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Organic Farming Benefits | फसल की पैदावार बढ़ाने से लेकर उसे रोगों और कीटों से बचाने के लिए किसान फसल में तरह-तरह की केमिकल युक्त खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल करते हैं। इससे शुरुआत में तो उपज अच्छी होती है, मगर धीरे-धीरे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होने लगती है। हानिकारक केमिकल का असर फलों, सब्ज़ियों और अनाज पर भी होता है, जिससे इनके सेवन से तरह-तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं, ये रसायन ज़मीन के अंदर जाकर उसे भी दूषित कर देते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान होता है। इसलिए आज के समय में जैविक खेती बहुत ज़रूरी हो गई है। इसमें किसी भी प्रकार के रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जैविक खेती से न सिर्फ़ मिट्टी की सेहत में सुधार होता है, बल्कि इससे पौष्टिक फसल प्राप्त होती है और पर्यावरण को भी नुकसान नहीं पहुंचता है। यही वजह है कि किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करना ज़रूरी है।
जैविक खेती के सफल किसान (Success Stories Of Organic Farming)
देश में कई किसान ऐसे हैं, जो शुरू से ही जैविक तरीकों से ही खेती करते आए हैं या जिन्होंने रासायनिक खेती छोड़ जैविक खेती का रूख किया है। चित्रकूट, एक जगह पड़ती है उत्तर प्रदेश में। यहां के रहने वाले योगेश जैन ने 2009 से जैविक खेती करनी शुरू की थी। खास बात ये है है कि जिस 20 एकड़ की ज़मीन पर अभी बो खेती कर रहे हैं वो कभी बंज़र हुआ करती थी, लेकिन आज कई फल-सब्जियों, दाल और कई तरह के मसालों की फसलों से खेत लहलहा रहा है।
शुरुआत पांच पेड़ों से की और आज उनके बाग में हज़ारों की संख्या में पेड़ हैं। पानी की सही व्यवस्था के लिए छोटा सा ट्यूबवेल लगाया। बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए तालाब भी बनवाया। गर्मियों में पानी की बचत के लिए ड्रिप इरिगेशन तकनीक अपनाई। उनके बाग में सोलर प्लांट भी लगा है। वॉटर गन तकनीक का इस्तेमाल भी वो करते हैं। अपने मुनाफ़े का ज़िक्र करते हुए उन्होंने बताया कि उनके बाग में करीबन 13 हज़ार 760 पेड़ लगे हुए हैं। इसमें से बांस की फसल के बारे में उन्होंने बताया कि हरा सोना कहे जाने वाले बांस की कटाई हर दो साल में होती है। अगर बांस के 500 पेड़ लगा रखें हैं तो उससे 5 लाख तक का मुनाफ़ा किसान ले सकते हैं।
बाज़ार को लेकर योगेश जैन ने कहा कि लोग अब उनसे खुद माल खरीदते हैं। बाज़ार में जिस गेहूं का भाव 1600 से 2000 रुपये प्रति क्विंटल तक होता है, वो उसका भाव 4000 से 4500 रुपये प्रति क्विंटल लगाते हैं। जिस चावल की कीमत बाज़ार में 30 से 35 रुपये प्रति किलो रहती है, योगेश 60-70 रुपये प्रति किलो में बेचते हैं। इस तरह जैविक खेती में लागत कम और कीमत में इज़ाफ़ा होता है।
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दिल्ली के पल्ला गांव के रहने वाले पेशे से इंजीनियर अभिषेक दामा ने भी जैविक खेती अपनाई हुई है। कभी 2017 में दो बीघा ज़मीन से खेती की शुरुआत करने वाले अभिषेक दामा आज 25 एकड़ की ज़मीन पर मल्टीलेयर जैविक खेती कर रहे हैं। Multilayer Farming में अभिषेक ने करीब 52 तरह की सब्जियां अपने खेत में उगाई हुई हैं। इसके अलावा, दो एकड़ में फलों की बागवानी करते हैं।
अभिषेक ने बताया कि इस तरह मल्टीलेयर फ़ार्मिंग अपनाने से, एक साथ कई फसल लेने से अगर बाज़ार में एक फसल का दाम घटता भी है तो दूसरी फसल से मुनाफ़ा ले सकते हैं। आज अभिषेक b2b और b2c बिज़नेस के ज़रिए जैविक खेती से प्रति एकड़ सालाना डेढ़ लाख से लेकर तीन लाख रुपये की कमाई करते हैं।
एक ऐसे ही युवा हैं राजस्थान के कोटपूतली के रहने वाले नीतीश यादव। नीतीश यादव जैविक खेती के साथ-साथ बड़े स्तर पर पशुपालन भी करते हैं। दो साल जॉब करने के बाद 30 साल की उम्र में नीतीश ने खेती-किसानी का रूख किया। 2016 से नीतीश यादव 210 बीघा की पुश्तैनी ज़मीन पर जैविक खेती और पशुपालन कर रहे हैं। ड्रिप इरिगेशन तकनीक (Drip irrigation technique) से पपीते की खेती (Papaya Cultivation) हो या इंटर क्रॉपिंग तकनीक (Inter-cropping technique) से टमाटर लगाना हो। उन्होंने शुरुआत से ही खेती की उन्नत तकनीकें अपनाईं।
नीतीश यादव के फ़ार्म में साहीवाल नस्ल की करीब 60 देसी गाय हैं। इन साहीवाल गायों से रोज़ाना करीब 240 लीटर तक दूध का उत्पादन होता है। 150 लीटर दूध सीधा कांच की बोतलों में पैक होकर ग्राहकों पर पहुंचाया जाता है। बाकी बचे दूध से घी, मक्खन और पनीर तैयार किया जाता है। नीतीश यादव ने अपने फ़ार्म में एक बायोगैस प्लांट लगा रखा है। इस बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) से एक हफ़्ते में 5 सिलेंडर जितनी गैस का उत्पादन होता है। गाय के गोबर से लकड़ियां भी बनाई जाती हैं, जिसके ग्राहक होटल्स और दुकानदार होते हैं। गायों का गौमूत्र भी 30 से 35 रुपये प्रति लीटर दर से बेचते हैं। वहीं गाय के गोबर का इस्तेमाल वर्मिकम्पोस्ट बनाने के लिए भी करते हैं। इस जैविक खाद को 8 रुपये प्रति किलो की दर से बेचते हैं। नीतीश यादव ने पशुपालन से होने वाली आमदनी पर बताया कि अभी गौपालन में हर महीने का एक लाख 30 हज़ार तक का खर्च आता है। इस खर्च से तीन लाख तक की आमदनी करने का लक्ष्य रहता है।
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एक ऐसे ही प्रगतिशील किसान हैं भीमताल,उत्तराखंड के गांव अलचौना के रहने वाले आनन्द मणि भट्ट। एमकॉम पास आनंद मणि भट्ट ने कई साल मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब नहीं की, लेकिन फिर नौकरी छोड़ 2013 से खेती में कदम रखा। आज वो एक एकड़ क्षेत्र में बीन्स, आलू, शिमला मिर्च, सलादी मिर्च, अचारी मिर्च, मटर, टमाटर, बंद गोभी, जैसी कई सब्जियां उगाते हैं।
बिना रेशे वाली बीन्स की खेती का ज़िक्र करते हुए आनंद मणि भट्ट ने बताया कि उन्होंने अपने क्षेत्र में पहली बार बिना रेशे वाली बीन्स लगाई। महाराष्ट्र की किसी कंपनी से बीज मंगवाए और प्रयोग के तौर पर 200 ग्राम बीजों की खेती की। एक पौधे से 5 से 7 किलो तक बीन्स का उत्पादन मिला। उन्होंने बीन्स की इस उपज को 100 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा। उन्हें करीबन 40 हज़ार की आमदनी हुई। आनंद मणि भट्ट बद्री गायों और पहाड़ी भैंसों का पालन भी करते हैं। घी से लेकर ताज़ा मट्ठा और दही बाज़ार में बेचते हैं। उन्होंने बताया कि बद्री गाय के 250 ग्राम घी की कीमत लगभग 350 रुपये रहती है।
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जैविक खेती क्या है? (What Is Organic Farming?)
जैविक खेती जिसे ऑर्गेनिक फार्मिंग भी कहा जाता है, आजकल बहुत लोकप्रिय हो रही है। खेती के इस तरीके में सिर्फ जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ती है। आजकल लोगों के बीच जैविक उत्पाद (Organic Products) बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। इस तरीके से की गई खेती से पौष्टिक फसल प्राप्त होती है, इसलिए किसानों को ऐसी उपज की कीमत भी बाज़ार में अच्छी मिलती है। जैविक खेती में गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, जीवाणु खाद, फसल अवशेष और प्रकृति में उपलब्ध खनिज जैसे रॉक फास्फेट, जिप्सम आदि द्वारा पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। प्रकृति में उपलब्ध जीवाणुओं, मित्र कीट और जैविक कीटनाशकों द्वारा फ़सल को हानिकारक जीवाणुओं से बचाया जाता है।
कैसे की जाती है जैविक खेती? (How To Do Organic Farming)
जैविक खेती में गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद यानी वर्मीकंपोस्ट, फसलों के अवशेष को सड़ाकर बनी खाद, ढैंचा की बुआई आदि तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। ये सारी चीजें जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाती हैं, जिससे फसल का उत्पादन अपने आप बढ़ जाता है। इस तरह की खाद के इस्तेमाल से भूमि को प्राकृतिक तौर पर नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम और एक्टीनोमाइसिट्स जैसे ज़रूरी पोषक तत्व मिल जाते हैं, जिससे रसायनों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती है। कीट व रोगों से बचाव के लिए नीम और गौमूत्र का इस्तेमाल किया जाता है।
जैविक खेती की ज़रूरत क्यों है? (Need Of Organic Farming)
बहुत से किसान खेती से पलायन कर रहे हैं, क्योंकि वो खेती की बढ़ती लागत को सहन नहीं कर पाते हैं। दरअसल, रसायनों के इस्तेमाल से खेती की लागत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है और उसकी कुदरती संरचना में बदलाव आ रहा है। इससे कई बार अधिक खर्च के बावजूद किसानों को अच्छी उपज प्राप्त नहीं होती है, और उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। साथ ही रसायनों का मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है। रासायनिक खेती से किसानों को जो मुनाफ़ा होता भी है, उसका बड़ा हिस्सा तो उन्हें उर्वरकों और कीटनाशकों पर ही खर्च करना पड़ जाता है। इसीलिए उन्हें शुद्ध लाभ बहुत कम होता है। यही एक बड़ी वजह है कि धीरे-धीरे अब कई किसान जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। इससे मुनाफ़े के साथ ही मिट्टी और मानव स्वास्थ्य में भी सुधार होता है। जैविक तरीके से उगाये गए अनाज में कई तरह के खनिज तत्व होते हैं, जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।
जैविक खेती की तकनीक (Organic Farming Techniques)
जैविक खेती के जो तरीके हमारे देश में इस्तेमाल किए जाते हैं उसमें शामिल हैं-
मृदा प्रबंधन
जैविक खेती में सबसे पहले ज़रूरी है मृदा प्रबंधन। एक फ़सल लगाने के बाद मिट्टी अपने पोषक तत्वों को खो देती है। ऐसे में मृदा प्रबंधन के ज़रिए उसके पोषक तत्व वापस लाए जाते हैं। जैविक खेती में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जानवरों के अपशिष्ट में उपलब्ध बैक्टीरिया का उपयोग किया जाता है, क्योंकि जीवाणु मिट्टी को अधिक उत्पादक और उपजाऊ बनाने में मदद करते हैं।
खरपतवार प्रबंधन
जैविक खेती खरपतावरों को रसायनों के ज़रिए पूरी तरह से खत्म करने की बजाय प्राकृतिक तरीके से उनका प्रबंधन किया जाता है। खरपतवार वो अवांछित पौधे होते हैं, जो फ़सल के साथ अपने आप उग आते हैं। ये मिट्टी के पोषक तत्वों के साथ चिपक जाते हैं जिससे फ़सलों के उत्पादन पर असर पड़ता है।
फ़सल विविधता
इस तकनीक के मुताबिक, फ़सलों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए एक तरह की फ़सल की बजाय अलग-अलग तरह की फ़सलों की खेती एक साथ की जा सकती है।
खेती में रासायनिक प्रबंधन
खेतों में कुछ उपयोगी तो कुछ हानिकारक जीव होते हैं, जो खेती को प्रभावित करते हैं। फसलों और मिट्टी को बचाने के लिए उपयोगी जीवों की वृद्धि और हानिकारक जीवों को नियंत्रित करने की ज़रूरत होती है। इसके लिए कुदरती या कम हानिकारक रसायनों, शाकनाशियों और कीटनाशकों का इस्तेमाल करके मिट्टी और फ़सलों की रक्षा की जाती है।
जैविक कीट नियंत्रण
इस तकनीक में बिना रसायनों के कीटों को नियंत्रित किया जाता है। इसके लिए मित्र कीटों का इस्तेमाल किया जाता हैं।
जैविक खेती के फ़ायदे (Organic Farming Benefits)
जैविक खेती से न सिर्फ़ किसानों का फ़ायदा होता है, बल्कि इससे पर्वायरण सुरक्षित रहता है और मानव स्वास्थ्य के लिए भी ये लाभदायक है। इसके कुछ फ़ायदे इस प्रकार हैं-
- भूमि की उपजाऊ क्षमता बढ़ती है।
- ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है यानी लंबे अंतराल में सिंचाई की जाती है।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से खेती की लागत में कमी आती है।
- फसलों का उत्पादन अधिक होता है और पौष्टिकता भी बढ़ती है।
- बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग अच्छी है जिससे किसानों को उपज की अच्छी कीमत मिलती है।
- जैविक खाद का इस्तेमाल करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
- ज़मीन की जल धारण क्षमता बढ़ती है और पानी का वाष्पीकरण (vaporization) कम होता है।
- ज़मीन के जलस्तर में वृद्धि होती है।
- मिट्टी, खाद्य पदार्थ और ज़मीन में पानी के ज़रिए होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- फ़सल उत्पादन की लागत में कमी आती है जिससे मुनाफ़ा बढ़ता है।
जैविक खेती में पशुपालन की भी अहम भूमिका होती है, क्योंकि गोबर की खाद और गोमूत्र का इस्तेमाल इसमें किया जाता है। साथ ही फ़सल चक्र अपनाना और हरी खाद का इस्तेमाल करना भी आवश्यक है। हरी खाद के लिए कुछ ऐसे पौधे व दलहनी फ़सलें लगाई जाती हैं जिनकी खेत में ही जुताई कर दी जाती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।