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जो लोग कृषि से जुड़ा व्यवसाय करने की सोच रहे हैं, उनके लिए मशरूम उत्पादन व्यवसाय बेहतरीन विकल्प है, क्योंकि इसमें कम जगह और लागत से मोटा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है, बस आपको मशरूम उत्पादन की सही विधि पता होनी चाहिए। मशरूम का उत्पादन दुनियाभर में तो कई सालों से हो रहा है और इसकी खूब मांग भी है, मगर भारत में पिछले करीब 3 दशकों से मशरूम का उत्पादन शुरू हुआ है और धीरे-धीरे इसकी मांग बढ़ती जा रही है। पहले तो ये शहर के बड़े-बड़े होटलों तक ही सीमित था यानि वहीं पर मशरूम के व्यंजन बनाए जाते थे, फिर लोगों के घर तक पहुंचा और अब तो गांव में भी मशरूम की मांग बढ़ने लगी है।
दरअसल, मशरूम बहुत पौष्टिक होता है और इसलिए अब अपनी सेहत और पोषण संबंधी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए लोग मशरूम का अधिक सेवन कर रहे हैं। ऐसे में तय है कि मशरूम की मांग आने वाले समय में और बढ़ेगी। मशरूम उत्पादन के लिए किन बातों की जानकारी होना ज़रूरी है और इसकी कौन सी किस्में हमारे देश में लोकप्रिय है? आइए, जानते हैं।
क्या होता है मशरूम?
मशरूम एक प्रकार का फंगस है, जिसमें प्रोटीन, विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है। यह फल और सब्ज़ी भले ही न हो, मगर इसकी सब्ज़ी बहुत स्वादिष्ट बनती हैं और लोग इसे बहुत पसंद से खाते हैं। आजकल शहरी और ग्रामीण इलाकों में भी इसकी काफी मांग है। इसलिए किसान इसकी खेती के लिए प्रेरित हो रहे है। मशरूम की खेती का सबसे बड़ा फायदा ये है कि इसके लिए मिट्टी की भी जरूरत नहीं होती है, बल्कि इसे प्लास्टिक के बड़े-बड़े बैग में कंपोस्ट खाद, धान और गेहूं का भूसा इस्तेमाल करके उगाया जाता है।
मशरूम की किस्में
वैसे तो मशरूम की ढेर सारी किस्में हैं, लेकिन भारत में मशरूम की 5 किस्में व्यवसायिक रूप से उगाई जाती है।
सफेद बटन मशरुम- भारत सबसे ज़्यादा बटन मशरूम की खेती की जाती है। इसकी खेती कम तापमान वाली जगहों पर की जाती है, लेकिन आजकल नई तकनीक की बदौलत इसकी खेती कहीं भी बंद कमरों में की जा सकती है। बटन मशरूम के कवक जाल के फैलाव के लिए 22-26 डिग्री सेल्सियस तापमान की ज़रूरत होती है। इस तापमान पर कवक जाल बहुत तेज़ी से फैलता है। बाद में इसके लिए 14-18 डिग्री सेल्सियस तापमान ही उपयुक्त रहता है। इसको हवादार कमरे, शेड, हट या झोपड़ी में आसानी से उगाया जा सकता है।
ढींगरी (ऑयस्टर) मशरुम- इस मशरूम को पूरे साल उगाया जा सकता है, इसके लिए 20-30 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान उपयुक्त होता है। ऑयस्टर मशरुम को उगाने में गेहूं व धान के भूसे और दानों का इस्तेमाल किया जाता है। यह मशरूम 2.5 से 3 महीने में तैयार हो जाता है। इस मशरूम की अलग-अलग प्रजाति के लिए अलग-अलग तापमान की ज़रूरत होती है, इसलिए ये मशरुम पूरे साल उगाई जा सकती है।
दूधिया (मिल्की) मशरुम- दूधिया मशरूम भारत में दूधिया मशरूम को ग्रीष्मकालीन मशरूम के रूप में जाना जाता है, इसका साइज़ बड़ा होता है। यह पैडीस्ट्रा मशरूम की तरह एक उष्णकटिबंधीय मशरूम है। इस मशरुम की खेती 1976 में पश्चिम बंगाल में शुरू हुई थी। अब इसे कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है। मार्च से अक्तूबर तक मौसम दूधिया मशरूम की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
पैडीस्ट्रा मशरुम- पैडीस्ट्रा मशरूम पैडीस्ट्रा मशरूम को ‘गर्म मशरूम’ के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह अधिक तापमान में उगता है। इसका स्वाद और सुगंध बेहतरीन होता है और इसमें प्रोटीन, विटामिन और खनिज लवणों अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह सफेद बटन मशरूम जितना ही लोकप्रिय है। इसे उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि में उगाया जाता है। यह 28-35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छी तरह बढ़ता है।
शिटाके मशरुम- यह बेहतरीन औषधीय मशरूम है। इसे व्यावसायिक और घरेलू उपयोग के लिए उगाया जा सकता है। दुनिया में कुल मशरूम उत्पादन के मामले में ये दूसरे स्थान पर आता है। सफेद बटन मशरूम की तुलना में शिटाके मशरूम का स्वाद और बनावट बेहतरीन है। इसमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन और विटामिन (विशेष रूप से विटामिन बी) भरपूर मात्रा में होते हैं। इसमें फैट और शुगर नहीं होता है, इसलिए डायबिटीज और हृदय रोगियों के लिए यह बहुत अच्छा माना जाता है।
मशरूम के लिए कंपोस्ट खाद तैयार करना
मशरूम की अच्छी पैदावार के लिए अच्छी कम्पोस्ट यानि खाद का होना बहुत ज़रूरी है। मशरूम उगाने के लिए तीन चीज़ों की ज़रूरत होती है- कंपोस्ट, स्पान (मशरुम के बीज) और केसिंग मिश्रण। कंपोस्ट यानी खाद के ऊपर ही मशरूम उगाई जाती है, इसलिए यह अच्छी गुणवत्ता वाला होना चाहिए। खाद बनाने के दो तरीके है एक लंबा और दूसरा छोटा।
मशरूम उत्पादन में छोटी विधि
कंपोस्ट बनाने के दोनों ही तरीकों में खाद के मिश्रण को बाहर फर्श पर सड़ाया जाता है, लघु विधि यानी जल्दी खाद बनाने के तरीके का इस्तेमाल आमतौर पर बड़े फार्मों पर किया जाता है। इसमें लगभग दस दिनों बाद खाद के मिश्रण को एक खास किस्म के कमरे में भर दिया जाता है, जिसे निर्जीवीकरण चैम्बर या टनल के नाम से जाना जाता है। निर्जीवीकरण चैम्बर का फर्श जालीदार बना होता है, उसमें ब्लोअर (पंखा) द्वारा नीचे से हवा प्रवाहित की जाती है जो पूरे खाद से गुजरती हुई ऊपर की ओर निकल जाती है। इसी तरह कंपोस्ट में ब्लोअर द्वारा हवा को लगातार 6-7 दिन तक घुमाया जाता है। इस कंपोस्ट की उत्पादन क्षमता लंबी अवधि द्वारा बनाए गए कंपोस्ट से लगभग दोगुनी होती है। हालांकि छोटे किसानों के पास चैम्बर की सुविधा नहीं होती है, इसलिए वो खाद बनाने के लिए लंबी विधि का इस्तेमाल करते हैं।
खाद बनाने की लंबी विधि
खाद बनाने के लिए ताज़ा भूसा जो बारिश में भीगा हुआ न हो, उसका इस्तेमाल किया जाना चाहिए। धान की पुआल या गेहूं के भूसे की जगहर सरसों के भूसे का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन सरसों के भूसे के साथ मुर्गी खाद का उपयोग ज़रूर करें। ज़्यादा मात्रा में खाद बनाने के लिए सभी सामग्रियों का अनुपात से बढ़ा दें। किसान खाद (कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट) उपलब्ध न हो, तो यूरिया की मात्रा अनुपात के अनुसार बढ़ाई जा सकती है। लेकिन ताजे या कच्चे कंपोस्ट में नाइट्रोजन की मात्रा लगभग 1.6-1.7 प्रतिशत होनी चाहिए। वैज्ञानिक तरीके से 28 दिन में मशरूम का खाद तैयार होता है।
सबसे पहले भूसे को पक्के फर्श पर या साफ स्थान पर 2 दिन तक पानी से गीला करक रखा जाता हैा। फिर निम्न विधि का पालन किया जाता है-
0-दिन- गीले भूसे को एक फीट मोटा बिछाया जाता है। इसमें रसायन उर्वरक जैसे 6 किलोग्राम किसान खाद, 2.4 किलोग्राम यूरिया, 3 किग्रा. ग्रासुपर फास्फेट, 3 किग्रा पोटाश और 15 किलोग्राम गेहूं की चोकर को अच्छी तरह मिला दें। इसके बाद 5 फीट ऊंचा, 5 फीट चौड़ा और सुविधानुसार लंबाई में ढेर बना दें। ढेर बनाने के 24 घंटे बाद ढेर के अंदर का तापमान बढ़ने लगेगा और वो 70-75 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
छठे दिन (पहली पलटाई)- ढेर का बाहरी भाग खुला रहने से सूख जाता है, जिससे खाद अच्छी तरह सड़ती नहीं है। खाद को सही तापमान पर पहुंचाने के लिए पलटाई की जाती है। इस समय 3 किलोग्राम किसान खाद, 1.2 किलोग्राम यूरिया और 15 किलोग्राम चोकर मिलाने के बाद ढेर को दोबारा से 0 दिन जैसा बना दें।
दसवें दिन (दूसरी पलटाई)- खाद के ढेर के बाहर के एक फीट खाद को अलग निकाल लें। इस पर पानी का छिड़काव करके पलटाई करते समय ढेर के बीच में डाल दें। इस पलटाई के समय खाद में 5 किलोग्राम शीरा 10 लीटर पानी में मिलाकर ढेर बनाने से पहले ही सारे खाद में मिला दें।
तेरहवें दिन (तीसरी पलटाई)- जैसे दूसरी पलटाई की, उसी तरह तीसरी करनी चाहिए। बाहर के सूखे भाग पर हल्का पानी छिड़कें। खाद में 30 किलो जिप्सम मिलाएं।
सोलहवें दिन (चौथी पलटाई)- ढेर को पलटाई देकर फिर से पहले जैसा बना दें। खाद में नमी बनाए रखें।
उन्नीस से 25 दिन- 19 वें, 22वें और 25वें दिन खाद के ढेर को पलटाई देकर फिर से ढेर बना देना चाहिए।
अट्ठाइसवें दिन- अमोनिया और नमी के लिए खाद का परीक्षण करें। खाद में अमोनिया गैस की बदबू नहीं है। पानी की मात्रा उचित है तो खाद बिजाई के लिए तैयार है। बिजाई से पहले खाद के ढेर को खोल दें, ताकि खाद ठंडी हो जाए। अगर खाद में अमोनिया गैस रह गई हो तो हर तीसरे दिन पलटाई देते रहना चाहिए। पानी ज्यादा है तो खाद को हवा लगाएं।
मशरूम की बीजाई (स्पॉनिंग)
मशरुम उत्पादन के लिए तैयार की गई शेड/झोपड़ी में बनी स्लैबों या बेड पर पॉलिथीन सीट रखने के बाद 6-8 इंच मोटी कंपोस्ट खाद की परत बिछा दे, इसके बाद ऊपर मशरुम के बीज/स्पॉन को मिला दें। सौ किलोग्राम कंपोस्ट खाद की बीजाई के लिए 500-750 ग्राम बीज की ज़रूरत पड़ती है स्पॉन की बीजाई करने के बाद उसे पॉलिथीन सीट से ढंक देना चाहिए।
मशरूम में केसिंग मिश्रण
वह कोई भी पदार्थ जो पानी को जल्दी अवशोषित करके धीरे-धीरे छोड़े और भुरभुरा हो, उसे केसिंग के लिए उपयुक्त समझा जाता है। जानकारों के मुताबिक, चावल के छिलके की राख (बायलर की राख) और जोहड़ की मिट्टी को 1:1 भार के अनुपात में तैयार करके अच्छी गुणवत्ता वाला केसिंग प्राप्त होता है। केसिंग मिश्रण का निर्जीवीकरण करने के लिए 2-3 प्रतिशत फॉर्मलीन का घोल डालकर पॉलिथीन सीट से 3-4 दिन के लिए ढंक देना चाहिए। केसिंग मिश्रण से पॉलिथीन सीट को हटाकर इसे पलटना चाहिए, जिससे फॉर्मलीन की गंध बाहर निकाल जाए। जब खाद के ऊपर स्पॉन का कवक जाल पूरी तरह से स्थापित हो जाए तो उसके ऊपर केसिंग की 1.0-1.5 इंच मोटी परत बिछाई जाती है। केसिंग मशरुम की वानस्पतिक वृद्धि में मदद करता है। केसिंग करने के बाद खाद में उचित मात्रा में नमी बनी रहती है। केसिंग न करने की स्थिति में मशरुम बहुत ही कम मात्रा में निकलते हैं, जिससे उत्पादकों को नुकसान होता है।
मशरूम की खेती में फल लगना और तुड़ाई
केसिंग की परत चढ़ाने के 12-15 दिन बाद कंपोस्ट खाद के ऊपर मशरुम की छोटी-छोटी कलिकाऐं दिखने लगती हैं जो 4-5 दिन में विकसित होकर छोटी-छोटी सफेद बटन मशरुम में बदल जाती हैं। जब इन सफेद बटन मशरुमों का आकार 4-5 सेंटीमीटर का हो जाए तो इन्हें थोड़ा सा घुमाकर तोड़ लेना चाहिए। तुड़ाई के पश्चात् सफेद बटन मशरुम को जल्द ही इस्तेमाल कर लेना चाहिए क्योंकि यह जल्दी ही खराब होने लगती है। 10.00 किलोग्राम सूखे भूसे से बनी कंपोस्ट खाद से करीब 5 किलो बटन मशरुम प्राप्त की जा सकती है।
मशरूम की खेती में ट्रेनिंग ज़रूरी
मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा कमाने के लिए ज़रूरी है कि आप प्रशिक्षण लेने के बाद ही इस काम की शुरुआत करें। सरकार भी मशरूम के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही है। मशरूम की खेती की ट्रेनिंग के लिए किसान अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र या फिर कृषि विश्वविद्यालय में प्रशिक्षण ले सकते हैं। यही नहीं, ICAR-मशरूम अनुसंधान निदेशालय द्वारा मशरूम की खेती पर ऑनलाइन ट्रेनिंग भी दी जा रही है, जिसकी पूरी जानकारी आप इस लिंक dmrsolan.icar.gov.in पर जाकर देख सकते हैं।
मशरूम की खेती से आमदनी
मशरूम के उत्पादन में लागत कम आती है, क्योंकि इसके लिए इस्तेमाल होने वाला भूसा सस्ता मिलता है। एक साल में सिर्फ एक कमरे में मशरूम का उत्पादन करके आप 3 से 4 लाख रुपए की कमाई आसानी से कर सकते हैं। जबकि इस पर लागत 50 से 60 हज़ार रुपए आएगी। बड़े पैमाने पर उत्पादन करने पर मुनाफा और अधिक होगा। मार्केट में मशरूम 150 से 300 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिकता है। इसकी कीमत किस्म और गुणवत्ता के हिसाब से तय होती है।