Advanced Goat Rearing Techniques: बकरी पालन से कमाई का असली सीक्रेट क्या है?

संतुलित आहार, स्वच्छता, टीकाकरण, उचित आवास, नियमित जांच, और प्रजनन प्रबंधन से उच्च बकरी पालन सुनिश्चित होता है। बकरी पालन की उन्नत विधियां कई तरह की हैं।

बकरी पालन की उन्नत विधियां Advanced Goat Rearing Techniques

छोटे किसान खेती के अलावा बकरी पालन से भी अच्छी कमाई कर सकते हैं, बशर्ते वो अपने क्षेत्र के हिसाब से बकरियों की नस्ल का चुनाव करें और कुछ उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल करें। बकरी पालन सदियों से ग्रामीण इलाके में किसानों की आजीविका का एक स्रोत रहा है, मगर पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल करने की वजह से किसानों को इससे ज़्यादा मुनाफा नहीं हो पाता था, मगर अब इस क्षेत्र में भी आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से मुनाफा बढ़ा है। इस लेख में हम आपको बकरी पालन की उन्नत विधियां (Advanced Goat Rearing Techniques) बताएंगे।

अगर कोई व्यवसायिक स्तर पर बकरी पालन करना चाहता है, तो पहले सरकारी संस्थाओं से इसका प्रशिक्षण भी ले सकता है, ताकि आगे चलकर कोई गलती न हो और नुकसान न उठाना पड़े। वैसे बकरी पालन छोटे किसानों के लिए आजीविका का मुख्य साधन पहले भी था और आज भी बना हुआ है। बकरी पालन से जुड़ी आधुनिक तकनीकें, नस्ल का चुनाव और बकरी पालन के फ़ायदों के बारे में आइए, जानते हैं।

छोटे किसानों के लिए क्यों फ़ायदेमंद है बकरी पालन? (Benefits Of Goat Farming)

बकरी को गरीबों की गाय भी कहा जाता है, इसकी वजह है कि गरीब किसान महंगी होने की वजह से गाय नहीं खरीद पाता है। ऐसे में वो दूध के लिए बकरी पालता है, क्योंकि बकरी गाय की तुलना में काफ़ी सस्ती होती है और इसे पालने का खर्च भी गाय-भैंस से बहुत कम होता है। ये आकार में छोटी होती है तो कम जगह में ढेर सारी बकरियों को रखा जा सकता है। यही नहीं बकरियां कई तरह की कांटेदार झाड़ियां, खरपतवार, फसल के अवशेष और ऐसे कृषि उप उत्पादों को भी खाती है जो मनुष्यों के लिए उपयोगी नहीं होते हैं। यानि चारे के लिए किसानों को बहुत परेशान होने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

दूसरे पशुओं की तुलना में पानी की कमी वाले इलाकों में बकरियों को पालना ज़्यादा आसान होता है। गाय के दूध की तुलना में बकरी का दूध आसानी से पच जाता है। इसमें एंटी एलर्जी, एंटीफंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं। जो बकरी पालक बड़े पैमाने पर इसका व्यवसाय करते हैं उनके लिए ये इसलिए भी फ़ायदेमंद है क्योंकि उन्हें नर और मादा बकरियों की समान कीमत मिलती है।

बकरी पालन में इस्तेमाल होने वाली आधुनिक तकनीकें (Advanced Goat Rearing Techniques)

मौजूदा समय में बकरी पालन से अधिक मुनाफ़े के लिए कई आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें कृत्रिम गर्भाधान से लेकर आहार का सही चुनाव, स्वास्थ्य प्रबंधन और ऑटोमेटेड दूध देने वाली मशीनों का इस्तेमाल शामिल है।

कृत्रिम गर्भाधान

गाय और भैंस के साथ ही कृत्रिम गर्भाधान यानि आर्टिफिशियल इनसेमिनेशन का इस्तेमाल बकरियों की उन्नत नस्ल प्राप्त करने के लिए भी किया जा रहा है। इसकी मदद से किसान अच्छी नस्ल के बकरों को चुनाव करके और उनके वीर्य से मादा बकरियों का गर्भाधान कराते हैं जिससे उन्हें बेहतर नस्ल की बकरियां प्राप्त होती है। इस आधुनिक प्रजनन तकनीक की मदद से किसान अधिक दूध देने वाली, तेज विकास और बेहतर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली बकरियों के प्रजनन में सफल रहे हैं।  ये तकनीक स्वस्थ और अधिक उत्पादक बकरियों का विकास करने में मदद करती है जिससे किसानों को न सिर्फ़ अधिक दूध मिलता है, बल्कि बढ़िया गुणवत्ता वाला मांस प्राप्त होता है जिसकी बाज़ार में सही कीमत मिलती है।

स्वास्थ्य प्रबंधन
सिर्फ़ अच्छी नस्ल की बकरियां प्राप्त करने से ही काम नहीं चलता, बल्कि उनके स्वास्थ्य की नियमित निगरानी भी ज़रूरी है, ताकि किसी तरह की बीमारी होने पर उसका तुरंत उपचार किया जा सके और अगर कोई एक बकरी को संक्रामक रोग होता है तो समय रहते उसे फैलने से रोका जा सके, ताकि बकरियों को नुकसान न हो। बीमारियों से बचाव के लिए बकरियों का टीकाकरण ज़रूरी है। साथ ही नियमित पशु चिकित्सा जांच जैसी नई तकनीकों को अपनाने से भी काफ़ी हद तक बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। इसके अलावा, रिमोट मॉनिटरिंग डिवाइस और डेटा एनालिटिक्स जैसी तकनीकों का इस्तेमाल करके भी बकरी पालक अपनी बकरियों के स्वास्थ्य पर बारीक निगरानी रख सकते हैं, बीमारी के शुरुआती लक्षणों का पता लगाकर तुरंत इलाज करवा सकते हैं।

ऑटोमेटिक सिस्टम
हर क्षेत्र की तरह ही बकरी पालन में भी ऑटोमैटिक तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ा है। बकरी पालक भोजन और पानी के लिए भी ऑटोमैटिक सिस्टम का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे समय और श्रम की बचत तो होती ही है, साथ ही बकरियों को समय पर भोजन-पानी उपलब्ध होता रहता है। इसके अलावा, ऑटोमेटेड दूध देने वाली मशीनों की मदद से बकरियों का दूध निकाला जाता है, जिससे श्रम की लागत में कमी आती है। इन नई तकनीकों के इस्तेमाल ने बकरी पालन को अधिक कुशल और लाभदायक व्यवसाय बना दिया है।

Advanced Goat Rearing Techniques: बकरी पालन से कमाई का असली सीक्रेट क्या है?

कैसा हो बकरियों का आवास? (Shelter Management In Goat Farming)

बकरियों के रहने की जगह का सही प्रबंधन भी ज़रूरी है। बकरियों का आवास साफ़-सुथरा, सूखा, कीटाणुरहित और रोशनी युक्त होना चाहिए। ये जगह ऐसी होनी चाहिए ताकि तेज़ धूप, बारिश, सर्दी और तूफान से बकरियों की सुरक्षा हो सके। आमतौर पर एक बकरी के लिए एक वर्ग मीटर की जगह पर्याप्त होती है, इस हिसाब से जितनी बकरियां हो उतनी जगह निर्धारित कर लें।

आवास की छत A आकार की बनवानी चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि छत के बीच के बिंदु और ज़मीन के बीच कम से कम 3 मीटर का अंतर हो। यानि वो 3 मीटर ऊपर बनानी चाहिए। बकरियों के आवास से सटा एक बाड़ा बनाना चाहिए, जहां बकरियां दिन के समय घूम सकें। इसे फेंसिंग या ईंट की दीवार से घेर सकते हैं। बाड़े का आकार बकरियों के आवास से दोगुना होना चाहिए।

बकरी पालन में आहार प्रबंधन (Feed management In Goat Farming)

बकरियों के सही विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए चारे की सही व्यवस्था ज़रूरी है। अगर आसापस पेड़ और झाड़ियां हैं तो उन्हें चरने के लिए छोड़ दें और अगर नहीं है तो खेत में बकरियों के लिए हरा चारा उगाएं। आमतौर पर दिन में 7 घंटे बकरियों को चराना चाहिए। बकरियों के आहार में 2/3 चारा और 1/3 दाना शामिल होना चाहिए। चारे में 60 प्रतिशत सूखा चारा जैसे भूसा और 40 प्रतिशत हरा चारा दिया जा सकता है। हरे चारे के रूप में लोबिया, बरसीम, लर्सून, मूंग, ग्वार आदि की पत्तियां दी जा सकती है।

सही नस्ल का चुनाव (Goat Breed Selection)

बकरी पालन व्यवसाय से मुनाफ़ा कमाने के लिए ज़रूरी है कि बकरी पालक सही नस्ल का चुनाव करें और इसके लिए उन्हें बकरियों की नस्ल के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। ICAR के मुताबिक, दूध और मांस दोनों के उद्देश्य से बकरी पालन करने वालों को जमुनापारी, बारबरी, बीटल, सुरती, जखराना नस्ल की बकरियां खरीदनी चाहिए।

अगर कोई सिर्फ़ मांस के लिए बकरी पालन करना चाहते हैं, तो ब्लैक बंगाल, गंजम, ओस्मानाबादी, संगमनेरी और सिरोही नस्ल की बकरियां अच्छी होती हैं। जबकि रेशा उत्पादन के लिए बकरीपालन करने वालों के लिए मारवाड़ी, गद्दी, चेंगु, चांगथांगी नस्ल अच्छी मानी जाती हैं।

बकरियों की नस्लें (Breeds Of Goats)

जमुनापारी- उत्तर प्रदेश के आगरा और इटावा इलाके में मिलने वाली इस बकरी की नस्ल को दूध और मांस दोनों के लिए पाला जाता है। नर का वज़न 50-60 किलोग्राम और मादा का वज़न 40-50 किलोग्राम तक होता है। ये आमतौर पर सफ़ेद रंग की होती है और शरीर पर काले भूरे रंग के धब्बे होते हैं।

ब्लैक बंगाल- पश्चिम बंगाल और असम में मिलने वाली ब्लैक बंगाल का साइज़ छोटा होता है। रंग काला/भूरा, सींग ऊपर की ओर उठे हुए औ छाती चौड़ी होती है। नर का वज़न 30 किलोग्राम तक और मादा का वज़न 20 किलोग्राम तक होता है।

बरबरी- ये नस्ल मुख्य रूप से राजस्थान और उत्तर प्रदेश में मिलती है। इसका वज़न 40 किलोग्राम तक होता है। इसका आकार छोटा, छोटे कान और छोटे सींग होते हैं। इसका रंग सफ़ेद और भूरा होता है।

बीटल- पंजाब और हरियाणा की ये नस्ल बड़े आकार की होती है। इनका रंग भूरा, कान लंबे और सींग पीछे की ओर मुड़े हुए होते हैं। नर का वज़न 50-60 और मादा का वज़न 40-50 किलोग्राम तक होता है।

सिरोही- राजस्थान का सिरोही और अजमेर ज़िला इसका उत्पत्ति स्थान है। नर का वज़न 40-50 किलोग्राम और मादा का वज़न 30-40 किलोग्राम तक होता है।

बकरी पालन पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

सवाल: बकरी पालन के लिए कौनसी नस्लें सबसे अच्छी हैं?

जवाब: भारत में बकरी पालन के लिए कुछ लोकप्रिय नस्लें हैं:

  • सिरोही: दूध और मांस के लिए उत्तम।
  • बीटल: दूध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध।
  • जमुनापारी: दूध और मांस दोनों के लिए उपयुक्त।
  • बरबरी: मांस उत्पादन के लिए अच्छी।
  • तोतापुरी: अच्छी मांस नस्ल।

सवाल: बकरी पालन कैसे शुरू करें?

जवाब: बकरी पालन के लिए कुछ उन्नत नस्लों के नाम:

  • व्यवसाय योजना बनाएं: पालन की नस्ल, क्षेत्र, बजट आदि का निर्धारण करें।
  • पशु का चयन: अच्छी नस्ल की स्वस्थ बकरियों का चयन करें।
  • शेड और बाड़े की व्यवस्था: बकरियों के रहने के लिए साफ-सुथरा और हवादार शेड बनाएं।
  • खाद्य और पोषण: बकरियों के लिए उचित आहार और पोषण की व्यवस्था करें।
  • स्वास्थ्य देखभाल: नियमित टीकाकरण और पशु चिकित्सक की सलाह लें।

सवाल: बकरियों को कौन-कौनसे रोग हो सकते हैं?

जवाब: बकरियों को मुख्य रूप से होने वाले रोगों के नाम:

  • फुट एंड माउथ डिजीज (FMD): ये तेज़ी से फैलने वाले वायरस से होने वाला रोग है।
  • फड़किया रोग: ये मुख्यतौर पर जीवाणुजनित रोग है। इसके रोगाणु मिट्टी या ग्रास नली में पाए जाते हैं।
  • निमोनिया: ये ‘कैपरी’ नाम के जीवाणु से फैलता है। ये रोग बारिश के कारण भीगे पशुओं में ज़्यादातार देखा जाता है।
  • अंत: परजीवी: इसमें परजीवी पशुओं का रक्त चूसते हैं।
  • प्लेग रोग: ये एक विषाणुजनित रोग है। इससे चार से 12 महीने के शिशु ज़्यादा प्रभावित होते हैं।

सवाल: बकरी पालन में कितना खर्च आता है?

जवाब: बकरी पालन का खर्च कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे:

  • बकरियों की नस्ल और संख्या
  • शेड निर्माण की लागत
  • आहार और पोषण की लागत
  • स्वास्थ्य देखभाल और दवाओं की लागत

सवाल: बकरी पालन में सफल होने के टिप्स क्या हैं?

जवाब: बकरी पालन में इन बातों का रखें ध्यान:

  • सही नस्ल का चयन करें।
  • आहार और पोषण पर ध्यान दें।
  • नियमित स्वास्थ्य जांच और टीकाकरण करवाएं।
  • साफ-सफाई और अच्छी जीवन स्थितियाँ सुनिश्चित करें।
  • बाजार की मांग और कीमतों की जानकारी रखें।
  • बकरी पालन से जुड़ी योजनाओं के बारे में जानें, इसके लिए अपने नज़दीकि कृषि विज्ञान केंद्र या कृषि निदेशालय से संपर्क करें।

सवाल: बकरियों के लिए उचित आवास कैसा होना चाहिए?

जवाब: बकरियों के शेड को साफ-सुथरा, हवादार, और सूखा रखें। शेड में उचित स्थान और वेंटिलेशन की व्यवस्था करें ताकि बकरियां आरामदायक महसूस कर सकें।

सवाल: प्रजनन प्रबंधन कैसे करें?

जवाब: बकरियों के प्रजनन चक्र का ध्यान रखें और सही समय पर प्रजनन कराएं। प्रत्येक बकरी की प्रजनन और स्वास्थ्य स्थिति का रिकॉर्ड रखें और आर्टिफिशियल इन्सेमिनेशन तकनीक का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

सवाल: बकरियों के लिए संतुलित आहार क्या है?

जवाब: बकरियों को उच्च गुणवत्ता वाला चारा, हरे पत्ते, दाने, और खनिज एवं विटामिन सप्लीमेंट्स दें। संतुलित आहार योजना बनाने के लिए पशु पोषण विशेषज्ञ की सलाह लें।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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