Live Fish Packing: भारत का पहली लाइव फ़िश यूनिट! वंदना का मंत्र, अच्छा दाना और भरपूर ऑक्सीजन

लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक (Live Fish Packing Technique) मछलियों को जीवित रखते हुए पैक और परिवहन करने की प्रक्रिया है, जिससे वो लंबे समय तक ताज़ी रह सकती हैं।

लाइव फ़िश पैकिंग live fish packing technique

भारत में आज के वक़्त की महिलाएं भी कृषि और मछली पालन में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। इन्हीं में से एक हैं छत्तीसगढ़ के दुर्ग की रहने वाली वंदना चुरेंद्र जो मछली पालन व्यवसाय से जुड़ी हैं। आपको बताते चलें कि वंदना ने एमटेक एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में किया है। इसके बाद से ही वंदना ने फ़िश फ़ार्मिंग में अपनी किस्मत आज़मानी शुरू कर दी। वंदना पिछले 5 सालों से सफ़लतापूर्वक मछली पालन कर रही हैं। वंदना लाइव फ़िश पैकिंग भी कर रही हैं। ये प्रयोग भारत में पहली बार किया गया है। अभी उनके साथ लगभग सौ किसान जुड़े हुए हैं। आज हम जानेंगे वंदना से फ़िश फार्मिंग का बारे में और उनके अनोखे लाइव फ़िश पैकिंग के बारे में।

किस तकनीक से कर रही हैं मछली पालन? (Fish Farming Technique)

वंदना ने किसान ऑफ़ इंडिया को बताया कि वो मछली पालन में हाई डेंसिटी तकनीक और बायोफ्लॉक मछली पालन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करती हैं। तालाब में मछली पालन की अपेक्षा इस तकनीक में ज्यादा प्रोडक्शन होता है।

किन मछलियों का पालन? (Fish Breeds for Biofloc Aquaculture)

वंदना ख़ासतौर से दो नस्लों की मछलियों का पालन करती हैं। तिलापिया और पलाशियस। ये मछलियां सिंगल कांटे वाली हैं। इस कारण कम जगह में ज़्यादा मात्रा में इन मछलियों का पालन कर सकते हैं।

क्या है बायोफ्लॉक तकनीक? (What Is Biofloc Technology?)

वंदना बताती हैं कि मछली पालन में बायोफ्लॉक तकनीक से कम जगह, कम पानी से ज़्यादा प्रोडक्शन मिलता है। इस तकनीक में उचित ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है। इसमें समय-समय पर वॉटर टैंक को साफ़ करना पड़ता है। इसकी मदद से मछली पालन करना आसान है। प्लांट का रखरखाव करना किफ़ायती होता है।

हमने 4 डायमीटर की टंकी से चालू किया था। अब हम लोग 150 फ़ीट की जगह में कर रहे हैं। शुरूआती दौरे में 50 हज़ार रुपए लगाए थे। अभी कंपनी का एक करोड़ रुपए से ज़्यादा का टर्नओवर है।

मछलियों के बीज (Fish Seeds)

अगर किसान तालाब में मछली पालन कर रहे हैं तो तालाब में कई कांटों वाली मछलियां होती हैं। उन्हें तैरने के लिए ज़्यादा जगह की ज़रूरत होती है। एक कांटे वाली मछली जिसका ड्रम में पालन किया जाता है, उसको फू़ड की ज़्यादा ज़रूरत होती है। उसे आप जितना दाना दोगे उतना वो मछली बढ़ेगी। ये लोग छत्तीसगढ़ के बाहर भी सप्लाई कर रहे हैं। वंदना कहती हैं-

मैं आपको बताना चाहूंगी पहले छत्तीसगढ़ में इतनी जागरुकता नहीं थी लेकिन अब किसान जागरुक हो रहे हैं साथ ही उनकी ग्रोथ भी बढ़ रही है। अब हमको बाहर से मछली का बीज नहीं मंगाना पड़ता। अब हम छत्तीसगढ़ में ही मछली के बच्चे पैदा कर लेते हैं। हम तिलपिया और पलाशियस मछली का पालन करते हैं। इन मछलियों के बीज किसान हमसे ले सकते हैं। बीज लेते वक्त उनके वजन पर ध्यान दें। मछलियों को दाना देकर उनको ट्रांसपोर्ट नहीं करना चाहिए।

मछलियों का पौष्टिक आहार (Nutritious Feed To Fish)

वंदना आगे कहती हैं कि मछलियों को 28 फ़ीसदी से कम प्रोटीन नहीं देना चाहिए। वो अनाज से बना फ़ीड ही मछलियों को देते हैं। 60 से 80 फ़ीसदी खर्च सिर्फ़ फ़ीड का ही आ जाता है। वंदना आगे कहती हैं कि मछलियों के स्वस्थ और तेज़ी से विकास के लिए उन्हें 28 फ़ीसदी से कम प्रोटीन नहीं दिया जाना चाहिए। मछलियों के आहार में प्रोटीन की उच्च मात्रा मछलियों की वृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है।

वंदना कहती हैं कि वो मछलियों को अनाज से बनी फ़ीड ही देती हैं, क्योंकि ये पोषण से भरपूर होती है और मछलियों की पोषण ज़रूरतों आवश्यकताओं को पूरा करती है। वंदना ने बताया कि मछली पालन में कुल खर्च का 60 से 80 फ़ीसदी हिस्सा सिर्फ़ फ़ीड पर ही खर्च होता है, जो इस प्रक्रिया की प्रमुख लागत होती है। इस कारण से, सही और पौष्टिक फ़ीड का चयन मछली पालन की सफलता के लिए बेहद ज़रूरी है।

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मछलियों में बीमारी का खतरा (Risk Of Disease In Fish)

जब किसान तालाब और टैंक में मछली पालन करता है तो दोनो जगहों पर अलग-अलग तरह की बीमारियां लगने का खतरा रहता है। जब मछलियां बीमार होती हैं तो सुस्त दिखने लगती है और फ़ीड लेना छोड़ देती हैं। अगर आप टैंक में मछली पालन करते हैं तो ट्रीटमेंट करना आसान हो जाता है। किसानों को सबसे ज़्यादा नुकसान मछलियों की ट्रांसपोर्ट इंजरी से होता है। अगर आप मछलियों को लाने में सावधानी रख रहे हैं तो 60 फ़ीसदी तक बीमारियां नहीं आएगीं। अगर किसान ने एक महीने तक मछलियों का अच्छे से ख्याल रखा तो मछलियों में बीमारियों लगने की आशंका काफ़ी कम हो जाती है।

क्या है लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक?(What Is Live Fish Packing Technique?)

वंदना ने एक ऐसा एक्सपेरिमेंट किया है जो भारत में पहली बार देखने को मिला वो है लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक। वंदना ने पिछले कुछ महीनों से ये काम शुरू किया है।

हम अभी छत्तीसगढ़ के सभी बड़े शहरों में सप्लाई कर रहे हैं। बाज़ार में फ़्रेश मछली मिलना बहुत मुश्किल हो जाता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए लाइव फ़िश पैकिंग की शुरुआत की। हमने भारत का पहली लाइव फ़िश यूनिट शुरू किया है। इस यूनिट में हमने 80 फ़ीसदी महिलाओं को जोड़ा है। हमने छत्तीसगढ़ के रिपा प्रोजेक्ट के तहत काम चालू किया। अभी इसमें 10 से 15 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट लगा है। हम अभी राज्य में हर जगह सप्लाई कर सकते हैं। अभी हम ओडिशा, कोलकाता और बिहार में लाइव फ़िश सप्लाई करेंगे। लाइव फ़िश पैकिंग में मछली 24 घंटे ज़िंदा रहती है।

वंदना बताती हैं कि मछली पालन में 20 से 40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मार्जिन कमा सकते हैं। अगर लागत की बात की जाए तो 25 हज़ार रुपए में टंकी लग सकती है। अगर बड़ी टंकी की बात की जाए तो लगभग साढ़े 4 लाख रुपये में लागत आती है। 10 लाख रुपए टैंक बनाने में लगते हैं। आप इसमें पांच टन से आठ टन की मछलियों का प्रोडक्शन कर सकते हैं। इसमें आप ढाई लाख रुपए का मुनाफ़ा कमा सकते हैं।

मछली पालन से जुड़ी योजना और सब्सिडी (Fish Farming Schemes & Subsidy)

केंद्र सरकार की प्रधानमंत्री मत्स्य पालन सम्पदा योजना है और यही योजना राज्य सरकार की ओर से किसानों के लिए उपलब्ध है। इस योजना के तहत हर ज़िले में एक कमेटी रहती है जो इस योजना के बारे में किसानों को जानकारी देते हैं। जगह के हिसाब से भी किसानों को सब्सिडी मिलती है। मछली जाल और मछली ट्रांसपोर्ट से जुड़ी सब्सिडी भी मिल जाएगी। अगर आप प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहते हैं तो उस पर भी सब्सिडी मिलती है। हर एक क्षेत्र के लिए सरकार की तरफ़ से योजना बनी हुई है।

प्रधानमंत्री मत्स्य पालन सम्पदा योजना के तहत अनुसूचित जाति व महिला वर्ग मछली पालकों को 60 प्रतिशत अनुदान और सामान्य वर्ग को मछली पालन पर 40 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। इस योजना के लिए आवेदन करने लिए और ज़्यादा जानकारी जानने के लिए  आधिकारिक वेबसाइट pmmsy.dof.gov.in पर जा सकते हैं।

बायोफ्लॉक मछली पालन तकनीक पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल: बायोफ्लॉक मछली पालन क्या है?

जवाब: बायोफ्लॉक तकनीक के तहत टैंकों में मछली पाली जाती है, जिसमें तालाब खोदने की ज़रूरत नहीं होती। कम जगह वाले भी इस तकनीक से मछली पाल सकते हैं। यहां पानी की बचत के साथ-साथ मछलियों के फ़ीड की भी बचत होती है, जबकि मछली का 75% जो भी वेस्ट होता है उसको बाहर निकाला जाता है। ये वेस्ट पानी में ही रहता है, जिसे शुद्ध करने के लिए बायोफ्लॉक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है।

सवाल: बायोफ्लॉक मछली पालन के क्या लाभ हैं?

जवाब: बायोफ्लॉक मछली पालन के कई लाभ हैं:

पानी की बचत: इस तकनीक में पारंपरिक तालाबों के मुकाबले कम पानी का उपयोग होता है।
उच्च उत्पादन: बायोफ्लॉक तकनीक से मछलियों का उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
आहार की बचत: मछलियों को दिए जाने वाले फ़ीड की खपत कम होती है, जिससे आहार की बचत होती है।
पर्यावरण अनुकूल: ये तकनीक पर्यावरण के प्रति कम हानिकारक होती है और पानी के पुनर्चक्रण को प्रोत्साहित करती है।

सवाल: बायोफ्लॉक प्रणाली के लिए किस प्रकार का टैंक चाहिए?

जवाब: बायोफ्लॉक प्रणाली के लिए कई तरह के टैंक इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं जैसे कि प्लास्टिक टैंक, सीमेंट टैंक, या दूसरे वाटर-प्रूफ़ सामग्री से बने टैंक।

सवाल: बायोफ्लॉक प्रणाली में पानी की गुणवत्ता कैसे बनाए रखी जाती है?

जवाब: पानी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए नियमित रूप से ऑक्सीजन स्तर, पीएच स्तर, और अमोनिया स्तर की जांच की जाती है।

सवाल: लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक क्या है?

जवाब: लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक मछलियों को जीवित रखते हुए पैक और परिवहन करने की प्रक्रिया है, जिससे वो लंबे समय तक ताज़ी रह सकती हैं।

सवाल: लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक के क्या फ़ायदे हैं?

जवाब: ताजगी बनाए रखना, गुणवत्ता में सुधार, मछलियों की लंबी उम्र, और ग्राहकों को बेहतर उत्पाद प्रदान करना इसके प्रमुख लाभ हैं।

सवाल: लाइव फ़िश पैकिंग तकनीक की लागत क्या होती है?

जवाब: इसकी लागत उपकरण, ऑक्सीजन, परिवहन, और देखभाल पर निर्भर करती है। शुरुआती लागत ज़्यादा हो सकती है, लेकिन इससे उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार होता है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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