हो जाता है। ये रसायन एंटीऑक्सीडेंट्स का प्रमुख स्रोत हैं। ये विटामिन ‘ई’ से भरपूर होता है तथा कैंसर से सुरक्षा देता है। इसमें ‘लाइसिन’ और ‘ट्रिप्टोफैन’ जैसे आवश्यक अमीनो अम्ल पाये जाते हैं। इनमें 6 गुना अधिक एंटीऑक्सीडेंट होते हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। सौ ग्राम पके हुए काले चावल में 160 कैलोरी, 1.5 ग्राम वसा, 34 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 2 ग्राम फाइबर तथा 7.5 ग्राम प्रोटीन पाया जाता है। इसमें कोई सन्तृप्त वसा (saturated fat) और कोलेस्ट्रॉल नहीं होता। उपरोक्त गुणों के कारण काले चावल के बारे में जागरूकता बढ़ायी जानी चाहिए, ताकि ज़्यादा लोग इसके फ़ायदों के बारे में जानें और इसकी माँग करें।
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काले चावल के विभिन्न तत्वों में ‘एंथोसायनिन’ सबसे महत्वपूर्ण है जो एंटीऑक्सीडेंट और फ्लेवोनॉइड पिग्मेंट का एक बड़ा स्रोत है। यह शरीर के हानिकारक अणुओं को समाप्त करके डीएनए की क्षति को रोकता है।
काला चावल कैंसर को प्रेरित करने वाली कोशिकाओं में ‘कार्सिनोजेनेसिस’ प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता हैग्लूटेनमुक्त होने के कारण, काले चावल का पाचन बहुत आसानी से होता है। ज़्यादा फाइबर पाये जाने की वजह से काला चावल कब्ज़ को कम करने में मदद करता है। ये वजन घटाने में भी सहायक है। काला चावल ग्लूकोज को पचाने की प्रक्रिया में बेहद धीमा कर देता है, इसीलिए इसके नियमित सेवन से डायबिटीज का स्तर भी तेज़ी से कम हो सकता है।
काले चावल की खेती
काले चावल की खेती भले ही भारत में बहुत सीमित पैमाने पर की जाती है, लेकिन इसके कोई शक़ नहीं है कि निर्यात के लिहाज़ से इसकी बहुत माँग है। काले चावल की खेती के लिए ज़मीन और जलवायु बिल्कुल वैसी हो होनी चाहिए जैसा कि सफ़ेद या ब्राउन चावल के मामले में होता है। लेकिन काले चावल की जैविक या प्राकृतिक खेती करना सबसे ज़्यादा फ़ायदेमन्द है, क्योंकि ऐसी पैदावार की ही निर्यात आसानी से हो पाता है और दाम अच्छे मिलते हैं। लिहाज़ा, धान के किसानों को चाहिए कि वो अपनी नज़दीकी कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क करके काले चावल की खेती के बारे में उन बातों का पता करें जो उनके इलाके की जलवायु के अनुकूल हो। शुरुआत के लिए हरेक धान उत्पादक किसान को अपनी कुल खेती में से 5 से 10 प्रतिशत काले चावल की पैदावार अवश्य करनी चाहिए और अपनी घरेलू खपत में इसका उपयोग करके इसे लोकप्रिय बनाने में हिस्सेदार बनना चाहिए।
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